

एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जहरीली हवा में लंबे समय तक सांस लेने से कसरत के फायदे काफी कम हो जाते हैं।
चाहे कैंसर से हो या दिल की बीमारी या अन्य रोग, नियमित कसरत इससे होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम कर देती है, लेकिन जहां हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होता है, वहां कसरत का असर काफी कमजोर पड़ जाता है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि जहां पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या उससे अधिक था, वहां कसरत के स्वास्थ्य को मिलने वाले फायदे काफी कम हो जाते हैं। गौरतलब है कि दुनिया की करीब 46 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहां पीएम2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या उससे अधिक है।
हर दिन लाखों लोग अपनी सेहत में सुधार के लिए चलते, दौड़ते, योग करते और जिम जाते हैं। लेकिन एक नई अंतराष्ट्रीय स्टडी से पता चला है कि अगर हवा में जहर घुला है, तो यह मेहनत शरीर को मजबूत करने के बजाय खुद कमजोर कर सकती है।
एक नई स्टडी से पता चला है कि लंबे समय तक जहरीली हवा में सांस लेना हमारी सेहत पर दोहरी मार करता है। कसरत से मिलने वाले फायदे भी ऐसे माहौल में काफी हद तक कम हो जाते हैं। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) सहित कई देशों के वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल बीएमसी मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यूके, ताइवान, चीन, डेनमार्क और अमेरिका के 15 लाख से अधिक वयस्कों के दस साल से ज्यादा समय तक जुटाए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया है।
कैसे कसरत के फायदों को सीमित करती है जहरीली हवा
शोधकर्ताओं ने पाया है चाहे कैंसर से हो या दिल की बीमारी या अन्य रोग, नियमित कसरत इससे होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम कर देती है, लेकिन जहां हवा में प्रदूषण का स्तर अधिक होता है, वहां कसरत का असर काफी कमजोर पड़ जाता है। हालांकि वैज्ञानिकों ने माना है कि यह असर पूरी तरह खत्म नहीं होता।
इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने हवा में मौजूद प्रदूषण के बेहद महीन कणों (पीएम2.5) का अध्ययन किया है। इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है। यानी ये कण इतने छोटे होते हैं कि फेफड़ों में फंसकर सीधे रक्त में पहुंच सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि जहां पीएम2.5 का वार्षिक औसत स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या उससे अधिक था, वहां कसरत के स्वास्थ्य को मिलने वाले फायदे काफी कम हो जाते हैं। गौरतलब है कि दुनिया की करीब 46 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है, जहां पीएम2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या उससे अधिक है।
ताइवान की नेशनल चुंग हसिंग यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर पो-वेन कु का इस बारे में प्रेस विज्ञप्ति में कहना है, “कसरत प्रदूषित हवा में भी फायदेमंद है, लेकिन साफ हवा होने पर ये फायदे कई गुणा बढ़ जाते हैं।”
वहीं यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से जुड़े प्रोफेसर एंड्रयू स्टेप्टो के मुताबिक, साफ हवा और नियमित शारीरिक गतिविधियां, दोनों स्वस्थ रहने के लिए बेहद जरूरी हैं।
सांसों में जहर, शरीर में कमजोरी
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पहले किए सात अन्य शोधों के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया, जिनमें से तीन अब तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। इन आंकड़ों के समग्र विश्लेषण से पता चला कि जो लोग हर सप्ताह कम से कम ढाई घंटे मध्यम या तीव्र व्यायाम करते थे, उनका मृत्यु का जोखिम उन लोगों की तुलना में 30 फीसदी कम था, जो इस स्तर का व्यायाम नहीं करते थे।
लेकिन यदि अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक रहने वाले यह लोग ऐसे इलाकों में रहते हैं जहां पीएम2.5 का स्तर 25 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर या उससे अधिक है तो उनमें कसरत का यह फायदा घटकर 12 से 15 फीसदी रह गया।
इतना ही नहीं जहां पीएम2.5 का स्तर 35 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ऊपर था, वहां कसरत के फायदे और भी कमजोर हो गए। खासकर कैंसर के मामले में कसरत के यह फायदे करीब-करीब खत्म से हो गए। गौरतलब है कि दुनिया की करीब 36 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है जहां पीएम2.5 का स्तर इस ऊपरी सीमा को भी पार कर जाता है।
गौरतलब है कि भारत की पूरी आबादी ऐसे इलाकों में रहती है, जहां पीएम2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित मानकों से अधिक है। स्वीडन स्थित कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट की एक रिसर्च के मुताबिक, 2009 से 2019 के दशक में भारत में वायु प्रदूषण की वजह से 38 लाख लोगों की जान गई थी, क्योंकि हवा में पीएम2.5 की मात्रा 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कहीं ज्यादा पहुंच गई।
वायु गुणवत्ता पर नजर रखने वाले अंतराष्ट्रीय संगठन आईक्यू एयर द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों की लिस्ट में भारत पांचवें स्थान पर है, जहां 2024 में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी मानकों के लिहाज से देखें तो देश में वायु गुणवत्ता दस गुणा खराब है। 2023 में इस लिस्ट में भारत तीसरे स्थान पर था।
यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के मुताबिक दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। यहां वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि वो हर दिल्लीवासी से उसके के जीवन के औसतन 10.1 साल छीन रही है।
अध्ययन से जुड़ी शोधकर्ता यूसीएल की प्रोफेसर पाओला जनिनोट्टो का कहना है, “हम लोगों को बाहर व्यायाम करने से रोकना नहीं चाहते। बस हवा की गुणवत्ता देख लें, साफ रास्ते चुनें और ज्यादा प्रदूषण वाले दिनों में थोड़ी कम कसरत करें, इससे आप व्यायाम का पूरा फायदा उठा पाएंगे।”
यह अध्ययन मुख्यतः अमीर देशों में हुआ है, इसलिए नतीजे उन देशों पर पूरी तरह लागू नहीं हो सकते जहां वायु प्रदूषण अक्सर 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से भी ऊपर रहता है। देखा जाए तो भारत के कई शहरों में ऐसी ही स्थिति रहती है। मतलब की वहां हालात और भी ज्यादा बदतर हो सकते हैं।
अध्ययन का सन्देश साफ है- कसरत जरूरी है, लेकिन साफ हवा उससे भी ज्यादा जरूरी है। अगर हवा साफ होगी, तभी व्यायाम का पूरा फायदा हमारे शरीर को मिल पाएगा।
भारत में वायु प्रदूषण से जुड़े ताजा अपडेट आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।