
हम अपने घरों और कारों को अक्सर सुरक्षित और स्वच्छ मानते हैं, लेकिन एक नई रिसर्च ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। हमारे चारों ओर की हवा, खासकर बंद जगहों में, सूक्ष्म माइक्रोप्लास्टिक कणों से भरी हुई है और हम हर दिन सांस के जरिए लाखों ऐसे कण अपने शरीर में खींच रहे हैं।
30 जुलाई, 2025 को प्लोस वन में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि बेहद छोटे आकार (1 से 10 माइक्रोमीटर) के माइक्रोप्लास्टिक कण बड़ी संख्या में हमारी सांसों के जरिए फेफड़ों में पहुंच सकते हैं। यह पहले की धारणाओं से कहीं अधिक गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है।
अध्ययन में टूलूज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने उन्नत रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके इस बात का पता लगाया है।
ये कण पाचन, सांस की समस्या, प्रजनन क्षमता और यहां तक कि कैंसर के कारण भी बन सकते हैं। अध्ययन में कुछ अहम सवाल उठाए गए हैं- हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसमें कितना प्लास्टिक है? और हमारे स्वास्थ्य पर लंबे समय तक इसके क्या प्रभाव पड़ सकते हैं?
क्या कहता है अध्ययन?
वैज्ञानिकों ने 16 अपार्टमेंट और कारों के अंदरूनी हिस्सों से हवा के नमूने एकत्र करके घर के अंदर माइक्रोप्लास्टिक के स्तर को मापा। उन आवासीय अपार्टमेंट और कारों के अंदरूनी हिस्सों से हवा के नमूनों का विश्लेषण करने के लिए रमन माइक्रो-स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करते हुए, वैज्ञानिकों ने यह तय किया कि रोजमर्रा के वातावरण में कितने प्लास्टिक कण हैं जो दिखते नहीं हैं।
अध्ययन के परिणाम चौंकाने वाले थे, अपार्टमेंट में प्रति घन मीटर औसतन 528 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए। कारों में प्रति घन मीटर 2,238 कण थे, जो घरों की तुलना में लगभग चार गुना अधिक है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इनमें से 90 फीसदी से अधिक कण 10 माइक्रोमीटर से कम व्यास के थे, जो फेफड़ों के ऊतकों में गहराई तक आसानी से प्रवेश कर सकते हैं।
वेंटिलेशन और औसत सांस के आधार पर, विशेष रूप से घर के अंदर, जहां अधिकांश लोग अपना लगभग 90 फीसदी समय बिताते हैं, अनुमान लगाया गया कि वयस्क प्रतिदिन लगभग 68,000 माइक्रोप्लास्टिक कण सांस के माध्यम से अंदर लेते हैं, साथ ही 10-300 माइक्रोमीटर रेंज में 3,200 अन्य कण भी सांस के द्वारा अंदर लेते हैं।
अध्ययन में पाया गया कि घर के अंदर हवा में मौजूद 90 फीसदी से अधिक माइक्रोप्लास्टिक 10 माइक्रोमीटर से छोटे थे, जो आसानी से फेफड़ों की गहराई तक घुसने और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं। यदि एक बार ये अंदर घुस जाते हैं तो इसके कारण शरीर में सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव, कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है, प्रतिरक्षा प्रणाली में रुकावट आ सकती है।
इसके अलावा माइक्रोप्लास्टिक में अक्सर थैलेट्स, बिस्फेनॉल ए (बीपीए) और भारी धातु जैसे विषैले पदार्थ होते हैं, जो ऊतकों में रिसकर हार्मोन की नकल कर सकते हैं, जिससे प्रजनन संबंधी समस्याएं, चयापचय संबंधी विकार और कैंसर हो सकता है।
विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि इन प्लास्टिक के टुकड़ों में बीपीए या फथलेट्स जैसे जहरीले तत्व हो सकते हैं जो ऊतकों में रिसकर स्वास्थ्य के लिए खतरा बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा कुछ अध्ययनों ने मानव मस्तिष्क और प्लेसेंटा में भी सूक्ष्म प्लास्टिक का पता लगाया है, जिससे पता चलता है कि कण सांस के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं और अंगों में जमा हो सकते हैं।
आखिर घर के अंदर माइक्रोप्लास्टिक आता कहां से है?
