बच्चों की दिमागी बनावट पर असर डाल रहा वायु प्रदूषण, अमेरिकी अध्ययन में बड़ा खुलासा

ओरेगन यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों ने अपने नए अध्ययन में खुलासा किया है कि प्रदूषण से बच्चों के मस्तिष्क की बनावट में बदलाव हो रहे हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और व्यवहार पर असर पड़ सकता है
भारत की शत-प्रतिशत आबादी प्रदूषण की गिरफ्त में है जो उन्हें शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी कमजोर बना रहा है; फोटो: आईस्टॉक
भारत की शत-प्रतिशत आबादी प्रदूषण की गिरफ्त में है जो उन्हें शारीरिक के साथ-साथ मानसिक रूप से भी कमजोर बना रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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सारांश
  • अमेरिका के एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि वायु प्रदूषण बच्चों के दिमागी विकास पर गंभीर असर डाल सकता है।

  • ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया कि प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने से किशोरों के दिमाग की बनावट में बदलाव हो सकता है, जो सोचने-समझने और सामाजिक व्यवहार जैसी क्षमताओं को प्रभावित करता है।

क्या आप जानते हैं कि हवा में घुला प्रदूषण सिर्फ फेफड़ों और दिल को ही नहीं, बल्कि बच्चों के बढ़ते दिमाग को भी दबे पांव नुकसान पहुंचा रहा है। अमेरिका की ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक नए अध्ययन में चेताया है कि वायु प्रदूषण बच्चों के दिमागी विकास पर गंभीर असर डाल सकता है।

जर्नल एनवायरनमेंटल रिसर्च में प्रकाशित इस शोध में पाया गया कि प्रदूषित हवा के संपर्क में रहने से किशोरों के दिमाग की बनावट में बदलाव हो सकता है। इसका सबसे ज्यादा असर मस्तिष्क के फ्रंटल और टेम्पोरल हिस्सों पर पड़ता है, जो सोचने-समझने, भाषा, भावनाओं पर नियंत्रण और सामाजिक व्यवहार जैसी अहम क्षमताओं से जुड़े होते हैं।

गौरतलब है कि दूषित हवा में प्रदूषण के महीन कणों के साथ-साथ ओजोन, कार्बन, और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे हानिकारक तत्व भी होते हैं। बढ़ते औद्योगीकरण, वाहनों से निकलते धुंए और धधकते जंगलों ने इस समस्या को कहीं ज्यादा गंभीर बना दिया है।

देखा जाए तो पिछले अध्ययनों में यह तो स्पष्ट हो चुका है कि प्रदूषण सांस संबंधी बीमारियों, हृदय से जुड़े रोगों और मेटाबोलिज्म से जुड़ी दिक्कतों का कारण बन रहा है, लेकिन दिमाग और सोचने-समझने की क्षमता पर इसका असर अभी तक पूरी तरह समझा नहीं जा सका है। यही वजह है कि अपने इस नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने दिमागी विकास पर वायु प्रदूषण के पड़ते प्रभावों का अध्ययन किया है।

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धीरे-धीरे पड़ता दबाव

इसका मकसद यह समझना था कि हवा में मौजूद खास प्रदूषक किशोरों पर कैसे असर डालते हैं। किशोरावस्था वह समय है जब दिमाग तेजी से विकसित होता है, इसलिए इस उम्र के बच्चे प्रदूषण के असर के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील हो सकते हैं। यह अध्ययन उन शुरुआती शोधों में से एक है, जिसमें यह देखा गया कि समय के साथ वायु प्रदूषण किशोरों की दिमागी बनावट में क्या बदलाव लाता है।

अध्ययन के नतीजों पर प्रकाश डालते हुए प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर कैल्विन जारा ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा,  "हवा में कम मात्रा में मौजूद आम प्रदूषक अगर लंबे समय तक शरीर में जाते रहें तो वे विकसित हो रहे दिमाग पर धीर-धीरे दबाव डालते हैं। भले ही इसके लक्षण तुरंत सामने न आएं, लेकिन समय के साथ ये दिमाग के सामान्य विकास की दिशा को बदल सकते हैं। इसका असर जीवन भर मानसिक विकास और सेहत पर पड़ सकता है।"

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अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अमेरिका के सबसे बड़े ब्रेन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट 'एबीसीडी स्टडी' से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसमें करीब 11,000 बच्चों को शामिल किया गया था। इन बच्चों की उम्र नौ से 10 वर्ष के बीच यानी किशोरावस्था के शुरुआती दौर में थी।

अध्ययन में पाया गया कि पार्टिकुलेट मैटर, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और ओजोन जैसे प्रदूषकों के संपर्क से दिमाग की बाहरी परत (कॉर्टेक्स) की मोटाई असामान्य रूप से कम हो रही है। यह प्रक्रिया अगर तेज हो जाए तो ध्यान, याददाश्त और सीखने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। बता दें कि कॉर्टेक्स दिमाग के सामान्य विकास का अहम संकेत मानी जाती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, अगर यह परत असामान्य रूप से या तेजी से पतली होने लगे, तो यह दिमाग में किसी गड़बड़ी का संकेत हो सकता है और इससे सोचने-समझने की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है।

प्रदूषण के ‘सुरक्षित’ स्तर पर भी खतरा

अध्ययन के मुताबिक यह समस्या शहरों में ज्यादा गंभीर है, लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि ये बदलाव उन बच्चों में भी दिख रहे हैं, जो ऐसे इलाकों में रह रहे हैं जहां प्रदूषण का स्तर पर्यावरण एजेंसी की तय “सुरक्षित” सीमा से भी कम है।

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शोधकर्ताओं के मुताबिक यह सिर्फ किसी एक बच्चे की बात नहीं। यह दुनिया भर के करोड़ों बच्चों का सवाल है, जो सालों तक प्रदूषण के कम स्तर में सांस ले रहे हैं।

पढ़ाई और व्यवहार पर असर की आशंका

वैज्ञानिकों का कहना है कि दिमाग के इन अहम हिस्सों के विकास में बदलाव से बच्चों में एकाग्रता की कमी, याददाश्त की कमजोरी और भावनात्मक असंतुलन हो सकता है। इसका असर उनकी पढ़ाई और व्यवहार पर भी पड़ सकता है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं के मुताबिक प्रदूषण अब सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं रहा। यह बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट बन चुका है। शोधकर्ताओं ने इस बात पर भी जोर दिया है कि डॉक्टर अकेले इस समस्या को नहीं सुलझा सकते। इसके लिए साफ परिवहन, हरित क्षेत्रों का विस्तार और सख्त वायु गुणवत्ता मानकों जैसी नीतिगत कोशिशें भी जरूरी हैं। साथ ही, इलाज करते समय डॉक्टरों को पर्यावरण संबंधी कारकों को भी ध्यान में रखना होगा।

अध्ययन के नतीजे स्पष्ट हैं, हवा में घुला जहर बच्चों के दिमाग पर दबे पांव वार कर रहा है। यह अध्ययन चेतावनी है कि अगर अब भी प्रदूषण पर काबू नहीं पाया गया, तो इसकी कीमत आने वाली पीढ़ियों को अपने स्वास्थ्य और भविष्य से चुकानी पड़ सकती है।

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