चिंताजनक: वैज्ञानिकों ने मनुष्य के प्रजनन द्रव में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का किया खुलासा

वैज्ञानिकों ने पुरुषों से एकत्रित वीर्य द्रव्यों में से 55 फीसदी में माइक्रोप्लास्टिक पाया, पॉलीटेट्राफ्लूरो एथिलीन (पीटीएफई) सबसे प्रचलित पॉलिमर था, जिसकी पहचान 41 फीसदी नमूनों में की गई।
वैज्ञानिकों ने मानव प्रजनन द्रव्यों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का खुलासा किया है।
वैज्ञानिकों ने मानव प्रजनन द्रव्यों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का खुलासा किया है। प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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यूरोपीय सोसायटी ऑफ ह्यूमन रिप्रोडक्शन एंड एम्ब्रियोलॉजी की 41वीं वार्षिक बैठक में प्रस्तुत शोध के दौरान, वैज्ञानिकों ने मानव प्रजनन द्रव्यों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति का खुलासा किया। हाल ही में हुई इस खोज ने प्रजनन क्षमता और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए इसके खतरों के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, यह शोध ह्यूमन रिप्रोडक्शन पत्रिका में प्रकाशित किया जाएगा। जिसका विषय "छिपे हुए खतरे का अनावरण: मानव कूपिक (फॉलिक्युलर) और वीर्य द्रव में माइक्रोप्लास्टिक्स का पता लगाना और लक्षणों का वर्णन करना है"।

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माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक के वे कण हैं जिनका आकार 5 मिलीमीटर से भी कम होता है। माइक्रोप्लास्टिक और भी छोटे हो सकते हैं, जिन्हें खुली आंखों से नहीं देखा जा सकता है और ये एक मिलीमीटर के एक-हजारवें हिस्से से भी छोटे होते हैं।

ये माइक्रोप्लास्टिक बड़े प्लास्टिक कचरे के रासायनिक विघटन, अर्थात टूटने से बनते हैं, जिसमें खाद्य पैकेजिंग, जैसे एक बार उपयोग की जाने वाली पानी की बोतलें, सिंथेटिक कपड़े और व्यक्तिगत देखभाल के उत्पाद शामिल हैं।

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यह देखने के लिए कि क्या माइक्रोप्लास्टिक ने जीवित ऊतकों पर आक्रमण किया है, शोधकर्ताओं ने 29 महिलाओं के कूपिक द्रव (फॉलिक्युलर फ्लुइड्स) और 22 पुरुषों के वीर्य द्रव का विश्लेषण किया, जो दोनों प्राकृतिक गर्भाधान और सहायक प्रजनन में अहम भूमिका निभाते हैं। उन्होंने जो पाया वह चौंकाने वाला था। इन प्रजनन द्रवों में पॉलीटेट्राफ्लूरो एथिलीन (पीटीएफई), पॉलीस्टाइनिन (पीएस), पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी), पॉलियामाइड (पीए), पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी) और पॉलीयुरेथेन (पीयू ) सहित कई सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक पॉलिमर शामिल थे।

वैज्ञानिकों ने पाया कि कूपिक द्रव के 69 फीसदी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे, जिनका उन्होंने विश्लेषण किया। पीटीएफई सबसे आम पॉलिमर था, जो 31 फीसदी नमूनों में पाया गया। इसके बाद प्रचलन के क्रम में पीपी(28 फीसदी), पीईटी (17 फीसदी), पीए (14 फीसदी), पॉलीइथिलीन (पीई) (10 फीसदी), पीयू (10 फीसदी) और पीएस (7 फीसदी) थे।

