फसलों को बचाएगा जंगली गेहूं, जानें क्या है इसकी खासियत

एक नए शोध में पहली बार जंगली गेहूं में जीन की एक खास जोड़ी मिली है, जो मिलकर फसल को बीमारी से बचाती है
ज्यादा से ज्यादा शोध व विभिन्न प्रकार के फसलों के प्रजनन को लेकर एक दूसरे के संबंधों पर नजर रखने से किसानों के लिए अधिक उत्पादक किस्में विकसित करने में मदद कर सकती है।
ज्यादा से ज्यादा शोध व विभिन्न प्रकार के फसलों के प्रजनन को लेकर एक दूसरे के संबंधों पर नजर रखने से किसानों के लिए अधिक उत्पादक किस्में विकसित करने में मदद कर सकती है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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फसलों को खराब करने वाले बैक्टीरिया, वायरस और फफूंद (कवक) हर बार नए तरीके अपनाकर बीमारियां फैलाते हैं। इन रोगों से फसलों को बचाना एक बड़ी चुनौती है। इसी चुनौती से निपटने के लिए कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ सस्केचेवान के वैज्ञानिकों ने गेहूं की जंगली किस्मों पर रिसर्च की है। उन्होंने यह पता लगाने की कोशिश की कि जंगली गेहूं में बीमारी फैलाने वाले कारकों से लड़ने की कितनी ताकत होती है।

क्या होता है जंगली गेहूं?

जंगली गेहूं यानी गेहूं की वह प्रजातियां जो खेतों में बोई नहीं जातीं, बल्कि जंगलों या खुले इलाकों में अपने आप उगती हैं। इन्हें इंसान ने नहीं उगाया होता, ये खुद-ब-खुद प्रकृति में पनपती हैं।

जंगली गेहूं में मौसम की मार और बीमारियों को सहने की जबरदस्त ताकत होती है। यही वजह है कि वैज्ञानिक इनका उपयोग नई और मजबूत किस्में तैयार करने के लिए करते हैं।

एक उदाहरण है "ट्रिटिकम बोयोटिकम", जो "एन्कोर्न गेहूं" का जंगली रूप है। जंगली गेहूं की खासियत होती है कि इनमें बालियां (गेहूं के दाने वाली हिस्सा) आसानी से टूट जाती हैं, जिससे बीज खुद ही बिखर जाते हैं और नए पौधे उग जाते हैं। ये खासियतें आम खेतों में उगाए जाने वाले गेहूं में नहीं पाई जातीं।

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शोध में कहा गया है कि इससे शोधकर्ताओं को कुछ ऐसा पता चला जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था, जंगली गेहूं में जीन की एक अनोखी जोड़ी पाई गई जो बीमारी से बचाने के लिए एक साथ काम करती है।

अपने किस्म विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए, यूनिवर्सिटी ऑफ सस्केचेवान का फसल विकास केंद्र (सीडीसी) गेहूं के जीन पर शोध कर रहा है। साथ ही उपयोगी लक्षणों के लिए इसके जंगली रिश्तेदारों की जांच की जा रही है जिन्हें नई गेहूं की किस्मों में लागू किया जा सकता है।

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अभी तक जंगली गेहूं को घरेलू तौर पर नहीं उगाया जाता है, इसलिए इसका सीधे प्रजनन में उपयोग नहीं किया जा सकता है, लेकिन इसमें पर्यावरणीय खतरों का जवाब देने के लिए उपयोगी विविधता है। यह इसे फसल प्रतिरोध के नए तरीकों को सीखने के लिए आदर्श बनाता है।

यह सीडीसी में अनुसंधान फसल किस्मों को बेहतर बनाने से जुड़ा है। फसल प्रजनन में बुनियादी अनुसंधान को एक साथ जोड़ने, सीडीसी के वैज्ञानिक खोजों को नई अधिक उपज वाली किस्मों में बदल रहे हैं, जिनका उपयोग उत्पादकों द्वारा किया जा सकता है।

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बीमारी से लड़ने वाले नए प्रतिरोध जीन की पहचान करना

शोध का एक हिस्सा नए प्रतिरोध जीन की पहचान करके, फसलों में रोग फैलाने वालों से एक कदम आगे रहना है, ताकि इनसे आसानी से प्रतिरोध को दूर न कर सके। गेहूं की एक जंगली प्रजाति पर गहराई से नजर डालने पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि इसने धारीदार रस्ट से मुकाबला करने की क्षमता दिखाई, जो एक प्रकार का फंगल संक्रमण है जो उत्पादकों के लिए शीर्ष पांच बीमारियों में से एक है।

