खाद्य श्रृंखला में फैल रहा अदृश्य जहर: हर स्तर पर दोगुने होते ‘फॉरएवर केमिकल’: स्टडी

वैश्विक स्तर पर 119 खाद्य श्रृंखलाओं के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि इंसान समेत शीर्ष शिकारी जीवों पर भी इन ‘फॉरएवर केमिकल्स’ का खतरा मंडरा रहा है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • अंतरराष्ट्रीय अध्ययन ने चेताया है कि 'फॉरएवर केमिकल' पीएफएएस, खाद्य श्रृंखला में हर स्तर पर दोगुने हो जाते हैं, जिससे इंसान और शीर्ष शिकारी जीव इसके खतरनाक स्तर के संपर्क में आ सकते हैं।

  • अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर की 119 जलीय और स्थलीय खाद्य श्रृंखलाओं का विश्लेषण किया है।

  • नतीजा यह निकला कि बड़ी मछलियां, समुद्री पक्षी और समुद्री स्तनधारी जैसे शीर्ष शिकारी जीवों के शरीर में पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) की मात्रा उनके आसपास के पर्यावरण से कई गुणा अधिक पाई गई।

  • गौरतलब है कि पीएफएएस मानव निर्मित रसायनों का एक समूह है, जो बहुत धीमी गति से पर्यावरण में विघटित होते हैं। यह रसायन बेहद लम्बे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं, जिसकी वजह से इन्हें 'फॉरएवर केमिकल्स' भी कहा जाता है।

नई अंतरराष्ट्रीय रिसर्च ने दुनिया भर के उपभोक्ताओं के लिए गंभीर चेतावनी जारी की है। अध्ययन के अनुसार, ‘फॉरएवर केमिकल’ कहे जाने वाले पीएफएएस जैसे जहरीले रसायनों की मात्रा खाद्य श्रृंखला के हर स्तर पर दोगुनी हो जाती है। इसका मतलब है कि खाद्य श्रंखला के शीर्ष शिकारी जीवों के साथ-साथ इंसान भी इन रसायनों के खतरनाक स्तर के संपर्क में आ सकते हैं।

यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने दुनिया भर की 119 जलीय और स्थलीय खाद्य श्रृंखलाओं का विश्लेषण किया है। नतीजा यह निकला कि बड़ी मछलियां, समुद्री पक्षी और समुद्री स्तनधारी जैसे शीर्ष शिकारी जीवों के शरीर में पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) की मात्रा उनके आसपास के पर्यावरण से कई गुणा अधिक पाई गई।

अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता लोरेंजो रिकोफी के मुताबिक, “खाद्य श्रंखला के हर पायदान पर पीएफएएस की मात्रा औसतन दोगुनी हो जाती है। इसका मतलब है कि खाद्य श्रंखला के सबसे ऊपर बैठे जीव सबसे ज्यादा जोखिम में हैं।“

क्या हैं ‘फॉरएवर केमिकल्स'

गौरतलब है कि पीएफएएस मानव निर्मित रसायनों का एक समूह है, जो बहुत धीमी गति से पर्यावरण में विघटित होते हैं। यह रसायन बेहद लम्बे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं, जिसकी वजह से इन्हें 'फॉरएवर केमिकल्स' भी कहा जाता है। यह ऐसे केमिकल्स हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

अब तक 12,000 से अधिक पीएफएएस के मौजूद होने की पुष्टि हो चुकी है। ये रसायन गर्मी सहने और पानी को दूर रखने की क्षमता के लिए जाने जाते हैं। इनका उपयोग नॉन-स्टिक बर्तनों, खाने की पैकेजिंग, कपड़ों, सफाई से जुड़े उत्पादों और आग बुझाने वाले फोम में व्यापक रूप से होता है।

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1930 के दशक में खोजे गए ये केमिकल्स आज इस कदर फैल चुके हैं कि वैज्ञानिकों को दुनिया के करीब-करीब हर इंसान के रक्त में इनकी मौजूदगी के निशान मिले हैं। ये मिट्टी, पानी, पौधों और दूसरे जीवों में भी लगातार जमा हो रहे हैं। यह स्वास्थ्य के लिए कितने खतरनाक है इसी बात से समझा जा सकता है कि बहुत लम्बे समय तक इनके संपर्क में रहने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

अध्ययन के मुताबिक खाद्य श्रृंखला में सबसे ऊपर होने के कारण इंसानों के लिए भोजन पीएफएएस के शरीर में पहुंचने का एक अहम मार्ग बन सकता है। कई अध्ययनों में पीएफएएस को कैंसर और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जोड़ा गया है।

शोधकर्ता रिकोफी ने प्रेस विज्ञप्ति में चेताया है, "दूसरे अध्ययनों से हमें पीएफएएस की विषाक्तता के संकेत मिल चुके हैं। ऐसे में शीर्ष शिकारी जीवों में इसका इतनी तेजी से जमा होना गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है। “उनके मुताबिक इससे पर्यावरण में खतरे की एक कड़ी बन जाती है, जहां कम प्रदूषण वाले इलाकों में भी सबसे ऊपर के शिकारी जीवों को जहर की बहुत ज्यादा मात्रा झेलनी पड़ती है।

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‘सुरक्षित’ कहे जाने वाले नए रसायन भी खतरा

अध्ययन में 72 अलग-अलग तरह के पीएफएएस का विश्लेषण किया गया है। इससे पता चला है कि खाद्य श्रृंखला में ऊपर जाते-जाते इनकी मात्रा अलग-अलग स्तर पर तेजी से बढ़ती है। चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ ऐसे रसायन, जिन्हें पुराने पीएफएएस से “ज्यादा सुरक्षित” बताकर बाजार में उतारा गया, वे भी फूड चेन में उतनी ही, बल्कि कुछ मामलों में उससे भी ज्यादा तेजी से जमा हो रहे हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि इन नए रसायनों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों को समझना बेहद जरूरी है, वरना ये भी पुराने पीएफएएस जितनी ही बड़ी समस्या बन सकते हैं।

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मौजूदा अंतरराष्ट्रीय नीतियों में बदलाव की भी मांग की है। उनका कहना है कि अभी रसायनों को नियंत्रित करते समय उनकी तात्कालिक विषाक्तता पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन यह नहीं देखा जाता कि वे खाद्य श्रंखला में कितनी तेजी से जमा हो रहे हैं।

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सख्त जांच और निगरानी जरुरी

शोधकर्ताओं का कहना है कि जो रसायन खाद्य श्रृंखला में तेजी से जमा होने की प्रवृत्ति रखते हैं, खासकर जिन पर अभी कोई नियंत्रण नहीं है, उनकी सख्त जांच और निगरानी जरूरी है। रिकोफी कहते हैं, “हमारे निष्कर्ष कई स्तरों पर तुरंत नीतिगत कार्रवाई की मांग करते हैं।“

उनके मुताबिक केवल विषाक्तता नहीं, बल्कि फूड चेन में बढ़ने की क्षमता को भी नियम बनाने का आधार बनाया जाना चाहिए।

अध्ययन में पाया गया कि पीएफएएस की मात्रा आमतौर पर खाद्य श्रृंखला के हर स्तर पर दोगुनी हो जाती है, लेकिन अलग-अलग रसायनों में यह दर अलग-अलग होती है, कुछ तेजी से जमा होते हैं और कुछ कम। इस वजह से शोधकर्ता चाहते हैं कि नियम रसायन-विशेष की जानकारी के आधार पर बनाए जाने चाहिए, न कि सभी रसायनों के लिए एक ही मानक अपनाया जाए।

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