
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया, एक ऐसी महामारी जिसने करोड़ों जिंदगियों को निगल लिया जो बचे वो भी अपने और परिवार के स्वास्थ्य को लेकर जद्दोजहद करते दिखे। भले ही धीरे-धीरे कड़वी यादें हमारे दिमाग से धूमिल हो रही हैं। लेकिन इससे जुड़े कुछ पहलु आज भी हमारे जीवन पर हावी हैं।
ऐसा ही कुछ हमारे दिमाग के साथ भी हुआ, जो शायद आज भी उसके असर से पूरी तरह नहीं उबरा है। एक नई स्टडी से पता चला है कि कोविड-19 ने हमे दिमागी तौर पर बूढ़ा बना दिया है।
रिसर्च से पता चला है कि इसका असर सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य पर नहीं, बल्कि हमारे दिमाग पर भी पड़ा — और वह भी उन लोगों पर, जो कभी इस वायरस से संक्रमित ही नहीं हुए।
यूनिवर्सिटी ऑफ नॉटिंघम से जुड़े शोधकर्ताओं की अगुआई में किए इस अध्ययन में पाया गया कि जो लोग महामारी के दौर से गुजरे, उनके मस्तिष्क में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया सामान्य से तेज देखी गई। यह बदलाव खासतौर से बुज़ुर्गों, पुरुषों और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों में ज्यादा नजर आया।
वैज्ञानिकों के मुताबिक दिमाग का बूढ़ा होना सिर्फ उम्र बढ़ने से ही नहीं जुड़ा। तनाव, अकेलापन और महामारी जैसी बड़ी घटनाएं भी हमारे दिमाग पर गहरा असर डाल सकती हैं।
इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुए हैं। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यूके बायोबैंक स्टडी के तहत लगभग 1,000 स्वस्थ वयस्कों के ब्रेन एमआरआई स्कैन का विश्लेषण किया। कुछ लोगों के स्कैन महामारी से पहले और बाद में हुए थे, जबकि कुछ के केवल पहले ही किए गए।
एडवांस इमेजिंग और मशीन लर्निंग की मदद से वैज्ञानिकों ने हर व्यक्ति की 'ब्रेन एज' यानी दिमाग की उम्र का अनुमान लगाया और यह देखा गया कि उनका दिमाग असल उम्र की तुलना में कितना बूढ़ा लग रहा था।
यह ब्रेन एज मॉडल 15,000 से अधिक स्वस्थ लोगों के स्कैन के आधार पर तैयार किया गया, जिससे दिमाग की उम्र का सटीक अनुमान लगाया जा सके।
क्या कोविड संक्रमण जरूरी था?
स्टडी में यह भी सामने आया कि सिर्फ वही प्रतिभागी, जिन्हें ब्रेन स्कैन के बीच कोविड संक्रमण हुआ था, उनकी मानसिक क्षमताओं जैसे निर्णय लेने का लचीलापन और जानकारी को तेजी से समझने की क्षमता में थोड़ी गिरावट देखी गई। बाकी लोगों में केवल दिमागी उम्र बढ़ने के संकेत मिले, लेकिन कोई साफ लक्षण नजर नहीं आए।
इसका मतलब है कि महामारी का असर दिमाग पर बिना संक्रमण के भी हो सकता है, मगर यह जरूरी नहीं कि लक्षणों के रूप में भी दिखे। अच्छी खबर यह है कि वैज्ञानिकों के अनुसार यह बदलाव वापस सामान्य भी हो सकता है।
मानसिक तनाव बना कारण
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर अली-रेजा मोहम्मदी-नेजाद ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया, “सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि जिन लोगों को कभी कोविड नहीं हुआ, उनमें भी ब्रेन एजिंग तेजी से हुई। इससे पता चलता है कि अकेलापन, तनाव और अनिश्चितता जैसी बातें भी हमारे मस्तिष्क को गहराई से प्रभावित कर सकती हैं।”
वहीं न्यूरोइमेजिंग की प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डोरोथी ओवर ने कहा, "यह अध्ययन हमें याद दिलाता है कि दिमागी सेहत सिर्फ बीमारी से नहीं, बल्कि हमारे रोजमर्रा के माहौल से भी बनती बिगड़ती है। महामारी ने लोगों की जिंदगी पर गहरा असर डाला, खासकर उन पर जो पहले से ही मुश्किल हालात में थे।"
गौरतलब है कि फिलहाल शोधकर्ता यह तय नहीं कर पाए हैं कि महामारी के कारण आया यह दिमागी बदलाव स्थाई है या नहीं। लेकिन उम्मीद की जा रही है कि खासतौर पर अगर मानसिक स्वास्थ्य पर फोकस बढ़ाया जाए तो इसमें सुधार भी हो सकता है।