हल्दी या धीमा जहर? भारत के कुछ हिस्सों में हल्दी में 200 गुणा अधिक पाई गई सीसे की मात्रा

पटना, कराची और पेशावर से लिए हल्दी के नमूनों में सीसे का स्तर 1,000 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम से अधिक पाया गया। इन सैम्पल्स में लेड का स्तर तय मानकों से 200 गुणा अधिक था
हल्दी या धीमा जहर? भारत के कुछ हिस्सों में हल्दी में 200 गुणा अधिक पाई गई सीसे की मात्रा
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भारत में कई सदियों से हल्दी का उपयोग होता आया है। यह एक ऐसा मसाला है जो करीब-करीब सभी के घरों में उपयोग किया जाता है। इतना ही नहीं अपने अनोखे गुणों के चलते यह स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद समझी जाती है। लेकिन एक नए अध्ययन में भारत में हल्दी को लेकर जो खुलासे किए हैं वो बेहद चिंताजनक हैं।

भारत और अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन के मुताबिक भारत के कुछ हिस्सों से लिए हल्दी के नमूनों में सीसे (लेड) की मात्रा तय मानकों से 200 गुणा अधिक थी।

इस अध्ययन के मुतबिक न केवल भारत बल्कि नेपाल और पाकिस्तान में बेची जा रही हल्दी में सीसे की मात्रा तय मानकों से कई गुणा अधिक पाई गई। गौरतलब है कि हल्दी एक ऐसा मसाला है जिसका भारत में करीब-करीब हर दिन सेवन किया जाता है।

यह अध्ययन अमेरिका में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन, हूवर इंस्टिट्यूशन, प्योर अर्थ और नई दिल्ली स्थित फ्रीडम एम्प्लॉयबिलिटी अकादमी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं। 

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अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दिसंबर 2020 से मार्च 2021 के बीच भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल के 23 प्रमुख शहरों से इकट्ठा किए गए हल्दी के नमूनों का विश्लेषण किया है। अध्ययन के दौरान हल्दी के कुल 356 नमूने एकत्र किए गए। इनमें से 180 नमूने हल्दी की जड़ों के जबकि 176 नमूने हल्दी पाउडर के थे।

आंकड़ों के मुताबिक भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल दुनिया की 80 फीसदी से ज्यादा हल्दी पैदा करते हैं। साथ ही यह देश दुनिया की करीब 22 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक इन शहरों से एकत्र किए गए हल्दी के 14 फीसदी नमूनों में लेड का स्तर दो माइक्रोग्राम प्रति ग्राम से अधिक था। वहीं सात फीसदी नमूनों में लेड का स्तर एफएसएसएआई द्वारा जारी मानकों से कहीं ज्यादा था।

वहीं चिंता की बात यह रही कि भारत के पटना और पाकिस्तान के कराची एवं पेशावर से लिए हल्दी के नमूनों में सीसे का स्तर 1,000 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम से अधिक पाया गया। मतलब की इन नमूनों में लेड का स्तर तय मानकों से करीब 200 गुणा अधिक था।

विश्लेषण के मुताबिक पटना से लिए गए करीब-करीब सभी नमूनों में लेड की कुछ न कुछ मात्रा मौजूद था, जिसे मापा जा सकता था। यदि औसत रूप से देखें तो यहां से लिए नमूनों में लेड की औसत मात्रा 1,232 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम थी, जबकि अधिकतम मात्रा 2,274 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम तक दर्ज की गई।

वहीं कराची से लिए गए हल्दी के आधे नमूनों में लेड मौजूद था, जिनकी औसत मात्रा तीन माइक्रोग्राम प्रति ग्राम रही। वहीं इसका अधिकतम स्तर 2,936 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम तक रिकॉर्ड किया गया।

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स्वास्थ्य को महंगी पड़ रही मुनाफे की भूख

इसी तरह गुवाहाटी और चेन्नई से लिए सैम्पल्स में भी लेड की मात्रा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा तय सीमा से अधिक पाई गई। गौरतलब है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2011 के मुताबिक साबुत और पिसी हल्दी में लेड की तय स्वीकार्य सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम है।

वहीं गुवाहाटी से लिए नमूनों में लेड का अधिकतम स्तर 127 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम रहा। इसी तरह लखनऊ, चंडीगढ़, चेन्नई, भुवनेश्वर और अमृतसर से लिए नमूनों में लेड मौजूद था।

