बिन मंजूरी खनन? गुणदेई रेत खदान में अनियमितताओं पर एनजीटी ने दिए जांच के आदेश

मामला ओडिशा के ढेंकनाल जिले के गुणदेई गांव में 11.8 एकड़ भूमि पर अवैध रेत खनन से जुड़ा है। इसे सतत रेत खनन प्रबंधन प्रबंधन दिशानिर्देश, 2016 का उल्लंघन माना जा रहा है
प्रतीकात्मक तस्वीर
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ओडिशा के ढेंकनाल जिले की गुणदेई ब्राह्मणी रेत खदान में अवैध रेत खनन के आरोपों की जांच के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच ने चार सदस्यीय संयुक्त समिति के गठन का आदेश दिया है। समिति खदान स्थल का निरीक्षण कर तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। यह आदेश 18 जुलाई, 2025 को दिया गया है।

इसके साथ ही अदालत ने ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण (एसईआईएए), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय कार्यालय और खदान के पट्टाधारक त्रिपुरारी साहू को नोटिस जारी करने का भी निर्देश दिया है।

मामला ओडिशा के ढेंकनाल जिले की ओडापाड़ा तहसील के गुणदेई गांव में 11.8 एकड़ भूमि पर अवैध रेत खनन से जुड़ा है। इसे सतत रेत खनन प्रबंधन प्रबंधन दिशानिर्देश, 2016 का उल्लंघन माना जा रहा है।

इस परियोजना को 30 मार्च, 2021 को एक वर्ष के लिए पर्यावरणीय मंजूरी दी गई थी, जिसमें शर्त थी कि यदि 15 मई, 2022 तक रेत पुनर्भरण अध्ययन नहीं दिया गया, तो अनुमति रद्द मानी जाएगी।

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गौरतलब है कि सतत रेत खनन प्रबंधन दिशानिर्देश, 2016 और एनजीटी के 12 दिसंबर, 2018 के आदेश के अनुसार, रेत खनन से पहले हर साल रेत के प्राकृतिक पुनर्भरण की दर का अध्ययन जरूरी होता है। लेकिन गुणदेई रेत खदान के लिए ऐसा कोई अध्ययन अब तक नहीं किया गया है।

यह भी आरोप है कि परियोजना से जुड़े लोगों ने न तो नदी की चौड़ाई की जानकारी दी है और न ही रेत ले जाने के रास्ते का विवरण साझा किया है। तहसीलदार की रिपोर्ट के मुताबिक, खनन क्षेत्र से नदी पर बना पुल करीब 7.4 किलोमीटर दूर है, जिससे परिवहन व्यवस्था पर भी सवाल उठ रहे हैं।

कहा गया है कि तहसीलदार को रेत के वार्षिक पुनर्भरण की दर का अध्ययन प्रस्तुत करना था, लेकिन 15 मई, 2022 तक यह रिपोर्ट नहीं दी गई। इसके बावजूद 12 जुलाई, 2023 को तहसीलदार, ओडापाड़ा के नाम जारी पर्यावरणीय मंजूरी मौजूदा पट्टाधारक त्रिपुरारी साहू के नाम पर ट्रांसफर कर दी गई।

आरोप यह भी है कि ढेंकनाल जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट को अब तक राज्य पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण, ओडिशा से स्वीकृत नहीं मिली है, इसलिए पर्यावरणीय मंजूरी का वर्तमान पट्टाधारक को स्थानांतरण भी वैध नहीं है।

यहां खनन पट्टे की शर्तों का भी उल्लंघन किया गया है। इसमें पट्टे की सीमा से बाहर खनन, मशीनों से खुदाई, तय मात्रा से अधिक रेत निकालना, भारी वाहनों ओवरलोडिंग की मदद से परिवहन, सड़क पर तय क्षमता से अधिक भार वाले वाहनों का चलना और नदी जल के प्रवाह पर अवरोध जैसे कई गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं।

यह भी बताया गया कि मानसून के बाद अनिवार्य पुनर्भरण रिपोर्ट भी प्रस्तुत नहीं की गई है।

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गौतम बुद्ध नगर के तालाबों पर अतिक्रमण, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

गौतम बुद्ध नगर जिले में मौजूद 1018 तालाबों में से करीब 50 हेक्टेयर हिस्से पर अतिक्रमण है। यह जानकारी जिलाधिकारी द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी गई रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, जिले के इन जल निकायों का कुल क्षेत्रफल 461.81 हेक्टेयर है, जिसमें से 49.99 हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण है। तहसील दादरी, सदर और जेवर के तहसीलदारों ने अतिक्रमण की पहचान कर ली है और इसे छह महीने के भीतर हटाने की योजना बनाई है।

हालांकि, एनजीटी ने रिपोर्ट को अधूरी मानते हुए नाराजगी जताई है। ट्रिब्यूनल ने कहा कि तालाबों के कुल आंकड़े तो दिए गए हैं, लेकिन प्रत्येक तालाब के राजस्व रिकॉर्ड और उस पर हुए अतिक्रमण का अलग-अलग विवरण रिपोर्ट में नहीं दिया गया है। ऐसे में जिला मजिस्ट्रेट की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता ने पूरा विवरण देने के लिए अदालत से तीन सप्ताह का समय मांगा है, ताकि तीनों तहसीलों—दादरी, सदर और जेवर—के प्रत्येक तालाब का पूरा ब्यौरा अदालत में पेश किया जा सके।

इस मामले में अगली सुनवाई 17 अक्टूबर 2025 को होगी।

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