रिसर्च में खुलासा, एक साल बाद भी रक्त और ऊतकों में बना रह सकता है कोविड-19 वायरस

वैज्ञानिकों को संक्रमण के 14 महीने बाद भी रक्त में जबकि दो वर्ष से अधिक समय के बाद ऊतकों में कोविड-19 एंटीजन की मौजूदगी के सबूत मिले हैं
लॉन्ग कोविड की स्थिति में कोविड-19 का शिकार मरीज बीमारी के हफ्तों, महीनों या वर्षों बाद भी उससे जुड़े लक्षणों का अनुभव करते हैं; फोटो: आईस्टॉक
लॉन्ग कोविड की स्थिति में कोविड-19 का शिकार मरीज बीमारी के हफ्तों, महीनों या वर्षों बाद भी उससे जुड़े लक्षणों का अनुभव करते हैं; फोटो: आईस्टॉक
Published on

पिछले चार वर्षों से भी ज्यादा समय से कोरोना महामारी मनावता के लिए खतरा बनी हुई है। हम आज भी इससे पूरी तरह नहीं उबरे हैं, यही वजह है कि वैज्ञानिक इस वायरस और उसके प्रभावों को ज्यादा से ज्यादा समझने का प्रयास कर रहे हैं। इसी कड़ी में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा किया है।

उनके द्वारा की लॉन्ग कोविड पर की गई रिसर्च से पता चला है कि कोविड-19 वायरस संक्रमण के एक साल बाद भी इंसानी शरीर में बना रह सकता है। इस अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों को संक्रमण के 14 महीने बाद रक्त में जबकि दो वर्ष से अधिक समय के बाद भी ऊतकों के नमूनों में कोविड-19 के एंटीजन मिले हैं। देखा जाए तो यह नया अध्ययन इस बात के पुख्ता सबूत प्रदान करता है कि स्वस्थ लोगों में भी यह कोरोना का यह वायरस लंबे समय तक बना रह सकता है।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को के स्कूल ऑफ मेडिसिन और इन दोनों अध्ययन का नेतृत्व करने वाले शोधकर्ता डॉक्टर माइकल पेलुसो ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए लिखा है कि ये अध्ययन इस बात के पुख्ता सबूत पेश करते हैं कि कुछ लोगों में कोविड-19 एंटीजन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के सामान्य बने रहने के बावजूद मौजूद रह सकते है।

इस अध्ययन के नतीजे तीन से छह मार्च 2024 के बीच डेनवर में रेट्रोवायरस पर आयोजित सम्मेलन में प्रस्तुत किए गए थे। गौरतलब है कि कोविड-19, एक ऐसी अबूझ पहेली बना हुआ है, जिसके बारे में जितना ज्यादा हम समझते हैं, उतने ज्यादा ही नए तथ्य हमारे सामने आते जा रहे हैं।

इस महामारी की शुरूआत में पहले यह माना जा रहा था कि कोविड-19 एक अल्पकालिक बीमारी है। लेकिन रोगियों की बढ़ती संख्या, जिसमें स्वास्थ्य व्यक्ति भी शामिल थे, उनमें महीनों या वर्षों बाद भी मस्तिष्क पर पड़ते प्रभावों के साथ-साथ, पाचन और रक्त प्रवाह सम्बन्धी समस्याएं जैसे स्थाई लक्षण अनुभव किए गए थे। जो दर्शाता है कि लॉन्ग कोविड की समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है।

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कोविड-19 से संक्रमित हुए 171 लोगों के रक्त के नमूनों की जांच की थी। अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के “स्पाइक” प्रोटीन को गहराई से जानने के लिए एक अति-संवेदनशील परीक्षण की मदद ली है। बता दें कि वायरस के मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने में यह "स्पाइक" प्रोटीन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं वो दर्शाते है कि कुछ लोगों में यह वायरस 14 महीनों तक बना रह सकता है।  