अध्ययन के मुताबिक पॉलिश की गई हल्दी की जड़ें सबसे अधिक प्रदूषित पाई गई। जिन नमूनों में दस माइक्रोग्राम प्रति ग्राम से अधिक लेड पाया गया वो ज्यादातर हल्दी की जड़ों के (14 नमूनों) ही थे। इसके बाद खुले पाउडर, हल्दी के पैकेज्ड ब्रांडेड पाउडर में लेड का उच्च स्तर दर्ज किया गया।

बता दें कि हल्दी को पीला और चमकदार बनाने के लिए लेड क्रोमेट नामक जहरीले केमिकल का उपयोग किया जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए नुकसान देह साबित हो सकता है। हालांकि एफएसएसएआई द्वारा जारी नियमों के अनुसार, हल्दी में लेड क्रोमेट, स्टार्च या किसी भी अन्य तरह का रंग नहीं होना चाहिए।

अध्ययन में आशंका जताई गई है कि हल्दी के जिन नमूनों में लेड तय सीमा से अधिक पाया गया, उनमें इनकी मौजूदगी लेड क्रोमेट की वजह से थी। लेड क्रोमेट पेंट, रबर और प्लास्टिक जैसी चीजों में इस्तेमाल होने वाला एक पीला केमिकल है। गौरतलब है कि बांग्लादेश और अमेरिका सहित कई देशों में इसकी वही से लेड पाए जाने की पुष्टि हुई है।

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गौरतलब है कि दुनिया के सामने लेड एक बड़ा खतरा है, जो हर साल 55.5 लाख जिंदगियां निगल रहा है। बता दें कि लेड एक तरह का हैवी मेटल है, जो शरीर के लिए बेहद हानिकारक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लेड को स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक दस प्रमुख केमिकल्स की लिस्ट में शामिल किया है।

यह जहरीली धातु हवा, पानी, मिटटी और भोजन के साथ-साथ इंसानी शरीर को भी दूषित कर रही है। इसका सबसे ज्यादा बोझ बच्चों को ढोना पड़ रहा है, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से आघात कर रहा है। यह दिल, दिमाग और मेटाबोलिज्म को भी नुकसान पहुंचा सकती है। विशेषज्ञों का मत है कि सीसा, स्वास्थ्य को हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी खाने पीने की चीजों में लेड की मौजूदगी को हानिकारक माना है।

कमजोर कर रहा शरीर में घुलता जहर

जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के मुताबिक इस जहरीली धातु के संपर्क में आने से पांच वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों में 76.5 करोड़ आईक्यू अंकों का नुकसान हुआ था। बता दें कि आईक्यू एक प्रकार का मानक स्कोर है जो दर्शाता है कि कोई व्यक्ति या बच्चा दिमागी रूप से कितना सक्षम है। मतलब की बच्चों के शरीर में इसका बढ़ता स्तर उनके पढ़ने लिखने और समझने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि लेड पॉइजनिंग की वजह से सालाना 15 लाख से ज्यादा मौतें हो रहीं हैं, जबकि करोड़ों बच्चे इसके बढ़ते प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण जीवनभर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं। इनमें एनीमिया, उच्च रक्तचाप, इम्यूनोटॉक्सिसिटी और जनन अंगों पर पड़ता प्रभाव जैसी समस्याएं शामिल हैं।

विश्व बैंक से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि विकासशील देशों के करीब 47 फीसदी बच्चों के रक्त में लेड की मात्रा पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा है। वहीं 28 फीसदी बच्चों में यह मात्रा दस माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा है।

2020 में यूनिसेफ ने भी बच्चों के स्वास्थ्य पर लेड प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जताई थी। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट 'द टॉक्सिक ट्रुथ' में कहा कि दुनिया के हर तीसरे बच्चे के रक्त में लेड की मात्रा पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर की तय सीमा से कहीं ज्यादा है, जोकि उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है। मतलब की दुनिय में 80 करोड़ बच्चों के रक्त में लेड का स्तर तय सीमा से कहीं ज्यादा है।

यदि डब्लूएचओ द्वारा लेड को लेकर जारी गाइडलाइन्स को देखें तो रक्त में लेड की पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा मात्रा स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। गौरतलब है कि बचपन में लम्बे समय तक इसके संपर्क में रहने से हृदय रोग, लीवर, किडनी सम्बन्धी बीमारियों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य और सोचने समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

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