घर के अंदर की हवा में माइक्रोप्लास्टिक कई तरह के रोजमर्रा के स्रोतों से आते हैं, खासकर घरों और वाहनों में आमतौर पर पाई जाने वाली सामग्री जैसे सिंथेटिक कपड़े और कालीन जिनमें पॉलिएस्टर, नायलॉन, ऐक्रेलिक शामिल हैं। साथ ही प्लास्टिक की पैकेजिंग और कंटेनर, घर की धूल आदि के द्वारा भी ये घर में पहुंच जाते हैं।
गाड़ी के डैशबोर्ड और कार के अंदरूनी हिस्से में लगे पीवीसी, एबीएस प्लास्टिक यहां तक कि कालीन पर चलना, कपड़े तह करना या कार चलाना जैसी आम गतिविधियां भी हवा में कण छोड़ सकती हैं। समय के साथ, घर्षण, गर्मी और क्षरण के कारण ये पदार्थ सूक्ष्म रेशे और टुकड़े छोड़ते हैं, जो आंतरिक वातावरण में बने रहते हैं।
अध्ययन में पाया गया कि कार के अंदरूनी हिस्सों में हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा सबसे अधिक होती है, जो सीमित जगह, गर्मी व डैशबोर्ड में सिंथेटिक सामग्रियों के अत्यधिक उपयोग से जुड़ा हो सकता है। सही वेंटिलेशन के बिना कारों में माइक्रोप्लास्टिक तेजी से जमा हो सकता है।
अधिकतर लोग रोजाना कार से यात्रा करते हैं, इसलिए बंद वाहनों में लंबे समय तक रहने से सांस संबंधी खतरे बढ़ सकते हैं, खासकर बच्चों और अस्थमा या अन्य फेफड़ों की बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए।
कैसे सीमित किया जा सकता है माइक्रोप्लास्टिक का खतरा?
माइक्रोप्लास्टिक की खपत को सीमित करने के लिए, एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक (सिंगल यूज प्लास्टिक) का उपयोग कम करना होगा, प्लास्टिक में खाना गर्म करने से बचना होगा और नल के पानी को छानना होगा। एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक को कम करना, फिर से उपयोग की जा सकने वाली बोतलें और कंटेनर का उपयोग करना।
कपड़े के शॉपिंग बैग, बांस के कटलरी और धातु की पानी की बोतलों को चुना जा सकता है। प्लास्टिक के स्ट्रॉ और कटलरी से बचना अहम है। प्लास्टिक में खाना गर्म करने से बचना चाहिए, प्लास्टिक के बजाय कांच या सिरेमिक बर्तनों में खाना गर्म करना चाहिए।
हालांकि घर के अंदर माइक्रोप्लास्टिक से पूरी तरह बचना मुश्किल है, लेकिन सांस के जरिए शरीर में जाने के खतरे को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए जा सकते हैं, जिनमें एचईपीए फिल्टर वाले एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करके घर के अंदर वेंटिलेशन बेहतर बनाया जा सकता है।
प्लास्टिक से भरी धूल को रोकने के लिए एचईपीए से जुड़े वैक्यूम क्लीनर से बार-बार वैक्यूम किया जाना चाहिए, फर्नीचर और कपड़ों में सिंथेटिक कपड़ों का इस्तेमाल कम किया जाना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया है कि कपास, ऊन जैसे प्राकृतिक रेशों का इस्तेमाल करना, प्लास्टिक को माइक्रोवेव में या गर्मी के स्रोतों के पास गर्म करने से बचना चाहिए, कार को हवादार बनाए रखना और उसे नियमित रूप से साफ किया जाना चाहिए।