माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां हो रही हैं कमजोर, रुक सकता है विकास: रिपोर्ट

नए शोध में कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक हड्डियों की कोशिकाओं को कमजोर करके सूजन और हड्डी कमजोर करने जैसी समस्याएं पैदा करते हैं।
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो साभार: आईस्टॉक
Published on
Summary
  • हर साल 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन, जिससे पर्यावरण और जलवायु दोनों पर गहरा असर।

  • माइक्रोप्लास्टिक खून, दिमाग, प्लेसेंटा, मां के दूध और हड्डियों तक में पाया गया।

  • नए शोध में खुलासा – माइक्रोप्लास्टिक हड्डी कोशिकाओं को कमजोर करते हैं, सूजन बढ़ाते हैं और विकास रोकते हैं।

  • पशु पर किए गए अध्ययनों में पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां विकृत होती हैं और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है।

  • साल 2050 तक ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़ी हड्डी टूटने की घटनाएं 32 फीसदी बढ़ने की आशंका, माइक्रोप्लास्टिक हो सकता है बड़ा कारण।

दुनिया भर में प्लास्टिक का इस्तेमाल आज हर जगह हो रहा है। हमारी सांस लेने की हवा, पीने के पानी और भोजन जिसे हम खाते हैं, उनमें अब माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी साबित हो चुकी है। ये छोटे-छोटे प्लास्टिक के कण न केवल हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि इंसानी सेहत पर भी गहरा असर डाल रहे हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है कि माइक्रोप्लास्टिक हमारी हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन चुके हैं

प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीरता

हर साल दुनिया में करीब 40 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन और उपयोग किया जाता है। इसका बड़ा हिस्सा नदियों, समुद्रों और यहां तक कि धरती की गहराई तक पहुंचकर प्रदूषण फैलाता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्लास्टिक कचरा समुद्र की 11,000 मीटर गहराई तक पहुंच चुका है। इतना ही नहीं, प्लास्टिक के उत्पादन से हर साल लगभग 1.8 अरब टन ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो जलवायु परिवर्तन को और तेज कर रही हैं।

यह भी पढ़ें
चिंताजनक: वैज्ञानिकों ने मनुष्य के शुक्राणु में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का किया खुलासा
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

शरीर में कहां-कहां पहुंच चुका है माइक्रोप्लास्टिक

अब तक हुई शोधों में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक केवल बाहरी पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानी शरीर के कई हिस्सों में भी मौजूद है। वैज्ञानिकों ने इसके कणों को खून, दिमाग, प्लेसेंटा, मां के दूध और यहां तक कि हड्डियों में भी पाया है।

दरअसल, परदे, कपड़े, फर्नीचर और रोजमर्रा के प्लास्टिक सामान से छोटे-छोटे कण अलग होकर हवा में घुल जाते हैं। ये कण पानी में भी घुलते हैं और भोजन के जरिए शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इन्हें सांस के साथ अंदर लेना, खाने के साथ निगलना या त्वचा के संपर्क में आना अब आम बात हो चुकी है।

यह भी पढ़ें
घर व कार भी नहीं हैं साफ, भारी मात्रा में मिले माइक्रोप्लास्टिक के कण
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

नई रिसर्च में बड़ा खुलासा

ब्राजील के वैज्ञानिकों ने हाल ही में 62 वैज्ञानिक अध्ययनों की समीक्षा की है। यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑस्टियोपोरोसिस इंटरनेशनल में प्रकाशित हुई है। इसमें साफ कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक का हड्डियों पर बुरा असर पड़ता है। हड्डियों की मज्जा (बोन मैरो) में मौजूद स्टेम सेल्स की क्षमता को नुकसान पहुंचाते हैं। यह हड्डियों को तोड़ने वाली कोशिकाओं यानी ऑस्टियोक्लास्ट्स की संख्या बढ़ा देते हैं, जिससे हड्डी का क्षय होता है।

लैब आधारित अध्ययन में पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक कोशिकाओं की उम्र को तेजी से बढ़ा देते हैं। कोशिकाओं की जीवन क्षमता घटा देते हैं। कोशिकाओं की संरचना और कार्य बदल देते हैं। हड्डियों में सूजन को बढ़ावा देते हैं।