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वैज्ञानिकों ने पुरुषों से एकत्रित वीर्य द्रव्यों में से 55 फीसदी में माइक्रोप्लास्टिक पाया। पीटीएफई सबसे प्रचलित पॉलिमर था, जिसकी पहचान 41 फीसदी नमूनों में की गई। अन्य पॉलिमरों में पीएस (14 फीसदी), पीईटी (9 फीसदी), पीए (5 फीसदी) और पीयू (5 फीसदी) शामिल थे, हालांकि इनकी मात्रा कम थी।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि पिछले अध्ययनों से पहले ही पता चल चुका है कि माइक्रोप्लास्टिक विभिन्न मानव अंगों में पाया जा सकता है। जिसके कारण मानव प्रजनन प्रणाली के तरल पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक पाकर पूरी तरह से आश्चर्यचकित नहीं हुए, लेकिन हम यह देखकर आश्चर्यचकित थे कि वे कितने आम हैं। हमने जिन महिलाओं का अध्ययन किया उनमें से 69 फीसदी और पुरुषों में 55 फीसदी में पाए गए।

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माइक्रोप्लास्टिक पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने मानव प्रजनन तरल पदार्थों में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति पाई है, लेकिन उन्हें अभी भी यह समझना बाकी है कि यह प्रजनन क्षमता को कैसे प्रभावित कर सकता है और मानव प्रजनन स्वास्थ्य के लिए इसके क्या खतरे हो सकते हैं।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि पशुओं के अध्ययनों से हमें पता चला है कि जिन ऊतकों में माइक्रोप्लास्टिक जमा होते हैं, वे सूजन, मुक्त कणों के निर्माण, डीएनए क्षति, सेलुलर जीर्णता और अंतःस्रावी व्यवधान पैदा कर सकते हैं। यह हो सकता है कि वे मनुष्यों में अंडे या शुक्राणु की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं, लेकिन हमारे पास अभी तक इसकी पुष्टि करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं।

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शोध में कहा गया है कि शोधकर्ता एक बड़े समूह को शामिल करने और विस्तृत जीवनशैली और पर्यावरणीय खतरों के आंकड़े एकत्र करने के लिए और अधिक शोधकरने की योजना बना रहे हैं। आगे के अध्ययन में माइक्रोप्लास्टिक्स और डिंबग्रंथि और शुक्राणु की गुणवत्ता की उपस्थिति के बीच संभावित संबंध का पता लगाया जाएगा।

क्या यह चिंता का कारण हो सकता है?

शोध में कहा गया है कि प्रजनन क्षमता कई कारकों से प्रभावित होती है, जैसे कि उम्र, स्वास्थ्य और आनुवंशिकी। हाल के निष्कर्षों से गर्भधारण करने की कोशिश कर रहे लोगों में चिंता पैदा नहीं होनी चाहिए। इस समय चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। माइक्रोप्लास्टिक कई तत्वों में से एक है जो प्रजनन क्षमता में भूमिका निभा सकता है।

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प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के तरीकों पर विचार करना समझदारी है। सरल कदम, जैसे कि भोजन को जमा करने और गर्म करने के लिए कांच के कंटेनर का उपयोग करना या प्लास्टिक की बोतलों से पानी की मात्रा को सीमित करना, हमारे सेवन को कम करने में मदद कर सकता है।

शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि प्रजनन को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारण निश्चित रूप से एक वास्तविकता हैं, हालांकि उन्हें निष्पक्ष रूप से मापना आसान नहीं है। शोध में अध्ययन किए गए रोगियों के दो-तिहाई से अधिक कूपिक द्रवों (फॉलिक्युलर फ्लुइड्स) और 50 फीसदी से अधिक वीर्य द्रवों में माइक्रोप्लास्टिक पाया। हालांकि इन निष्कर्षों का महत्व अभी तक स्पष्ट नहीं है, लेकिन इन्हें हमारे रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक के सामान्य उपयोग से बचने के पक्ष में एक अतिरिक्त तर्क माना जाना चाहिए।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि पिछले 75 सालों में वजन के हिसाब से सालाना प्लास्टिक उत्पादन में 250 गुना वृद्धि हुई है और 2060 तक यह फिर से तीन गुना होने की आशंका है।

प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने और मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए, यह आवश्यक होगा कि वैश्विक प्लास्टिक संधि, जिस पर वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र में बातचीत चल रही है, दुनिया भर में प्लास्टिक के उत्पादन को सीमित करना होगा।

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