एक नई रिसर्च से पता चला है कि जिन लोगो में कोरोनावायरस के हल्के संक्रमण सामने आए हैं उनमें भी नींद न आने की समस्या हो सकती है। इस विकार को इंसोमनिया के नाम से भी जाना जाता है। अध्ययन के मुताबिक यह समस्या खासकर चिंता या अवसाद से पीड़ित लोगों में ज्यादा देखी गई।
गौरतलब है कि कोविड-19 से संक्रमित लोगों में खांसी, स्वाद और गंध न आना जैसे लक्षण बेहद आम है। वहीं जिन मरीजों को कोविड-19 की वजह से अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था उनमें अनिद्रा की समस्या भी बेहद आम थी। लेकिन क्या जिन लोगों में कोरोना का संक्रमण बेहद हल्का था, उनमें भी नींद न आना और उसकी गुणवत्ता में गिरावट जैसी परेशानियां हो सकती हैं। इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसी तथ्य की जांच की है।
गौरतलब है कि यह अध्ययन वियतनाम, हांगकांग और सिंगापुर के विभिन्न संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुए हैं। बता दें कि अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जून से सितम्बर 2022 के बीच 1056 कोविड मरीजों का सर्वे किया था। इन सभी की आयु 18 वर्ष या उससे अधिक थी। यह सभी लोग कोरोना से पीड़ित थे, लेकिन पिछले छह महीनों के दौरान उन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया गया था। इसी तरह उनमें अनिद्रा या मनोरोग संबंधी समस्याओं का कोई इतिहास नहीं था।
सर्वेक्षण में उनसे उम्र, लिंग, स्वास्थ्य समस्याओं के इतिहास के साथ-साथ कोरोना की गंभीरता और उसकी अवधि के बारे में भी जानकारी एकत्र की गई। साथ ही क्या उनमें चिंता, तनाव और अवसाद जैसी परेशानियां हैं, इससे सम्बंधित जानकारी भी जुटाई गई थी।
उनमें नींद न आने की समस्या कितनी गंभीर है इसे समझने के लिए अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों से पिछले दो सप्ताह के दौरान उनकी नींद की गुणवत्ता, उसकी अवधि और उन्हें सोने में कठिनाई हुई या नहीं, इसकी तुलना कोविड-19 होने से पहले के समय से करने के लिए कहा गया।
तीन-चौथाई मरीजों में दर्ज की गई अनिद्रा की समस्या
इस सर्वे के जो नतीजे सामने आए उनके मुताबिक तीन चौथाई लोगों (76.1 फीसदी) ने माना कि उन्होंने अनिद्रा का सामना किया था। इसी तरह 22.8 फीसदी में नींद न आने की समस्या बेहद गंभीर थी। आधे लोगों का कहना था कि वो कोविड-19 होने के बाद से रात में अधिक बार जागते हैं।
वहीं एक तिहाई को अच्छी नींद लेने में परेशानी का सामना करना पड़ा था। वे पहले से कम नींद ले पाए थे और उनकी नींद की गुणवत्ता भी पहले जितनी बेहतर नहीं थी। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि जो लोग चिंता या अवसाद से पीड़ित थे उनके कोरोना से संक्रमित होने के बाद नींद न आने की समस्या होने की आशंका कहीं ज्यादा थी।
दिलचस्प बात यह देखी गई कि प्रारंभिक संक्रमण की गंभीरता अनुभव की गई अनिद्रा की गंभीरता से मेल नहीं खाती। यहां तक की जिन लोगों में कोरोना के लक्षण सामने नहीं आए थे उनमें भी नींद न आने की समस्या देखी गई। हालांकि उन्हें इंसोमनिया इंडेक्स में कम अंक मिले थे, लेकिन यह अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं था।
अध्ययन के मुताबिक नींद न आने की समस्या मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। वहीं दूसरी तरफ खराब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अनिद्रा की वजह बन सकता है। मतलब की यह दोनों समस्याएं कहीं न कहीं आपस में जुड़ी हैं।
2020 में द लैंसेट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन में कोरोना के दौरान 35 साल या उससे अधिक उम्र के 7,236 लोगों के स्लीप पैटर्न का अध्ययन किया गया था, इस अध्ययन में शामिल करीब एक तिहाई लोग हेल्थ केयर वर्कर्स थे।
इस अध्ययन से पता चला है कि इनमें से 35 फीसदी लोगों में एंग्जाइटी, 20 फीसदी में अवसाद और 18 फीसदी में नींद की गुणवत्ता में गिरावट के लक्षण देखे गए थे। रिसर्च के मुताबिक इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि लोग महामारी को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित थे।
वियतनाम के फेनिका विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़ी प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर हुआंग टी एक्स होआंग ने आगाह किया है कि “अगर आपको कोविड-19 के बाद सोने में परेशानी हो रही है, तो यह मत सोचिए कि यह सामान्य है।“
उनका सुझाव है कि यदि अनिद्रा आपको ज्यादा परेशान नहीं कर रही, तो आप कुछ सरल उपाय कर सकते हैं, जैसे सोने से पहले गर्म पानी से नहाना, हर दिन 30 मिनट व्यायाम करें, सोने से कम से कम एक घंटे पहले अपना फोन बंद कर दें, और शाम चार बजे के बाद कैफीन के उपभोग से बचें। लेकिन यदि यह समस्या गंभीर है तो इसके लिए आपको डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।