एंटी-फॉगिंग स्प्रे में बड़े पैमाने पर पाए गए ये जहरीले रसायन, सेहत के लिए होते हैं खतरनाक

पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहने के कारण पीएफएएस को 'फॉरएवर केमिकल्स' भी कहा जाता है, जो पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं
फोटो: विजन एक्सप्रेस/ यूट्यूब
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क्या आप जानते हैं कि जिस एंटी-फॉगिंग स्प्रे और कपड़े का इस्तेमाल अपने चश्मों या फिर चेहरा ढंकने वाली शील्ड को साफ करने के लिए करते हैं, उसमें बड़े पैमाने पर पॉलीफ्लोरिनेटेड अल्काइल सब्सटैंस यानी पीएफएएस हो सकते हैं। यह केमिकल आपको बहुत ज्यादा बीमार कर सकते हैं। यह जानकारी ड्यूक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आई है। यह शोध जर्नल एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। 

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने अमेज़ॅन द्वारा बेचे जाने वाले चार टॉप-रेटेड एंटी-फॉगिंग स्प्रे के साथ-साथ पांच प्रमुख एंटी-फॉगिंग कपड़ों का भी परिक्षण किया था। विशेषज्ञों को इन सभी नौ उत्पादों में फ्लोरोटेलोमर अल्कोहल (एफटीओएच) और फ्लोरोटेलोमर एथोक्सिलेट्स (एफटीईओ) जैसे दो केमिकल मिले थे, जोकि पर-पॉलीफ्लोरिनेटेड अल्काइल सब्सटैंस (पीएफएएस) होते हैं।

वैज्ञानिकों ने जिन नौ उत्पादों की जांच की थी उनमें से दो उत्पाद (गेमर एडवांटेज फॉगअवे और ऑप्टिक्स 55 फॉग गॉन) अमेरिका में बने थे, जबकि चार उत्पाद (स्पालकुा, रोटस, आइनिड और नीट्रिशन) चीन में बने थे जबकि एक उत्पाद (ईसीव्यू) कोरिया का था। वहीं दो उत्पादों (लाइफआर्ट और रिकोप्पा) किस देश में बने हैं इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। 

शोधकर्ता निकोलस हरकर्ट ने इस बारे में जानकारी दी है कि परीक्षणों से पता चला है कि प्रति मिलीलीटर स्प्रे में करीब 20.7 मिलीग्राम तक पीएफएएस पाया गया था, जोकि काफी अधिक मात्रा होती है। 

उनके अनुसार चूंकि एफटीओएच और एफटीईओ पर बहुत सीमित अध्ययन किया गया है, इसलिए अब तक इस बारे में पूरी जानकारी नहीं है कि यह केमिकल स्वास्थ्य के लिए कौन-कौन से खतरे पैदा कर सकते हैं। हालांकि शोध से पता चला है कि यदि एक बार एफटीओएच को सांस या त्वचा के माध्यम से सोख लिया जाता है तो शरीर में टूटकर पीएफओए या पीएफएएस का रूप ले लेते हैं जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इतना ही नहीं विश्लेषण किए गए सभी चार स्प्रे में मौजूद एफटीईओ ने परीक्षणों के दौरान कोशिकाओं में विषाक्तता और वसा कोशिकाओं में बदलाव जैसे प्रभाव डाले थे। 

पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं पीएफएएस

पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहने के कारण पीएफएएस को 'फॉरएवर केमिकल्स' भी कहा जाता है। इन जहरीले केमिकल्स के बारे में माना जाता है कि यह स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। यहां तक की बहुत ज्यादा समय तक इनके संपर्क में रहने से कैंसर तक हो सकता है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक कुछ पीएफएएस विशेष रूप से पेरफ्लुओरूक्टेनोइक एसिड (पीएफओए) और पेरफ्लुओरूक्टेनसल्फोनिक एसिड (पीएफओएस) न केवल हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है, साथ ही यह थायरॉयड और कैंसर के साथ-साथ अन्य रोगों की भी वजह बन सकता है। वहीं छोटे बच्चे और उनकी माताएं विशेष रूप से इन केमिकल्स के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं, जो उनकी प्रजनन क्षमता और विकास पर असर डाल सकता है। 

इस बारे में शोधकर्ता हीदर स्टेपलटन का कहना है कि रोजमर्रा की जिंदगी में जिन उत्पादों को लोग इसलिए ल रहे हैं कि वो इस कोविड महामारी के दौरान सुरक्षित रखने में मदद कर सकता है, लेकिन वो उनके स्वास्थ्य के लिए नए खतरे पैदा कर सकता है, यह सचमुच परेशान कर देने वाला है। उनके अनुसार विडंबना यह है कि इन उत्पादों को इस तरह प्रचारित किया जाता है कि यह सुरक्षित और गैर जहरीले हैं। 

उनके अनुसार कोविड के चलते पहले से कहीं ज्यादा लोग, जिनमें चिकित्सक और स्वास्थ्य से जुड़े कार्यकर्ता शामिल हैं, इन स्प्रे और कपड़ों का उपयोग अपने चश्मे, मास्क या फेस शील्ड को फॉगिंग से बचाने के लिए कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें यह जानने का पूरा हक है, कि वे जिन उत्पादों का उपयोग कर रहे हैं उनमें क्या है। 

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