गंभीर रूप से ग्रस्त मरीजों में कहीं ज्यादा थी कोविड-19 के पाए जाने की आशंका

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक जो लोग कोविड-19 के कारण अस्पताल में भर्ती हुए थे, उनमें अन्य संक्रमितों की तुलना में कोविड-19 एंटीजन के पाए जाने की आशंका करीब दोगुनी थी। इसके साथ ही इसकी सम्भावना उन लोगों में भी अधिक थी, जिन्होंने संक्रमण के दौरान गंभीर लक्षणों को अनुभव किया था। हालांकि इन लोगों को अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था। 

चूंकि यह माना जाता है कि वायरस ऊतकों में बना रहता है, इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के लॉन्ग कोविड टिश्यू बैंक से नमूने लिए थे। इनकी जांच से पता चला है कि संक्रमण के दो वर्ष बाद भी ऊतकों में वायरस से जुड़े आरएनए के अंश मौजूद थे। हालांकि उन लोगों के दोबारा संक्रमित होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

यह भी सामने आया है कि इनके अंश संयोजी ऊतकों में मौजूद थे, जहां प्रतिरक्षा कोशिकाएं मौजूद थी। यह दर्शाता है कि वे प्रतिरक्षा प्रणाली को ट्रिगर कर सकते हैं। वहीं कुछ नमूनों से पता चला है कि वायरस अभी भी सक्रिय हो सकता है। ऐसे में देखा जाए तो यह एक कारण हो सकता है कि लोग बार-बार कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं। ऐसे में कोरोना से जुड़े जोखिमों से बचने के लिए सभी लोगों को सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

हालांकि साथ ही शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि क्या यह अंश लॉन्ग कोविड और उससे जुड़े जोखिमों जैसे दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी बीमारियों के खतरे को बढ़ा सकते हैं, इसे समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।  

इन निष्कर्षों के आधार पर, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से जुड़े वैज्ञानिक कई नैदानिक ​​परीक्षणों में लगे हैं और यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि क्या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी या एंटीवायरल दवाएं वायरस को दूर कर सकती हैं और लॉन्ग कोविड से संक्रमित लोगों के स्वास्थ्य में सुधार कर सकती हैं।

जर्नल लैंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के नतीजे भी दर्शाते है कि कोविड-19 से उबरने के महीनों बाद भी लॉन्ग कोविड शरीर में मस्तिष्क, फेफड़ों और गुर्दे जैसे कई अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है। इस अध्ययन के दौरान कोविड-19 से ग्रस्त एक-तिहाई मरीजों में संक्रमण के महीनों बाद भी कई अंगों में असामान्यताएं मौजूद थी।

यह खोज लॉन्ग कोविड के बारे में नए रहस्यों को उजागर करती है। बता दें कि इससे पहले भी मरीजों में शुरुआती संक्रमण के बाद लंबे समय तक सांस की तकलीफ, थकान और मस्तिष्क पर प्रभाव दर्ज किए गए थे।

लॉन्ग कोविड की समस्या कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोविड-19 का शिकार हुए 10 फीसदी मरीज अभी भी इसके लक्षणों से ग्रस्त हैं। मतलब अभी भी साढ़े छह करोड़ से ज्यादा लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं जर्नल नेचर रिव्यु माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक अभी भी इसका शिकार लोगों की संख्या बढ़ रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक कोविड-19 वायरस अब तक दुनिया भर में 77,47,71,942 लोगों को संक्रमित कर चुका है। इनमें से 70,35,337 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि बाकी इस महामारी से उबर चुके हैं। हालांकि इनमें से बहुत से लोग अभी भी लॉन्ग कोविड से होने वाली समस्याओं से जूझ रहे हैं।

यदि भारत से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 12 मार्च 2024 को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि देश में कोरोना के 1,076 मामले अभी भी सक्रिय हैं। वहीं साढ़े चार करोड़ से ज्यादा लोग अब तक देश में इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं। इनमें 5,33,510 संक्रमितों की मृत्यु हो चुकी है जबकि 4,44,97,114 लोग इस बीमारी से उबर चुके हैं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in