राजस्थान: क्यों एनजीटी ने भोपालपुरा में एथनॉल प्लांट की जांच के दिए आदेश

गांव में गंभीर प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट के आरोप, राख-गंदे पानी से बिगड़ रही हवा, खेत, पानी और लोगों की सेहत
राजस्थान: क्यों एनजीटी ने भोपालपुरा में एथनॉल प्लांट की जांच के दिए आदेश
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  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राजस्थान के भोपालपुरा में एथनॉल प्लांट पर लगे प्रदूषण के गंभीर आरोपों की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति गठित की है।

  • समिति को प्लांट का दौरा कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।

  • आरोप है 2024 में संयंत्र शुरू होने के बाद से इलाके में गंभीर वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है। चिमनियों से भारी मात्रा में राख निकल रही है, जिससे हवा और खेत दोनों प्रदूषित हो रहे हैं।

  • शिकायत में दावा किया गया है कि यह संयंत्र पर्यावरण स्वीकृति की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है। इसमें बिना ट्रीटमेंट के कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन, राख को सीधे हवा में छोड़ना शामिल है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने राजस्थान के भोपालपुरा गांव स्थित 100 केएलडी क्षमता वाले एथनॉल प्लांट पर लगे गंभीर आरोपों की जांच के लिए दो सदस्यीय समिति गठित करने का आदेश दिया है। इस समिति में श्रीगंगानगर के एक प्रतिनिधि और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक सदस्य शामिल होंगे।

समिति से इस साइट का दौरा कर तथ्यात्मक रिपोर्ट और की गई कार्रवाई का ब्यौरा देने को कहा गया है। इस मामले में अदालत ने 16 सितम्बर 2025 को सुनवाई की थी।

गौरतलब है कि यह पूरा मामला राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के भोपालपुरा गांव स्थित करविज्य एथनॉक्सी प्राइवेट लिमिटेड (केईपीएल) द्वारा आवासीय इलाके के पास चलाए जा रहे अनाज-आधारित एथनॉल और 3 मेगावाट को-जनरेशन बिजली संयंत्र से जुड़ा है। इस उद्योग को 3 मार्च 2022 को पर्यावरण स्वीकृति दी गई थी, जिसके तहत 100 केएलडी एथनॉल संयंत्र और 3 मेगावाट का सह-उत्पादन बिजली संयंत्र स्थापित किया गया।

इस परियोजना को ईआईए अधिसूचना के तहत ‘बी2’ श्रेणी में रखा गया था, जिससे इसे अनिवार्य रूप से की जाने वाली जनसुनवाई से छूट मिल गई, जबकि यह प्लांट आवासीय, शैक्षणिक और कृषि क्षेत्र के बेहद नजदीक स्थित है।

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आरोप है 2024 में संयंत्र शुरू होने के बाद से इलाके में गंभीर वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है। चिमनियों से भारी मात्रा में राख निकल रही है, जिससे हवा और खेत दोनों प्रदूषित हो रहे हैं।

शिकायत में यह भी कहा गया है कि संयंत्र से निकलने वाला घना धुआं, हवा को जहरीला बना रहा है। तेज और असहनीय शोर ने आसपास के स्कूलों और आम जनजीवन को प्रभावित कर दिया है। गंदा पानी नालों और खेतों में छोड़ा जा रहा है, जो जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) नियम का सीधा उल्लंघन है। साथ ही, भूजल के अत्यधिक दोहन से इलाके में पानी की भारी कमी हो गई है।

प्लांट पर क्या कुछ लगे हैं आरोप

गांववालों ने फोटो, वीडियो, मेडिकल रिपोर्ट और लिखित शिकायतें सौंपकर स्थिति का सबूत दिया है। उनका कहना है कि प्रदूषण से सांस और त्वचा की बीमारियां बढ़ रही हैं, फसलें बर्बाद हो रही हैं और पीने का पानी भी घट रहा है। बार-बार की शिकायतों और विरोध-प्रदर्शन करने के बावजूद प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

शिकायत में यह भी दावा किया गया है कि यह संयंत्र पर्यावरण स्वीकृति की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है। इसमें बिना ट्रीटमेंट के कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन, राख को सीधे हवा में छोड़ना शामिल है।

इसके साथ ही प्लांट से निकलने वाले गंदे पानी को अवैध रूप से बाहर छोड़ा जा रहा है और भूजल का तय सीमा से अधिक दोहन किया जा रहा है। इसकी वजह से लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा हो रहा है।

जयपुर में जंगल की सुरक्षा पर उठे सवाल, एनजीटी ने जांच के लिए गठित की समिति

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 16 सितंबर 2025 को तीन सदस्यीय समिति के गठन के निर्देश दिए हैं। समिति को जंगल की जमीन पर अतिक्रमण के आरोपों की जांच के निर्देश दिए गए हैं। समिति से इस मामले में की गई कार्रवाई पर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश करने को कहा गया है।

यह मामला टाइम्स ऑफ इंडिया में 17 जुलाई 2025 को प्रकाशित एक खबर के आधार पर उठाया गया है, जिसमें कहा गया है कि “जयपुर में रोपवे स्टेशन पर जंगल की जमीन पर अवैध व्यावसायिक गतिविधियां” हो रही हैं।

एनजीटी ने वन विभाग/डीएफओ को जंगल की स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने और यदि अतिक्रमण पाया जाता है तो नियमों के अनुसार उसे हटाने या जमीन की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।

राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) ने जानकारी दी है कि 23 जुलाई 2025 को दिए एनजीटी के आदेश का पालन करते हुए साइट का निरीक्षण किया गया था और रिपोर्ट तैयार की जा रही है। बोर्ड ने जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है।

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