वायु प्रदूषण और शोर की दोहरी मार से बढ़ सकता है स्ट्रोक का खतरा, रिसर्च में हुआ खुलासा

वैज्ञानिकों के मुताबिक वायु प्रदूषण और ट्रैफिक का शोर, दोनों ही सेहत के लिए खतरनाक हैं। लेकिन इन दोनों के मेल से स्ट्रोक का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है
प्रदूषण और शोर से जूझते इलाकों की पहचान कर वहां इन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
प्रदूषण और शोर से जूझते इलाकों की पहचान कर वहां इन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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अगर आपको लगता है कि हवा में घुला जहर आपकी सेहत बिगाड़ रहा है, तो जरा ठहरिए। एक नई स्टडी में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण और सड़कों का शोर, दोनों मिलकर दिमाग पर डबल अटैक कर रहे हैं।

स्वीडन के करोलिंस्का संस्थान के इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायर्नमेंटल मेडिसिन (आईएमएम) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि वायु प्रदूषण और ट्रैफिक का शोर अलग-अलग तो खतरनाक हैं ही, लेकिन इन दोनों के मेल से स्ट्रोक यानी ब्रेन अटैक का खतरा और बढ़ सकता है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ताओं ने पाया है कि यह खतरा तब भी बना रहता है जब प्रदूषण और शोर का स्तर मानकों के भीतर रहता है। शोधकर्ताओं ने यह गणना यूरोपियन यूनियन के वायु गुणवत्ता मानकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा ध्वनि प्रदूषण को लेकर जारी मानकों के आधार पर की है।

अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने स्वीडन, डेनमार्क और फिनलैंड के 136,897 वयस्कों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

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प्रदूषण और शोर से जूझते इलाकों की पहचान कर वहां इन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता है; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि प्रदूषण के महीन कणों यानी पीएम2.5 के स्तर में पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से स्ट्रोक का खतरा नौ फीसदी बढ़ जाता है। वहीं ट्रैफिक शोर में 11 डेसिबल की बढ़ोतरी से यह खतरा 6 फीसदी बढ़ जाता है। वहीं यदि यह दोनों एक साथ हो तो खतरा और भी ज्यादा बढ़ सकता है।

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि शांत क्षेत्रों में जहां ध्वनि का स्तर 40 डेसिबल था, वहां पीएम2.5 में बढ़ोतरी से स्ट्रोक का खतरा छह फीसदी बढ़ गया। वहीं दूसरी तरफ शोर वाले इलाकों (80 डेसिबल) में यह खतरा बढ़कर 11 फीसदी तक पहुंच गया।

देखा जाए तो भले ही यह शोध यूरोपियन लोगों पर किया गया है पर इसके नतीजे भारतीय शहरों के लिए भी खतरे की घंटी की तरह हैं, क्योंकि इन शहरों में प्रदूषण के साथ-साथ ट्रैफिक का शोर भी बहुत ज्यादा होता है।

वायु प्रदूषण और शोर से जूझ रहा है भारत

भारत में वायु प्रदूषण की समस्या किस कदर गंभीर है इसका खुलासा कई राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय रिपोर्टों में भी किया गया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक नए विश्लेषण से पता चला है इस बार सर्दियों के दौरान दिल्ली में एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब हवा को साफ कहा जा सके।

इस दौरान दिल्ली में स्थिति किस कदर खराब थी इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आठ दिन वायु गुणवत्ता 'बेहद गंभीर', 12 दिन 'गंभीर' वहीं 68 दिन 'बेहद खराब' थी।

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रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि बढ़ते प्रदूषण का असर इन सभी महानगरों पर पड़ रहा है, यहां तक कि कोलकाता और हैदराबाद जैसे शहर जहां भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों कहीं ज्यादा अनुकूल हैं, उन महानगरों में भी स्थिति चिंताजनक है।

अंतराष्ट्रीय संगठन आईक्यू एयर ने भी अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की है कि भारत, दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों की लिस्ट में पांचवें स्थान पर है, जहां 2024 में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत स्तर 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकॉर्ड किया गया था। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी मानकों के लिहाज से देखें तो देश में वायु गुणवत्ता दस गुणा खराब है। वहीं 2023 में इस लिस्ट में भारत तीसरे स्थान पर था।

भारत में स्थिति किस कदर खराब है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया में सबसे खराब हवा वाले 100 स्थानों में से 74 भारत में हैं।

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जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि प्रदूषित हवा में थोड़े समय के लिए भी सांस लेने से हमारे सोचने-समझने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इसकी वजह से भावनाओं को नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है।

सख्त नियमों की है दरकार

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि वायु प्रदूषण और ट्रैफिक से हो रहे शोर के संयुक्त प्रभावों पर बहुत कम अध्ययन हुए हैं। उनके अध्ययन से पता चला है कि वायु और ध्वनि प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानकों के भीतर होने के बावजूद स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है। इसका मतलब है कि मौजूदा नियम और प्रदूषण की सुरक्षित सीमा भी लोगों के स्वास्थ्य को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे पा रहे।

ऐसे में उनके अनुसार स्ट्रोक और अन्य बीमारियों के जोखिम को कम करने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है। साथ ही प्रदूषण से जूझते इलाकों की पहचान कर वहां प्रदूषण और शोर को नियंत्रित करने की जरूरत है।

शोधकर्ताओं को भरोसा है कि इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो सरकार और नीति निर्माताओं को बेहतर योजना बनाने में मदद कर सकते हैं। अगर प्रयास उन जगहों पर केंद्रित किए जाएं जहां लोगों को भारी प्रदूषण और ट्रैफिक के शोर दोनों का सामना करना पड़ता है, तो इससे स्ट्रोक के मामलों को कम करने के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।

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अगले चरण में शोधकर्ता यह अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं कि रहने की जगह बदलने से यानी कम या ज्यादा प्रदूषण वाले इलाके में जाने से सेहत पर क्या असर पड़ता है। साथ ही वह यह भी जानना चाहते हैं कि वायु प्रदूषण, हृदय संबंधी बीमारियों को प्रभावित करने वाले अन्य शहरी कारकों जैसे हरियाली, ट्रैफिक आदि के साथ कैसे परस्पर क्रिया करता है।

भारत में वायु गुणवत्ता से जुड़ी ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।

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