

माइक्रोप्लास्टिक दिमाग में सूजन और कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियां बढ़ सकती हैं।
एक व्यक्ति हर साल लगभग 250 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल लेता है, जो खाने, पानी, हवा और कपड़ों से शरीर में पहुंचते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक अल्जाइमर में बीटा-एमायलॉयड/टाउ जमाव और पार्किंसन में अल्फा-सिन्यूक्लिन जमा बढ़ा सकते हैं।
वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि माइक्रोप्लास्टिक कम करने के लिए प्लास्टिक कंटेनर, कपड़े और पैक्ड फूड का उपयोग घटाएं और प्राकृतिक विकल्प अपनाएं।
आज दुनिया भर में प्लास्टिक का उपयोग बहुत बढ़ गया है। बड़ी समस्या यह है कि प्लास्टिक समय के साथ टूटकर बहुत छोटे-छोटे कणों में बदल जाता है, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें खाने-पीने की चीजों, हवा और पानी के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करना आसान हो जाता है।
एक नई वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक दिमाग में सूजन पैदा कर सकते हैं और दिमागी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह असर अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों को और बदतर कर सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर में कैसे पहुंचता है?
ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी के शोधकर्ताओं के अनुसार, एक वयस्क व्यक्ति हर साल लगभग 250 ग्राम माइक्रोप्लास्टिक निगल लेता है। यह लगभग एक डिनर प्लेट भर प्लास्टिक के बराबर है।
हम इन्हें कई साधारण स्रोतों से लेते हैं, जैसे: समुद्री भोजन, नमक, प्रोसेस्ड और पैक्ड फूड, टी बैग, प्लास्टिक की बोतलों का पानी, प्लास्टिक कटिंग बोर्ड, घर की धूल और कार्पेट तथा सिंथेटिक कपड़ों के रेशे इसमें शामिल हैं।
हालांकि हमारा शरीर इन कणों को कुछ हद तक बाहर निकाल देता है, लेकिन कई शोध बता रहे हैं कि कुछ माइक्रोप्लास्टिक दिल, फेफड़ों और यहां तक कि दिमाग में भी जमा हो सकते हैं।
क्या कहता है नया अध्ययन?
यह शोध मॉलिक्यूलर एंड सेलुलर बायोकेमिस्ट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इसमें ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग अध्ययनों को मिलाकर यह समझने की कोशिश की है कि माइक्रोप्लास्टिक दिमाग को पांच तरीकों से कैसे नुकसान पहुंचाते हैं।
1. इम्यून कोशिकाओं की सक्रियता
दिमाग माइक्रोप्लास्टिक को बाहरी दुश्मन की तरह पहचानता है। इससे दिमाग की प्रतिरक्षा (इम्यून) कोशिकाएं सक्रिय होकर सूजन पैदा करने लगती हैं। लगातार सूजन दिमागी कोशिकाओं को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा सकती है।
2. ऑक्सीडेटिव तनाव
माइक्रोप्लास्टिक शरीर में ऐसे मॉलिक्यूल बढ़ा देते हैं जिन्हें रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज (आरओएस) कहा जाता है। ये अस्थिर अणु दिमागी कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके साथ-साथ माइक्रोप्लास्टिक शरीर की एंटीऑक्सीडेंट क्षमता भी कम करते हैं, जिससे दिमाग और कमजोर हो जाता है।
3. ब्लड-ब्रेन बैरियर का कमजोर होना
ब्लड-ब्रेन बैरियर एक तरह की सुरक्षा ढाल है जो दिमाग को खतरनाक पदार्थों से बचाती है। शोध में पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक इस सुरक्षा कवच को कमजोर बना देते हैं। जब यह ढाल कमजोर होती है, तो हानिकारक पदार्थ और सूजन पैदा करने वाले अणु आसानी से दिमाग में प्रवेश कर जाते हैं।
4. माइटोकॉन्ड्रिया की गड़बड़ी
माइटोकॉन्ड्रिया दिमाग की कोशिकाओं में ऊर्जा बनाने का काम करते हैं। माइक्रोप्लास्टिक इस प्रक्रिया में बाधा डालते हैं और एटीपी नामक ऊर्जा अणु का उत्पादन कम हो जाता है। जब ऊर्जा की कमी होती है, तो न्यूरॉन ठीक से काम नहीं कर पाते और धीरे-धीरे क्षति होने लगती है।
5. न्यूरॉन्स को सीधा नुकसान
ऊर्जा की कमी, सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव मिलकर दिमागी कोशिकाओं को सीधा नुकसान पहुंचाते हैं। इससे न्यूरॉन्स की क्षमता कम होती है और वे मर भी सकते हैं।
अल्जाइमर और पार्किंसन से संबंध
इस शोध में बताया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी बीमारियों को बढ़ावा दे सकते हैं।
अल्जाइमर में ये बीटा-एमायलॉयड और टाउ प्रोटीन के जमाव को बढ़ा सकते हैं।
पार्किंसन में ये अल्फा-सिन्यूक्लिन के जमाव और डोपामाइन बनाने वाले न्यूरॉन्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि अभी और शोध की आवश्यकता है, लेकिन शुरुआती संकेत चिंता पैदा करने वाले हैं।
खतरे को कैसे कम करें?
विशेषज्ञ कुछ सरल उपाय बताते हैं:
प्लास्टिक कंटेनर और प्लास्टिक कटिंग बोर्ड का उपयोग कम करें।
ड्रायर कम चलाएं और प्राकृतिक फाइबर वाले कपड़े पहनें।
प्रोसेस्ड और पैक्ड भोजन से परहेज करें।
जहां संभव हो, प्लास्टिक की जगह स्टील, कांच या लकड़ी का उपयोग करें।
माइक्रोप्लास्टिक एक ऐसा प्रदूषण है जिसे हम रोज अपनी आंखों के सामने नहीं देख पाते, लेकिन यह हमारे शरीर और दिमाग के अंदर धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा रहा है।
नया शोध बताता है कि यह समस्या केवल पर्यावरण की नहीं, बल्कि जन-स्वास्थ्य की भी है। इसलिए जरूरी है कि हम प्लास्टिक का उपयोग कम करें और सरकारें ऐसे कदम उठाएं जो भविष्य में इस खतरे को कम कर सकें।