स्वास्थ्य संकट: सालाना 55 लाख से ज्यादा जिंदगियां निगल रहा लेड, बच्चों के दिमाग को भी बना रहा है कमजोर

दुनिया के लिए लेड यानी सीसा कितना बड़ा खतरा बन चुका है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह हर साल 55.5 लाख जिंदगियों को छीन रहा है।
इंसानी शरीर में बढ़ता प्रदूषण का बोझ; इलस्ट्रेशन: आईस्टॉक
इंसानी शरीर में बढ़ता प्रदूषण का बोझ; इलस्ट्रेशन: आईस्टॉक
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दुनिया के लिए लेड यानी सीसा एक गंभीर खतरा बन चुका है, जो हर साल तकरीबन 55.5 लाख जिंदगियों को निगल रहा है। बता दें कि 2019 के दौरान मारे गए इन सभी वयस्कों की मौत लेड के संपर्क में आने के चलते ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों के कारण हुई थी। इतना ही नहीं लेड का संपर्क बच्चों को भी दिमागी रूप से कमजोर बना रहा है।

जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक इस जहरीली धातु के संपर्क में आने से पांच वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों में 76.5 करोड़ आईक्यू अंकों का नुकसान हुआ था। बता दें कि आईक्यू एक प्रकार का मानक स्कोर है जो दर्शाता है कि कोई व्यक्ति या बच्चा दिमागी रूप से कितना सक्षम है।

गौरतलब है कि इसका सबसे ज्यादा बोझ निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर पड़ रहा है। रिसर्च के अनुसार वैश्विक स्तर पर सीसे के संपर्क में आने से होने वाली 90 फीसदी यानी 50 लाख से ज्यादा मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में दर्ज की गई थी। इनमें से भी करीब 68 फीसदी मौतें दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में दर्ज की गई।

इसी तरह बच्चों के आईक्यू को होने वाला करीब 95.3 फीसदी मतलब 72.9 करोड़ आईक्यू अंकों का नुकसान इन्हीं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रिकॉर्ड किया गया था। शोधकर्ताओं का यह भी अनुमान है कि इसके चलते भविष्य में प्रभावित बच्चों की कुल आय 12 फीसदी तक कम हो सकती है।

गौरतलब है कि यह कोई पहला मौका नहीं है जब लेड से स्वास्थ्य पर  पड़ने वाले प्रभावों को उजागर किया गया है। इससे पहले ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2019 में भी लेड प्रदूषण से होने वाली मौतों और दिमाग पर पड़ने वाले असर को उजागर किया गया था। हालांकि इस नए अध्ययन में जो आंकड़े सामने आए हैं वो पिछले अनुमानों से कहीं ज्यादा हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी लेड को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक दस प्रमुख केमिकल्स की लिस्ट में शामिल किया है। यह जहरीले धातु हवा, पानी, मिटटी और भोजन के साथ-साथ इंसानी शरीर को भी दूषित कर रही है। इसका सबसे ज्यादा बोझ बच्चों पर पड़ रहा है। जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रहा है। हालांकि यह स्वास्थ्य को अनुमान से कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है।

पिछले अनुमान से कई गुणा ज्यादा है लेड का बोझ

बता दें कि ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी (जीबीडी स्टडी) 2019 में हृदय संबंधी रोगों से होने वाली साढ़े आठ लाख मौतों के लिए लेड को जिम्मेवार माना था। रिसर्च के मुताबिक इन निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लेड के संपर्क में आने से आईक्यू को होने वाला नुकसान पिछले अनुमान से 80 फीसदी अधिक है।

इसी तरह रिसर्च में लेड की वजह से होने वाली मौतें भी ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2019 के अनुमान से छह गुणा अधिक दर्ज की गई है। जो दर्शाता है कि हृदय सम्बन्धी बीमारियों से होने वाली करीब 30 फीसदी मौतों के लिए लेड का संपर्क जिम्मेवार है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसका मतलब है कि धूम्रपान या कोलेस्ट्रॉल की तुलना में सीसे का संपर्क हृदय रोग का कहीं ज्यादा बड़ा कारण है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि लेड पॉइजनिंग की वजह से हर साल 10 लाख से ज्यादा मौतें हो रहीं हैं, जबकि करोड़ों बच्चे इसके बढ़ते प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण जीवनभर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं। इनमें एनीमिया, उच्च रक्तचाप, इम्यूनोटॉक्सिसिटी और जनन अंगों पर पड़ता प्रभाव जैसी समस्याएं शामिल हैं।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि लेड की वजह से विकासशील देशों में बच्चों ने अपने जीवन के शुरूआती वर्षों में औसतन प्रति बच्चा 5.9 आईक्यू अंकों की हानि का अनुभव किया था। वर्ल्ड बैंक से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने अपनी इस नई रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया है कि विकासशील देशों के करीब 47 फीसदी बच्चों के रक्त में लेड की मात्रा पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा दर्ज की गई, जबकि 28 फीसदी बच्चों के रक्त में लेड की मात्रा दस माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा थी।

