
65.82 फीसदी क्षेत्रों में हरियाली बढ़ी – उपग्रह आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार दशकों में हरियाली में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
आधी जगहों पर मिट्टी की नमी घटी – हरियाली के बावजूद मिट्टी का सूखना “ग्रीनिंग-ड्राइंग” पैटर्न कहलाता है।
वनस्पति से बढ़ी पानी की खपत – ज्यादा पौधे मिट्टी से अधिक पानी खींचते हैं और प्रस्वेदन के जरिए वायुमंडल में छोड़ते हैं।
जलवायु व कृषि पर खतरा – मिट्टी की नमी घटने से फसल उत्पादन, पेयजल और जलवायु संतुलन पर बुरा असर पड़ेगा।
संतुलित वनरोपण व जल संरक्षण जरूरी – स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप पेड़ लगाना, वर्षा जल संचयन और भूजल पुनर्भरण पर ध्यान देना होगा।
पिछले चार दशकों में धरती पर पेड़-पौधों और हरियाली में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। उपग्रहों से मिली तस्वीरों और कई वैज्ञानिक अध्ययनों में यह साफ दिखा है कि दुनिया के लगभग दो-तिहाई हिस्सों में वनस्पति की हरियाली बढ़ी है।
पहली नजर में यह सुनने में बहुत अच्छा या सकारात्मक लगता है, क्योंकि अधिक हरियाली का अर्थ है अधिक ऑक्सीजन, बेहतर पर्यावरण और जलवायु संतुलन। लेकिन एक नए शोध ने इस हरियाली के साथ जुड़ी एक बड़ी और चिंताजनक सच्चाई को सामने रखा है।
चीनी विज्ञान अकादमी के शिनजियांग इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी एंड जियोग्राफी के शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए इस अध्ययन को कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया भर में हरियाली तो बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ-साथ कई जगहों पर मिट्टी की नमी तेजी से घट रही है। यानी पेड़-पौधों का बढ़ना हमेशा पानी और मिट्टी के लिए फायदेमंद नहीं है।
किस तरह किया गया अध्ययन?
शोधकर्ताओं ने उपग्रहों के कई प्रकार के आंकड़ों का दोबारा विश्लेषण और 12 अलग-अलग अर्थ सिस्टम मॉडल्स का उपयोग किया। यह अध्ययन 1982 से लेकर 2100 तक की अवधि को शामिल करता है। इतने बड़े पैमाने के आंकड़ों से वैज्ञानिक यह समझ पाए कि वनस्पति में बढ़ोतरी और मिट्टी की नमी के बीच वास्तविक संबंध क्या है।
क्या कहते हैं अध्ययन के निष्कर्ष?
अध्ययन में पाया गया कि दुनिया की 65.82 फीसदी इलाकों में जहां-जहां वनस्पति मौजूद है, वहां हरियाली में वृद्धि हुई है। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, इनमें से लगभग आधे क्षेत्रों में मिट्टी की नमी घट गई है। इसे वैज्ञानिकों ने “ग्रीनिंग-ड्राइंग” (हरियाली-सूखापन) पैटर्न कहा है। यह पैटर्न खासकर उन इलाकों में ज्यादा दिखाई दिया, जहां पहले से ही पानी की कमी है।
किन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा असर?
इसका असर मध्य अफ्रीका, मध्य एशिया, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के मध्य और उत्तरी हिस्सों में देखने को मिला है। इन इलाकों में हरियाली बढ़ने के बावजूद मिट्टी लगातार सूख रही है। इसका मतलब है कि वनस्पति की वृद्धि पानी का संतुलन बिगाड़ रही है।
वहीं दूसरी ओर कुछ क्षेत्रों में हरियाली के साथ मिट्टी की नमी भी बढ़ी है। इस पैटर्न को “ग्रीनिंग-वेटिंग” (हरियाली-नमी) कहा गया है। ऐसे क्षेत्रों में उत्तर अमेरिका के कुछ हिस्से, भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिणी साहेल क्षेत्र (अफ्रीका) शामिल हैं।
आखिर हरियाली क्यों सुखा रही है मिट्टी?
सामान्य तौर पर हम सोचते हैं कि पेड़-पौधों की वृद्धि मिट्टी को बचाती है और नमी को बनाए रखती है। लेकिन वास्तविकता यह है कि जब किसी पानी-कमी वाले इलाके में अचानक से वनस्पति बहुत अधिक बढ़ती है तो पेड़-पौधे अपनी जरूरत के लिए ज्यादा पानी खींचते हैं। पौधे प्रस्वेदन (ट्रांस्पिरेशन) के जरिए बड़ी मात्रा में पानी वायुमंडल में छोड़ते हैं।
ज्यादा पेड़-पौधों का मतलब है कि मिट्टी से ज्यादा पानी खींचा जाएगा। इससे धीरे-धीरे मिट्टी सूखने लगती है और जल संकट बढ़ सकता है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि हरियाली हमेशा जल संसाधनों के लिए फायदेमंद नहीं होती। पानी की कमी वाले इलाकों में अधिक पेड़-पौधे मिट्टी की नमी को और तेजी से कम कर सकते हैं।
क्या खतरे हैं?
यदि यह “ग्रीनिंग-ड्राइंग” पैटर्न जारी रहा तो आने वाले दशकों में कई इलाकों में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है। खासकर वे क्षेत्र जहां पहले से ही पानी की उपलब्धता सीमित है। खेती पर असर पड़ेगा क्योंकि मिट्टी की नमी फसल उत्पादन के लिए सबसे जरूरी है। जलवायु असंतुलन बढ़ सकता है, क्योंकि सूखी मिट्टी ज्यादा गर्मी सोखती है। पेयजल संकट गहराएगा और समाज पर सामाजिक-आर्थिक दबाव बढ़ेगा।
आगे क्या किया जाए?
यह अध्ययन हमें एक बड़ा संदेश देता है, पर्यावरण संरक्षण का मतलब केवल पेड़ लगाना नहीं है, बल्कि पानी और मिट्टी की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए योजना बनाना भी है। संतुलित वनरोपण के तहत जहां पानी कम है, वहां स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप पेड़ लगाने चाहिए।
जल संरक्षण तकनीकें वर्षा जल संचयन, ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों को अपनाना जरूरी है। मिट्टी की नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग, ऑर्गेनिक खेती और भूजल पुनर्भरण पर काम करना होगा। नीतिगत स्तर पर यह तय करना होगा कि कौन-सी जगह पर कितनी हरियाली टिकाऊ साबित होगी।
आखिर में धरती की हरियाली बढ़ना निश्चित रूप से एक अच्छी खबर है, लेकिन यह आधी सच्चाई है। अगर हरियाली के साथ मिट्टी की नमी कम होती है तो यह भविष्य में बड़े संकट का कारण बन सकती है। इसलिए हमें केवल पेड़ लगाने पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि जल और मिट्टी की उपलब्धता को समझकर ही पर्यावरणीय योजनाएं बनानी चाहिए।
यह शोध हमें याद दिलाता है कि प्रकृति में हर चीज का संतुलन बेहद जरूरी है। हरियाली तभी स्थायी और फायदेमंद होगी, जब उसके साथ-साथ पानी और मिट्टी की सेहत को भी बचाया जाएगा।