नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आठ नवंबर, 2024 को दिए आदेश में कहा है कि पानीपत थर्मल पावर स्टेशन (पीटीपीएस) को पर्यावरण को पहुंचे नुकसान की एवज में 6.9 करोड़ रुपए के पर्यावरणीय मुआवजे का भुगतान करना होगा।
यह जुर्माना उसके द्वारा अक्टूबर 2022 से जून, 2024 के बीच फ्लाई ऐश के अवैज्ञानिक निपटान और प्रबंधन के लिए लगाया गया है। इसकी वजह से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है। वहीं पानीपत थर्मल पावर स्टेशन ने अदालत को आश्वासन दिया है कि राख बांधों में संग्रहीत 108 लाख मीट्रिक टन फ्लाई ऐश का दो से तीन साल के भीतर वैज्ञानिक और सुरक्षित तरीके से निपटान कर दिया जाएगा।
अदालत ने पावर स्टेशन को इस योजना का पालन करने और 31 जुलाई, 2027 तक फ्लाई ऐश को पूरी तरह से साफ करने का निर्देश दिया है।
हालांकि अदालत ने यह भी कहा है कि एक जुलाई, 2024 से हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) हर छह महीने में पर्यावरण मुआवजे की गणना करेगा, जब तक कि फ्लाई ऐश का पूरी तरह निपटान नहीं हो जाता।
98,000 पेड़ लगाए गए, लेकिन कितने जीवित बचे इनका नहीं अता-पता
वहीं पानीपत थर्मल पावर स्टेशन ने अदालत को जानकारी दी है कि करीब 98,000 पेड़ लगाए गए हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि उनमें से कितने अभी भी जीवित हैं। अदालत ने कहा कि, “पेड़ों को जीवित रखना सुनिश्चित किए बिना उन्हें लगाना न तो प्रभावी कदम है और न ही पर्यावरण संरक्षण के किसी उद्देश्य को पूरा करता है।“
एनजीटी ने पावर प्लांट को निर्देश दिया है कि वह निर्धारित क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के पेड़ लगाए साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि अगले पांच वर्षों तक उनका अस्तित्व बना रहे। इस तरह उन्हें ग्रीन बेल्ट बनाने के लिए भी कहा गया है। पानीपत थर्मल पावर स्टेशन को पौधे लगाने के लिए पानीपत के प्रभागीय वन अधिकारी से परामर्श लेने को कहा गया है।
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) को यह सुनिश्चित करना होगा कि इन निर्देशों का पालन हो और हर छह महीने में एनजीटी के रजिस्ट्रार जनरल को इस बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
गौरतलब है कि हरियाणा में पानीपत के सुताना गांव निवासी सुभेंद्र ने अपनी याचिका में कहा है कि खुखराना गांव में पानीपत थर्मल पावर स्टेशन द्वारा बिजली उत्पादन से निकलने वाली राख को अवैध रूप से आसपास के इलाकों में डंप किया जा रहा है।
शिकायत में कहा गया है कि गर्मियों में फ्लाई ऐश के कण सुताना, जाटल, खुखराना, उंटला और आसन जैसे आस-पास के गांवों में फैल गए। इसकी वजह से वहां रहने वाले लोगों और राहगीरों को सांस लेने में गंभीर समस्या पैदा हो गई।
शिकायत में यह भी कहा है कि 20 मई, 2022 की शाम को चली तेज हवाओं ने फ्लाई ऐश को ग्रामीणों के घरों में पहुंचा दिया, जिससे उनके स्वास्थ्य को लेकर गंभीर समस्याएं पैदा हो गई।
गौरतलब है कि इससे पहले भी एनजीटी को शिकायत मिली थी कि पानीपत थर्मल पावर प्लांट फ्लाई ऐश और कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान करने में विफल रहा है। इसकी वजह से आस-पास के कृषि क्षेत्र ऐश डाइक से निकली राख के कारण प्रभावित हुए हैं।
वहीं 22 सितंबर, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पानीपत थर्मल पावर स्टेशन द्वारा अवैध रूप से डंप की जा रही फ्लाई ऐश की जांच के लिए समिति को निर्देश दिए थे। आरोप है कि प्लांट से निकले फ्लाई ऐश को आसपास के क्षेत्रों में डंप किया जा रहा है, जिससे आसपास के गांवों सुताना, जाटाल, खुखराना, उंटला, आसन आदि में फ्लाई ऐश के कणों के उड़ने के कारण लोगों को समस्या हो रही है।
इसके साथ ही इस प्लांट के किनारे से गुजरने वाले यात्रियों को फ्लाई ऐश के कारण काफी परेशानी का भी सामना करना पड़ता है।
ऐसे में कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पानीपत के उपायुक्त को साथ लेकर एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया था, जिसे दो सप्ताह के भीतर साइटों का दौरा करने और शिकायतों को देखने के लिए कहा था।