यह भी पढ़ें
दुनिया भर में प्लास्टिक के उचित प्रबंधन व रीसाइक्लिंग न होने से बढ़ रहा है माइक्रोप्लास्टिक का खतरा: शोध
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

जानवरों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक के असर से हड्डियों का विकास रुक जाता है। हड्डियां कमजोर और विकृत हो जाती हैं।

असामान्य हड्डी निर्माण होता है। हड्डियों में रोगजनक फ्रैक्चर के आसार बढ़ जाते हैं।

इसका मतलब है कि माइक्रोप्लास्टिक केवल सतही नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि यह हड्डियों की जड़ तक जाकर उसके चयापचय को बिगाड़ सकते हैं।

स्रोत: जर्नल ऑस्टियोपोरोसिस इंटरनेशनल
यह भी पढ़ें
अनजाने में हर महीने पांच ग्राम माइक्रोप्लास्टिक खा रहे हैं लोग, 28 लाख कण शरीर में पहुंच रहे हैं सांस के जरिए
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

शोध पत्र में ब्राजील की स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ कैंपिनास के शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक का हड्डियों पर होने वाले प्रभाव गंभीर है। शोध में देखा गया है कि यह कोशिकाओं को कमजोर करने, उनकी उम्र बढ़ाने और सूजन पैदा करने का काम करते हैं। कुछ पशु पर किए गए अध्ययनों में तो यह भी पाया गया कि हड्डियों की वृद्धि पूरी तरह रुक गई।

शोधकर्ताओं की टीम अभी और शोध कर रही है ताकि यह समझा जा सके कि माइक्रोप्लास्टिक किस हद तक हड्डी संबंधी बीमारियों, जैसे ऑस्टियोपोरोसिस, को और बिगाड़ रहे हैं।

यह भी पढ़ें
चिंताजनक: मानव के अंडकोष में पाया गया हानिकारक माइक्रोप्लास्टिक: अध्ययन
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

ऑस्टियोपोरोसिस और बढ़ती समस्या

दुनिया भर में ऑस्टियोपोरोसिस से जुड़ी हड्डी टूटने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। इंटरनेशनल ऑस्टियोपोरोसिस फाउंडेशन का अनुमान है कि साल 2050 तक इन मामलों में 32 फीसदी की वृद्धि होने के आसार हैं।

अब तक यह माना जाता था कि उम्र बढ़ने, खानपान और जीवनशैली के कारण यह समस्या बढ़ रही है, लेकिन नए शोध से पता चलता है कि माइक्रोप्लास्टिक भी एक छुपा हुआ पर्यावरणीय कारण हो सकता है।

यह भी पढ़ें
गंगा नदी में पाए गए माइक्रोप्लास्टिक के लिए 82 फीसदी कपड़े के रेशे जिम्मेवार: अध्ययन
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

क्या किया जा सकता है?

विशेषज्ञ कहते हैं कि हड्डियों को मजबूत रखने के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और दवाइयों का सहारा तो जरूरी है, लेकिन इसके साथ ही हमें माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में भी गंभीर कदम उठाने होंगे।

अगर यह साबित हो गया कि माइक्रोप्लास्टिक हड्डियों की बीमारियों का बड़ा कारण हैं, तो इसे एक नियंत्रित करने योग्य फैक्टर के रूप में पहचाना जा सकेगा और भविष्य में लाखों लोगों को हड्डी टूटने जैसी जटिलताओं से बचाया जा सकेगा।

यह भी पढ़ें
चिंताजनक: मनुष्य के हृदय के ऊतकों में पाया गया माइक्रोप्लास्टिक
जानवरों पर किए गए अध्ययनों में माइक्रोप्लास्टिक से हड्डियां कमजोर, विकृत और टूटने की आशंका स्पष्ट रूप से सामने आई।

माइक्रोप्लास्टिक आज हमारी जिंदगी के हर हिस्से में मौजूद है। यह न केवल पर्यावरण और जलवायु को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि अब हमारी हड्डियों को भी कमजोर कर रहा है। आने वाले सालों में अगर इस पर रोकथाम के उपाय नहीं किए गए, तो ऑस्टियोपोरोसिस और हड्डी टूटने की समस्याएं और बढ़ सकती हैं।

इसलिए जरूरी है कि हम प्लास्टिक के उपयोग को कम करें और ऐसी नीतियां अपनाएं जो इंसान और पर्यावरण दोनों को सुरक्षित रख सकें।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in