एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारी मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक के कण नदी के तलछट में फंस रहे हैं, जो प्रमुख नदी प्रणालियों के साथ हवा के माध्यम से फैल रहे हैं।
दक्षिण एशिया में गंगा नदी की लंबाई के साथ किए गए शोध में वायुमंडल से प्रति वर्ग मीटर, प्रति दिन औसतन 41 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए।
इसके अलावा, वैज्ञानिकों द्वारा किए गए विश्लेषण में नदी तल से तलछट में प्रति किलोग्राम औसतन 57 कण और साथ ही प्रत्येक 20 लीटर पानी में एक कण पाया गया।
साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट में प्रकाशित अध्ययन में एक प्रमुख नदी प्रणाली के आसपास पानी, तलछट और हवा में माइक्रोप्लास्टिक का पहला विश्लेषण किया गया है।
यह नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी के सागर से स्रोत गंगा अभियान के हिस्से के रूप में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा एकत्र किए गए नमूनों का उपयोग करके आयोजित किया गया था।
प्लायमाउथ विश्वविद्यालय और नेशनल ज्योग्राफिक एक्सप्लोरर के रिसर्च फेलो, प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. इमोजेन नैपर ने कहा, हम कुछ समय से जानते हैं कि, नदियां समुद्री वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक को ले जाने वाले के रूप में प्रमुख हैं।
हालांकि, भारी मात्रा में प्लास्टिक की मात्रा ले जाए जाने के बारे में हमेशा अनिश्चितता रही है, क्या वे लंबे समय तक डूबे हुए होते हैं। यह अध्ययन उस रहस्य को उजागर करने और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के वास्तविक पैमाने को उजागर करने का एक तरीका है जिसे हमारी नदी प्रणालियां प्रस्तुत कर सकती हैं।
वर्तमान अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक में से कई जनवरी 2021 में प्रकाशित पिछले अध्ययन में शामिल थे, जिसमें सुझाव दिया गया था कि गंगा नदी और उसकी सहायक नदियां हर दिन बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने वाले तीन अरब माइक्रोप्लास्टिक के कणों को ले जाने के लिए जिम्मेदार है।
कणों की समग्र प्रचुरता को उजागर करने के अलावा, नए अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने कपड़े के रेशों या फाइबर को सबसे सामान्य प्रकार पाया, जो विश्लेषण किए गए कुछ नमूनों में पाए गए 99 फीसदी माइक्रोप्लास्टिक हैं।
इसके भीतर, ऐक्रेलिक और पॉलिएस्टर से आगे, रेयान प्रमुख पॉलीमर था, कुछ नमूनों में 82 फीसदी फाइबर पाए गए, इनका नीला सबसे आम रंग था।
तलछट के नमूनों में अक्सर पानी और हवा में पाए जाने वाले कणों की तुलना में अधिक माइक्रोप्लास्टिक के कण होते हैं, और उच्च घनत्व के कारण हवा और पानी के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा अधिक पाई जाती है।
अध्ययन के हवाले से, वैज्ञानिकों मानना है कि, कपड़े इस विशेष नदी प्रणाली में माइक्रोप्लास्टिक का प्रमुख स्रोत हो सकते है, जो वायुमंडलीय जमाव, अपशिष्ट जल और गंगा में कपड़े धोने जैसे प्रत्यक्ष कारणों से प्रभावित है।
भारतीय वन्यजीव संस्थान की वैज्ञानिक और पीआई डॉ. अंजू बारोथ ने कहा, मॉडलिंग पर आधारित पहले के अध्ययनों में एशिया की नदियों को समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत बताया गया था। प्राथमिक स्थानीय आंकड़ों पर आधारित इस शोध ने इस पर स्पष्ट जानकारी प्रदान की है कि, गंगा नदी के विभिन्न पर्यावरणीय मैट्रिक्स में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर और दुनिया की कई प्रमुख नदी प्रणालियों में गंगा की तुलना में तुलनात्मक रूप से अधिक माइक्रोप्लास्टिक हैं।
शोधकर्ता ने कहा, इस अध्ययन का उपयोग दुनिया की प्रमुख नदी प्रणालियों में माइक्रोप्लास्टिक के स्रोतों पर सिद्धांत को और परिपक्व करने के लिए किया जा सकता है।
बांग्लादेश के डॉ. गौसिया वाहिदुन्नेसा चौधरी ने कहा, यह शोध अभूतपूर्व है, हमें नीति निर्माताओं सहित प्रमुख हितधारकों के लिए निष्कर्षों को समझने योग्य बनाने की आवश्यकता है। यह शोध दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए एक मंच प्रदान करता है, हमने एक शोध टीम बनाई है जो बांग्लादेश में स्थानीय स्तर पर नए समाधान लागू करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
लंदन में जूलॉजिकल सोसायटी (जेएसएल) के समुद्री तकनीकी सलाहकार, प्रोफेसर हीथर कोल्डेवी ने कहा, हमारे शोध से पता चलता है कि कपड़े इस विशाल नदी प्रणाली की हवा, पानी और तलछट में माइक्रोप्लास्टिक का प्रमुख स्रोत हैं, जो हमें भागीदारों के साथ काम करने में सक्षम बनाता है और नीति निर्माताओं को स्थानीय स्तर पर उचित समाधान तलाशने होंगे। नदियों में माइक्रोप्लास्टिक की इस समस्या को बांग्लादेश और भारत के प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों द्वारा हल किया जा सकता है जो इस अध्ययन में शामिल हैं।