वैश्विक स्तर पर हर तीन में से एक बच्चे के रक्त में लेड (सीसे) की मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा है, जोकि उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। मतलब कि दुनिया में 80 करोड़ से ज्यादा बच्चों के स्वास्थ्य पर लेड प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है।
इतना ही नहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का अनुमान है कि लेड पॉइजनिंग की वजह से हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, जबकि करोड़ बच्चे इसके बढ़ते प्रदूषण के संपर्क में आने के कारण जीवनभर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करने को मजबूर हैं। इनमें एनीमिया, उच्च रक्तचाप, इम्यूनोटॉक्सिसिटी और जनन अंगों पर पड़ता प्रभाव जैसी समस्याएं शामिल हैं।
यदि डब्लूएचओ द्वारा लेड को लेकर जारी गाइडलाइन्स को देखें तो रक्त में लेड की 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा मात्रा स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। गौरतलब है कि बचपन में लम्बे समय तक इसके संपर्क में रहने से हृदय रोग, लीवर, किडनी सम्बन्धी बीमारियों से लेकर मानसिक स्वास्थ्य और सोचने समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
देखा जाए तो लेड बच्चों के लिए विशेष तौर पर खतरनाक है, यह उनके दिमाग की कोशिकाओं को नष्ट कर सकता है, जिसकी वजह से उनके मानसिक विकास और सोचने समझने की क्षमता पर असर पड़ता है।
स्वस्थ के लिए गंभीर खतरा है लेड पॉइजनिंग
इस बारे में डब्ल्यूएचओ के पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य विभाग की निदेशक डॉक्टर मारिया नेरा का कहना है कि लेड का संपर्क बच्चों के दिमागी विकास के लिए विशेषरूप से खतरनाक है। इसके चलते उनके आईक्यू, ध्यान लगाने और सीखने की क्षमता के साथ व्यवहार संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है। उनके अनुसार देखा जाए तो इस खतरे को रोका जा सकता है लेकिन इसका संपर्क बच्चों के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है।
इतना ही नहीं पता चला है कि लेड मस्तिष्क, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, प्रजनन प्रणाली, गुर्दे, हृदय के साथ रक्त और प्रतिरक्षा प्रणाली सहित शरीर की कई महत्वपूर्ण प्रणालियों के लिए खतरा पैदा कर सकता है।
अनुमान है कि स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभावों के कारण वैश्विक स्तर पर 2.2 करोड़ वर्षों के विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों (डीएएलवाइ) के बराबर हानि हुई थी डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि बौद्धिक क्षमता में 30 फीसदी की गिरावट, 4.6 फीसदी हृदय रोगों और 3 फीसदी क्रोनिक किडनी डिजीज के लिए लेड ही जिम्मेवार है।
वैश्विक स्तर पर लेड प्रदूषण के लिए कई कारण जिम्मेवार हैं जिनमें खनन, धातु गलाने के कारखाने, इलेक्ट्रॉनिक कचरा, लेड-एसिड बैटरियों का पुनर्चक्रण और गोला-बारूद जैसे कई स्रोत हैं जो विशेष तौर पर विकासशील देशों में बच्चों और किशोरों के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं।
इनके अलावा घरों, स्कूलों, अस्पतालों, दफ्तरों और खेल के मैदानों में भी लेड युक्त पेंट का उपयोग और खिलौनों के साथ-साथ सिरेमिक और कुछ पारंपरिक दवाओं और सौंदर्य प्रसाधनों के माध्यम से बच्चों और बड़ों में लेड प्रदूषण का खतरा बढ़ रहा है।
जरूरी है रोकथाम
इसी के मद्देनजर सभी देशों में विशेष रूप से बच्चों में बढ़ते लेड एक्सपोजर को रोकने और लोगों को लेड पॉइजनिंग के बारे में जागरूक करने के लिए वैश्विक स्तर पर इस सप्ताह को 10वें अंतर्राष्ट्रीय लेड पॉइजनिंग प्रिवेंशन वीक के रूप में मनाया जा रहा है। इसकी थीम 'से नो टू लेड पॉइजनिंग' है।
डब्ल्यूएचओ ने भी इस बात पर जोर दिया है कि लेड एक्सपोजर के स्रोतों की पहचान की जानी चाहिए और जिन लोगों के शरीर में इसकी मात्रा 5 माइक्रोग्राम प्रति डेसीलीटर से ज्यादा हैं उनको इसके संपर्क में आने से रोकने के लिए तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।
हालांकि डब्लूएचओ के अनुसार लेड के संपर्क में आने का कोई सुरक्षित स्तर नहीं है। इसकी मामूली सी मात्रा भी विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य को हानि पहुंचा सकती है। गौरतलब है कि पेंट में मौजूद लेड को लेकर भारत में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा भी एक अध्ययन किया गया था, जिसमें इसकी भारी मात्रा पाई गई थी। इस अध्ययन के मुताबिक करीब 72 फीसदी पेंट सैम्पल्स में लेड की मात्रा ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (बीआईएस) द्वारा तय मानकों से ज्यादा थी।
देखा जाए तो पिछले 10 वर्षों में पेंट में होते लेड के उपयोग में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है। दुनिया के 84 से भी ज्यादा देशों के पास अब लेड पेंट के उत्पादन, आयात और बिक्री को सीमित करने के लिए कानून बनाए गए है। इसी तरह से पेट्रोल में भी इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो अब दुनिया भर के वाहनों में उपयोग होने वाला फ्यूल अब पूरी तरह लेड मुक्त है। अब दुनिया का कोई भी पेट्रोल पंप लेड युक्त फ्यूल और पेट्रोल नहीं बेचता है। अगस्त 2021 में अल्जीरिया वो आखिरी देश था जिसने इसके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। भारत ने इसपर 1994 से काम करना शुरू किया था फिर अप्रैल 2000 में इसका उपयोग पूरी तरह बंद कर दिया गया था।
लेकिन इसके बावजूद अभी और काम किया जाना बाकी है। लेड के उपयोग को प्रतिबंधित करने के साथ-साथ इसके संपर्क में आने की निगरानी और प्रबंधन जैसे उपायों की मदद से लेड पॉइजनिंग को पूरी तरह से रोका जा सकता है।