मिट्टी के सूखने और गर्म होने की घटनाओं में भारी वृद्धि, पौधों और जीवों पर संकट

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जंगलों के घटने और नमी वाली जमीन को कृषि भूमि में बदले जाने से सॉइल कंपाउंड ड्राउट - हीटवेव (एससीडीएचडब्ल्यू) का खतरा और बढ़ जाएगा।
सॉइल कंपाउंड ड्राउट - हीटवेव (एससीडीएचडब्ल्यू) की औसत अवधि में काफी वृद्धि होगी, जिसका अर्थ है कि मिट्टी के जीव और पौधों की जड़ प्रणाली अत्यधिक पानी और गर्मी के तनाव से उबरने के लिए संघर्ष करेगी
सॉइल कंपाउंड ड्राउट - हीटवेव (एससीडीएचडब्ल्यू) की औसत अवधि में काफी वृद्धि होगी, जिसका अर्थ है कि मिट्टी के जीव और पौधों की जड़ प्रणाली अत्यधिक पानी और गर्मी के तनाव से उबरने के लिए संघर्ष करेगीफोटो साभार: आईस्टॉक
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मिट्टी हमारे जीवन के लिए बहुत जरूरी है और यह पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाती है। पौधों की जड़ों को सहारा देती है और कई सूक्ष्मजीवों को आश्रय देती है। गर्म होती दुनिया में यह समझना जरूरी है कि मिट्टी की नमी और सूखे की परिस्थितियां कैसे बदल रही हैं।

यह शोध चीनी अकादमी ऑफ साइंसेज के नानजिंग इंस्टीट्यूट ऑफ ज्योग्राफी एंड लिम्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। शोध में 1980 से 2023 तक दुनिया भर में मिट्टी पर सूखे और भयंकर गर्मी का असर जिसे सॉइल कंपाउंड ड्राउट - हीटवेव (एससीडीएचडब्ल्यू) कहा जाता है, इससे संबंधित घटनाओं की मात्रा तय की गई है, साथ ही इस सदी के अंत तक वह किस तरह और बढ़ेगी इसका पूर्वानुमान जारी किया गया है।

शोधकर्ताओं ने अतीत और भविष्य में दुनिया भर में मिट्टी पर सूखे और भयंकर गर्मी के असर के रुझानों और बदलावों का विश्लेषण किया। शोध में कहा गया है कि इसमें लंबे समय के आंकड़ों को भी शामिल किया गया है।

शोधकर्ताओं ने पिछले 44 सालों में मिट्टी पर सूखे और भयंकर गर्मी की घटना दर, अवधि, चरमता और गंभीरता के साथ-साथ दुनिया भर में प्रभावित क्षेत्र में हो रही बढ़ोतरी का भी खुलासा किया।

शोध में कहा गया है कि 1980 से 2023 तक, विशेष रूप से इस सदी में मिट्टी पर सूखे और भयंकर गर्मी में भारी वृद्धि देखी गई। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ग्लोबल वार्मिंग ने इसमें बड़ी जिम्मेदारी निभाई और एल नीनो वाले सालों में स्थिति और भी बदतर हुई है

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से बताया कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मिट्टी पर सूखे और भयंकर गर्मी में वृद्धि गर्मियों के मौसम पर आधारित थी, जो जल सुरक्षा के लिए एक भारी चुनौती है। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि मिट्टी पर सूखे और भयंकर गर्मी का बहुत ज्यादा असर देखा गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि सामान्य तौर पर, उत्तरी गोलार्ध में सॉइल कंपाउंड ड्राउट - हीटवेव (एससीडीएचडब्ल्यू) अधिक तीव्र थे और यह दक्षिणी गोलार्ध में लंबे समय तक बने रहे।

उत्तरी उच्च अक्षांशों में एससीडीएचडब्ल्यू की गंभीरता तेजी से बढ़ी, जहां मिट्टी का तापमान आमतौर पर कम था और गर्मी का असर साफ दिखा। ये घटनाएं उत्तरी गोलार्ध में कार्बन पर पूरी तरह से लगाम लगाने के लक्ष्यों और दक्षिणी गोलार्ध में खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को खतरे में डाल सकती हैं।

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि जंगलों का क्षरण और नमी वाली जमीन को कृषि भूमि में बदले जाने से एससीडीएचडब्ल्यू का खतरा और बढ़ जाएगा। जलग्रहण प्रबंधन के लिए मिट्टी को सूखने और अधिक गर्म होने के खतरे से बचाने के लिए स्थायी नीतियों और कार्यों की आवश्यकता होती है। शोधकर्ता ने शोध में प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के प्रयासों को जारी रखने पर जोर दिया।

नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि यदि इस पर गौर नहीं किया गया, तो इस सदी के अंत तक दुनिया भर में भयानक एससीडीएचडब्लू पैदा होंगे, जिनकी औसत अवधि 70 दिनों से अधिक होगी और एसएसपी पांच से 8.5 उत्सर्जन परिदृश्य के तहत मिट्टी का तापमान संबंधी विसंगति 10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगी।

हर एक एससीडीएचडब्लू की औसत अवधि में काफी वृद्धि होगी, जिसका अर्थ है कि मिट्टी के जीव और पौधों की जड़ प्रणाली अत्यधिक पानी और गर्मी के तनाव से उबरने के लिए संघर्ष करेगी।

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