क्या वन विस्तार से खेती पर असर पड़ता है? क्या है राजस्थान का अनुभव?

2003 से 2010 के बीच भारत के राजस्थान राज्य में वन विस्तार का एक सबसे बड़ा कार्यक्रम लागू किया गया था
जंगलों के बढ़ने से मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों की गतिविधि बढ़ने से फसलों की उत्पादकता में सुधार हुआ।
जंगलों के बढ़ने से मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों की गतिविधि बढ़ने से फसलों की उत्पादकता में सुधार हुआ।प्रतीकात्मक छवि, फोटो साभार: आईस्टॉक
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Summary
  • जंगल विस्तार से बढ़ी खेती की उपज – राजस्थान में जंगल कार्यक्रम शुरू होने के सात –14 साल बाद कृषि उपज में लगभग 24 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई।

  • परागण करने वाले जीव-जंतु सक्रिय – मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों की गतिविधि बढ़ने से फसलों की उत्पादकता में सुधार हुआ।

  • वर्षा में मामूली बढ़ोतरी – औसतन दो फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई, जिसका सीधा फायदा बारिश पर आधारित फसलों को मिला।

  • नीति और विकास के नए संकेत – पेड़ लगाने के कार्यक्रम केवल कार्बन अवशोषण तक सीमित नहीं, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था और किसानों की आय को भी बढ़ा सकते हैं।

  • जंगल और खेती पूरक साबित – यह अध्ययन दर्शाता है कि जंगल और खेती एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साथ-साथ फलने-फूलने वाले हैं।

दुनिया भर में सबसे अधिक जंगल खेती और खेती के विस्तार के कारण काटे जा रहे हैं। अधिक फसल उत्पादन और बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्सर जंगल काटकर जमीन तैयार की जाती है। यही कारण है कि यह धारणा लंबे समय से बनी हुई है कि अगर जंगलों का विस्तार किया जाए तो खेती की जमीन कम हो जाएगी और खेती का उत्पादन घटेगा। लेकिन जॉर्जिया टेक के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की एक नए शोध ने इस सोच को चुनौती दी है।

इस शोध के मुताबिक, जंगल बढ़ाने से खेती को नुकसान नहीं होता, बल्कि कृषि उत्पादन में सुधार भी हो सकता है। यह अध्ययन भारत के एक राज्य राजस्थान में किए गए बड़े पैमाने पर जंगलों के विस्तार कार्यक्रम पर आधारित है।

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जंगलों के बढ़ने से मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों की गतिविधि बढ़ने से फसलों की उत्पादकता में सुधार हुआ।

क्या कहता है अध्ययन?

शोधकर्ताओं ने पाया कि जंगलों के विस्तार कार्यक्रम शुरू होने के सात से 14 साल बाद कृषि उपज में लगभग 24 फीसदी की वृद्धि हुई। नए जंगलों से मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों की गतिविधि बढ़ी, जिससे फसलों की उपज बेहतर हुई।

दो फीसदी बारिश भी अधिक दर्ज की गई। यह आंकड़ा सांख्यिकीय रूप से बहुत मजबूत नहीं था, लेकिन इसका असर खासकर बारिश पर निर्भर फसलों पर दिखा। जिन फसलों को सिंचाई की जरूरत थी, उनमें ज्यादा फर्क नहीं आया, लेकिन बारिश पर निर्भर फसलों में उपज स्पष्ट रूप से बढ़ोतरी देखी गई।

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लैंड इकोनॉमिक्स नामक पत्रिका में प्रकशित अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह है कि जंगल बढ़ाने से खेती पर कोई भी बुरा असर नहीं पड़ा। यानी खेती की जमीन कम होने या उत्पादन घटने जैसी आशंकाएं निराधार साबित हुई।

नीति और विकास के लिए संकेत

यह अध्ययन सिर्फ पर्यावरणीय नजरिए से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि नीति निर्धारण और विकास कार्यक्रमों के लिए भी नए रास्ते खोलता है। जंगलों के विस्तार से कार्बन अवशोषण तो होता ही है, साथ ही यह खेती को भी फायदा पहुंचाता है, यानी यह दोहरी जीत है।

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विकास कार्यक्रमों की नई दिशा

आम तौर पर विकास कार्यक्रमों में गरीबों को सीधी आर्थिक मदद दी जाती है। लेकिन इस अध्ययन से साबित होता है कि पेड़ लगाने जैसी परियोजनाएं अप्रत्यक्ष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर सकती हैं।

सरकारी योजनाओं का मूल्यांकन

कई बार सरकारें पेड़ लगाने के कार्यक्रमों का आकलन केवल लागत और कार्बन कैप्चर के आधार पर करती हैं। लेकिन अब इस शोध से पता चलता है कि इसके बड़े सामाजिक और आर्थिक फायदे हैं।

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किसानों के लिए क्या मायने हैं?

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह शोध बेहद अहम है। अगर पेड़ लगाने से नमी और बारिश में सुधार होता है, तो इसका सीधा फायदा किसानों को मिलेगा।परागण करने वाले जीव-जंतु खेती की उत्पादकता बढ़ाते हैं। जंगल स्थानीय जलवायु को स्थिर बनाते हैं, जिससे लंबे समय में सूखा या बाढ़ जैसी चरम स्थितियों से बचाव हो सकता है।

क्या है सावधानी और सीमाएं?

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि यह नतीजे हर जगह एक जैसे नहीं हो सकते। राजस्थान का भौगोलिक और जलवायु परिदृश्य अलग है। इसलिए यह जरूरी है कि ऐसे प्रयोग अन्य राज्यों और देशों में भी किए जाएं।

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यह अध्ययन हमारी सोच को बदलने वाला है। अब तक हम मानते थे कि जंगल और खेती एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं,जंगल बढ़ेंगे तो खेती घटेगी। लेकिन राजस्थान के उदाहरण से यह साबित होता है कि जंगल और खेती एक-दूसरे के पूरक भी हो सकते हैं।

इससे हमें यह सीख मिलती है कि पर्यावरण और विकास को अलग-अलग नहीं बल्कि साथ-साथ देखा जाना चाहिए। अगर सही ढंग से योजनाएं बनाई जाएं तो जंगल भी बढ़ सकते हैं, खेती भी फल-फूल सकती है और जलवायु परिवर्तन से भी मुकाबला किया जा सकता है।

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