बच्चों के लिए है बड़ा खतरा

2020 में यूनिसेफ ने भी बच्चों के स्वास्थ्य पर लेड प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई थी। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट 'द टॉक्सिक ट्रुथ' में कहा था कि दुनिया के हर तीसरे बच्चे के रक्त में लेड की मात्रा पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर तय सीमा से कहीं ज्यादा है, जोकि उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है। अनुमान है कि दुनिया के करीब 80 करोड़ बच्चों के रक्त में लेड की मात्रा पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा है।

यदि डब्लूएचओ द्वारा लेड को लेकर जारी गाइडलाइन्स को देखें तो रक्त में लेड की पांच माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा मात्रा स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। गौरतलब है कि बचपन में लम्बे समय तक इसके संपर्क में रहने से हृदय रोग, लीवर, किडनी सम्बन्धी बीमारियों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य और सोचने समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।

लेड बच्चों की दिमागी कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है, जिसकी वजह से उनके मानसिक विकास और सोचने समझने की क्षमता पर असर पड़ता है। इतना ही नहीं यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, प्रजनन प्रणाली, गुर्दे, हृदय के साथ रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली सहित शरीर की कई महत्वपूर्ण प्रणालियों के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

यह भी सामने आया है कि दुनिया में बौद्धिक विकलांगता के करीब 62.5 फीसदी के लिए लेड एक वजह था। साथ ही हाई ब्लड प्रेशर के कारण बढ़ते ह्रदय रोग के 7.2 फीसदी मामलों, और स्ट्रोक के 5.7 फीसदी बोझ के लिए कहीं हद तक लेड जिम्मेवार था।

वहीं इससे जुड़े आर्थिक नुकसान को देखें तो रिसर्च के मुताबिक सीसे के संपर्क में आने से 2019 में 500.2 लाख करोड़ रुपए (600,000) करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ था। जो वैश्विक जीडीपी के करीब सात फीसदी के बराबर है। इसका सबसे ज्यादा बोझ विकासशील देशों पर पड़ रहा है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2019 की ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के लिए 183 देशों से जुटाए आंकड़ों का उपयोग किया गया है, जिनमें रक्त में मौजूद सीसे के स्तर का अनुमान लगाया गया था। शोधकर्ताओं के मुताबिक पिछले शोध में जहां केवल उच्च रक्तचाप के संबंध में हृदय रोग पर सीसे के प्रभावों का अध्ययन किया गया था। वहीं इस नए अध्ययन में कई अन्य वजहों की जांच की है जो ह्रदय पर सीसे के पड़ते प्रभावों को उजागर करती हैं। इनमें धमनियों का सख्त होना भी शामिल है, जो स्ट्रोक में योगदान कर सकता है।

सीएसई भी खतरे को लेकर कर चुका है आगाह

हालांकि डब्लूएचओ ने यह भी माना है कि लेड के संपर्क में आने का कोई भी स्तर सुरक्षित नहीं है। इसकी मामूली सी मात्रा भी बच्चों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकती है। बता दें कि भारतीय बाजारों में बिकने वाले पेंट में मौजूद लेड को लेकर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी अध्ययन किया है, जिसमें इसकी भारी मात्रा पाई गई थी। सीएसई के इस अध्ययन के मुताबिक करीब 72 फीसदी पेंट सैम्पल्स में लेड की मात्रा ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) द्वारा तय मानकों से ज्यादा थी।

देखा जाए तो इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि पिछले दशक पेंट युक्त लेड के उपयोग में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। दुनिया के 84 से भी ज्यादा देशों ने लेड युक्त पेंट के उत्पादन, आयात और बिक्री को सीमित करने के लिए कानून बनाए हैं। इसी तरह पेट्रोल में भी इसके उपयोग पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। वैश्विक स्तर पर देखें तो अब दुनिया भर के वाहनों में उपयोग होने वाला फ्यूल अब पूरी तरह लेड मुक्त है।

इसी तरह दुनिया का कोई भी पेट्रोल पंप अब लेड युक्त फ्यूल और पेट्रोल नहीं बेचता। अल्जीरिया वो आखिरी देश था जिसने अगस्त 2021 में इसके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। वहीं भारत ने इसपर 1994 से काम करना शुरू किया था और अप्रैल 2000 में  इसका उपयोग पूरी तरह बंद कर दिया था।

लेकिन इसके बावजूद अभी भी लोग भोजन, मिट्टी, कुकवेयर, उर्वरक, सौंदर्य प्रसाधन, लेड युक्त बैटरी और अन्य स्रोतों के माध्यम से इस जानलेवा न्यूरोटॉक्सिन के संपर्क में आने को मजबूर हैं। इसको पर्यावरण से दूर करने के लिए अभी और प्रयास करने की जरूरत है। लेड के उपयोग को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ इसके संपर्क में आने की निगरानी और प्रबंधन जैसे उपायों की मदद से लेड पॉइजनिंग को पूरी तरह से रोका जा सकता है।

एक डॉलर = 83.37 भारतीय रुपए

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