शोधकर्ताओं को जल्द ही एहसास हुआ कि इस जंगली प्रजाति में उन्होंने जिस प्रतिरोध की पहचाना की थी, वह अपेक्षा से अलग व्यवहार कर रहा था। नेचर जेनेटिक्स में प्रकाशित शोध में कहा गया है कि जब प्रतिरोध का आकलन करना शुरू किया, तो देखा गया कि यह उन अन्य जीनों से अलग था जिनका पहले अध्ययन किया गया था। प्रतिरोध एक असामान्य तरीके से काम कर रहा था, जो एक बहुत ही अलग पौधे की प्रतिक्रिया की ओर इशारा करता है।

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शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया कि आमतौर पर एक जीन बीमार करने के लिए जिम्मेदार होता है, लेकिन इस जंगली गेहूं के मामले में, उन्होंने तय किया कि पूर्ण प्रतिरोध के लिए एक जोड़ी के रूप में एक साथ काम करने वाले दो जीन जरूरी हैं। एक जीन हमलावर रोगजनक को महसूस करने के लिए जिम्मेदार होता है जबकि दूसरे पौधे की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करता है ताकि रोगजनक को उसके रास्ते में ही रोका जा सके।

यह तय करने के लिए कि प्रतिरोध के लिए कौन से जीन जिम्मेदार हैं, प्रयोगों में प्रत्येक जीन को “बंद” कर दिया। जब जीन को “बंद” कर दिया जाता है, तो पौधा अब खुद की रक्षा नहीं कर सकता और रोगजनक के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाता है। हालांकि यह अनोखी जीनों की जोड़ी थोड़ी असामान्य साबित हुई, जिससे शोधकर्ता के परिणामों में रुकावट आई।

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शोध में कहा गया है कि कुछ पौधे ऐसे थे जो शोधकर्ताओं को अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाए। इसलिए शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोगों पर फिर से विचार किया और इस बात की जांच की कि क्या वास्तव में दो जीन शामिल थे या नहीं। शोध के मुताबिक, दोबारा परीक्षण करने के बाद परिणाम स्पष्ट हो गए।

शोध में गहराई से खोजबीन की गई और पाया कि दो अलग-अलग जीन प्रोटीन परस्पर क्रिया करते हैं, प्रतिरोध प्रतिक्रिया शुरू करने के लिए शारीरिक रूप से एक साथ आते हैं।

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शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि जब चीजें सही दिशा में नहीं होती हैं, तो कई बार आगे बढ़ने का प्रलोभन देना होता है। लेकिन इस बात का पता लगाने के लिए गहराई से खोजबीन की गई, कि क्या चल रहा है और तब इस बात का एहसास हुआ कि जीन आपस में क्रिया कर रहे थे और एक साथ काम कर रहे थे और यही वास्तव में नया है।

हालिया शोधपत्र में प्रकाशित जीनों की तरह अधिक प्रतिरोध प्रदान करने वाले जटिल जीन इंटरैक्शन की पहचान करना, फसलों के रोग के खिलाफ निरंतर मुकाबले के लिए जरूरी है। जीन के अजीब व्यवहार के कारण, शोधकर्ताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए डीएनए परीक्षण विकसित किया कि जीन की जोड़ी नए पौधों में मौजूद है। इस डीएनए परीक्षण के साथ, इन जीनों का प्रजनन कार्यक्रम में नियमित रूप से उपयोग किया जा सकता है।

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इस तरह की खोजों से सीडीसी के द्वारा अपने आनुवंशिक टूल किट में एक मजबूत उपकरण को जोड़ा गया हैं, जिससे आने वाले कई सालों तक गेहूं की मजबूत और अधिक लचीली किस्मों का उत्पादन करने में मदद मिलती है।

शोध और प्रजनन के एक दूसरे के संबंधों पर नजर रखने और किसानों के लिए सबसे अधिक उत्पादक किस्में विकसित करने में मदद करती है। यह शोध वास्तव में हमें पौधों के जीव विज्ञान की जटिलता को समझने में भी मदद करता है। पौधों को वास्तव में वातावरण के अनुसार ढलने की जरूरत पड़ती है और वे इसे शानदार और दिलचस्प तरीकों से करते हैं।

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