क्या पानीपत थर्मल पावर प्लांट ने पर्यावरण नियमों का किया है उल्लंघन? एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
क्या पानीपत थर्मल पावर प्लांट ने पर्यावरण नियमों का किया है उल्लंघन? एनजीटी ने दिए जांच के आदेश
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस बात की जांच के आदेश दिए हैं कि क्या पानीपत थर्मल पावर प्लांट ने पर्यावरण संबंधी नियमों का उल्लंघन किया है या नहीं। इस बारे में 27 अप्रैल, 2023 को कोर्ट ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और पानीपत के जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश दिए हैं।

गौरतलब है कि एनजीटी शिकायत मिली थी कि पानीपत थर्मल पावर प्लांट फ्लाई ऐश और कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटान करने में विफल रहा है। इसकी वजह से आस-पास के कृषि क्षेत्र ऐश डाइक से निकली राख के कारण प्रभावित हुए हैं।

पता चला है कि इस नुकसान के मुआवजे के रूप में, पीड़ितों को नलकूप कनेक्शन दिए गए थे, जिनके बिजली कनेक्शन अब बिलों का भुगतान न करने के कारण काट दिए गए हैं। पता चला है कि वहां सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं है। वहीं दूसरी ओर 30 नवंबर 2022 को स्लरी पाइप लाइन फटने से दूषित पानी खेतों में जा रहा है, जिसके लिए अब तक कोई उपचार के लिए अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

एनजीटी ने फतेहाबाद में डंप साइट प्रबंधन के दिए जांच के आदेश

एनजीटी ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और फतेहाबाद के जिलाधिकारी को डंप साइट के प्रबंधन में मौजूद खामियों की जांच का आदेश दिया है। साथ ही कोर्ट ने मामले में अधिकारियों से जरूरी कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है। मामला हरियाणा के फतेहाबाद में डीएवी स्कूल के पास मौजूद डंप साइट से जुड़ा है।

गौरतलब है कि आवेदक सुशील कुमार ने कोर्ट को सूचित किया था कि हरियाणा के फतेहाबाद में सम्बंधित अधिकारी डंप साइट का प्रबंधन करने में विफल रहे हैं जिसके कारण पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा है। इस अपशिष्ट में मांस और बाजारों से उत्पन्न हुआ कचरा शामिल है।

सुसवा नदी में डाला जा रहा सीवेज और प्लास्टिक, एनजीटी ने दिए आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि देहरादून में पैदा हो रहे सीवेज और प्लास्टिक को सुसवा नदी में न डाला जाए। मामला उत्तराखंड में देहरादून के डोडवाला और नौका गांव का है।

इस बाबत ट्रिब्यूनल ने देहरादून जिला मजिस्ट्रेट और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को मामले की जांच करने और जहां आवश्यक हो, जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि डोडवाला और नौका में दूषित पानी को सुसवा नदी में डाले जाने को लेकर शिकायत एनजीटी के सामने आई थी।

जानकारी मिली है कि नाले में सीवेज के साथ-साथ प्लास्टिक की थैलियां भी फेंकी जा रही हैं, जो पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं। गौरतलब है कि इस क्षेत्र को देहरादून के शहरी क्षेत्र में शामिल किया गया है। वहीं शिकायतकर्ता का आरोप है कि इस समस्या को हल करने के लिए अब तक कोई उपचारात्मक कार्रवाई नहीं की गई है।

सिरसा में कचरे का उचित प्रबंधन न करने के मामले में एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

एनजीटी ने 27 अप्रैल 2023 को सिरसा के जिला मजिस्ट्रेट और हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को बकरियांवाली गांव में कचरा प्रबंधन से जुड़े मामले की जांच के निर्देश दिए हैं। मामला हरियाणा के सिरसा का है।

जानकारी मिली है कि वहां एक एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन संयंत्र स्थापित किया गया था, जिसमें वेस्ट टू एनर्जी प्लांट भी शामिल था। पता चला है कि इसपर अच्छी-खासी रकम खर्च की गई थी। हालांकि उस संयंत्र को तब से बंद कर दिया गया है लेकिन वहां मौजूद कचरे का अब तक निपटान नहीं हुआ है जो पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। साथ ही इससे आसपास की कृषि भूमि की उर्वरता भी प्रभावित हो रही है।

इस मामले में शिकायतकर्ता का कहना है कि एनजीटी की निगरानी समिति ने 19 अप्रैल, 2022 को इस साइट का दौरा किया था और जिला प्रशासन को सुझाव दिए थे, लेकिन इसके बावजूद इसके सुधार के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

रुद्रप्रयाग में सड़क निर्माण के चलते पैदा हुए मलबे का क्या ठीक से किया जा रहा है निपटान, एनजीटी ने दिए जांच के निर्देश

एनजीटी ने रुद्रप्रयाग के जिला मजिस्ट्रेट और उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह देखने का निर्देश दिया कि रुद्रप्रयाग में प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के तहत बनाई गई सेमलता कफना डूंगरा मोटर सड़क के निर्माण के दौरान उत्पन्न मलबे का सही तरीके से निपटान किया गया है या नहीं। पूरा मामला उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले का है।

कोर्ट को जानकारी मिली है कि इस सड़क का निर्माण 2018 से चल रहा है और इसकी वजह से कचरे को अवैज्ञानिक तरीके से डंप किया जा रहा है। जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए खतरा है। हालांकि इस विषय में देहरादून लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन इसके बावजूद उनका पालन नहीं किया जा रहा है।

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