गेहूं के व्यापार में रोक लगाने से दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा भारी असर: शोध

दुनिया भर में गेहूं से संबंधित व्यापार कुछ मुट्ठी भर देशों पर निर्भर है, जहां केवल कुछ देशों में व्यवधान का दुनिया भर पर असर पड़ सकता है।
गेहूं के व्यापार में रोक लगाने से दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा भारी असर: शोध
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यूक्रेन में महामारी और युद्ध के कारण दुनिया भर में खाद्य आपूर्ति के मुद्दों को लेकर एक बड़ी कजोरी सामने आई है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार देशों को घरेलू भोजन की उपलब्धता की कमी को दूर करने के लिए इसे जमा करने और बड़े बाजारों तक पहुंच हासिल करने की अनुमति देता है।

क्या होता है जब दुनिया भर में आपूर्ति कम हो जाती है, आपूर्ति श्रृंखला धीमी हो जाती है या यहां तक ​​कि यह टूट जाती है जैसे कि महामारी के दौरान हुई थी?

कैलिफोर्निया के विश्वविद्यालय, डेविस के अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि दुनिया भर में गेहूं के व्यापार नेटवर्क में व्यापार और केंद्रीयता, खाद्य सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है।

अध्ययन से पता चलता है कि कई देश अपनी खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए व्यापार पर निर्भर हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया भर में गेहूं से संबंधित व्यापार कुछ मुट्ठी भर देशों पर निर्भर है, जहां केवल कुछ देशों में व्यवधान का दुनिया भर पर असर पड़ सकता है।

अध्ययन में यह समझना कि वैश्विक गेहूं आपूर्ति श्रृंखला में केंद्रीयता नेटवर्क दृष्टिकोण का उपयोग करके दुनिया भर में यह भूख को कैसे प्रभावित करती है

अध्ययनकर्ताओं में हवाई के मनोआ विश्वविद्यालय के शहरी और क्षेत्रीय योजना विभाग के सहायक प्रोफेसर सुभाषनी राज, यूसी डेविस के सहायक प्रोफेसर कैथरीन ब्रिंकले आदि शामिल हैं।

भोजन में मौजूदा कमी और वैश्विक अनाज आपूर्ति पर चिंता अब वैश्विक व्यापार चिंताओं में सबसे आगे है। ब्रिंकले ने कहा खाद्य अनाज जैसे- गेहूं, मक्का और चावल मानव कैलोरी खपत के 50 फीसदी से अधिक उपभोग किए जाते हैं और यह वैश्विक खाद्य असुरक्षा को कम करते हैं। उन्होंने कहा रूस और यूक्रेन की रोटी की टोकरी के बीच संघर्ष जारी है, इसने दुनिया भर में भोजन की कमी की चिंता को बढ़ा दिया है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध के चलते अनाज की आपूर्ति में कमी आई है, साथ ही इसके कारण दुनिया भर में अनाज और खाद्य की कीमतों में वृद्धि हुई है। विशेष रूप से ग्लोबल साउथ में जहां देश अनाज आयात पर भरोसा करते हैं। इस क्षेत्र में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, प्रशांत द्वीप समूह और मध्य पूर्व सहित एशिया के विकासशील देश शामिल हैं।

ज्यादा जमीन होने का मतलब ज्यादा खाना नहीं है

इसके अलावा शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिक कृषि भूमि होने का मतलब राष्ट्रीय पोषण के स्तर का अधिक होना यह जरूरी नहीं है। ब्रिंकले ने कहा की यह उम्मीद की जा सकती है कि बहुत सारे खेत होने से भूख से निपटने में मदद मिलेगी। फिर भी, दुनिया के कृषि के तौर पर समृद्ध क्षेत्र अक्सर संसाधनों पर नियंत्रण के लिए शाब्दिक युद्धक्षेत्र की तरह होते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा कि खाद्य संसाधनों को अक्सर विशाल वैश्वीकृत खाद्य श्रृंखला से जोड़ा जाता है, जहां उन समुदायों पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है जहां श्रृंखला शुरू हुई थी। अंतरराष्ट्रीय खाद्य अर्थव्यवस्था में देशों को लाभ उठाने के लिए अपने स्वयं के लोगों की खाद्य असुरक्षा को कम करना होगा।

शोधकर्ता राज ने कहा कि ग्लोबल नार्थ में कम उत्पादन क्षमता वाले देश उस आपूर्ति श्रृंखला के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नियंत्रित करते हैं। उनकी क्रय शक्ति और गेहूं के व्यापार से सटे इलाकों को देखते हुए उनका दबदबा बढ़ जाता है।

जब आप वैश्विक गेहूं व्यापार को देखते हैं तो उपनिवेशवाद और दास व्यापार के माध्यम से धन संचय के ऐतिहासिक पैटर्न भी दिखाई देते हैं। सीमित कृषि भूमि वाले कई यूरोपीय देश वैश्विक गेहूं आपूर्ति श्रृंखला के लिए खुद को अत्यधिक केंद्रीय पाते हैं, जो व्यापार समझौतों और व्यापार पैटर्न को दर्शाते हैं।

शोधकर्ताओं ने वैश्विक व्यापार नेटवर्क के पुनर्निर्माण और सबसे प्रभावशाली देशों की पहचान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय गेहूं व्यापार के आंकड़ों का उपयोग किया। उन्होंने पाया कि वैश्विक स्तर पर अनाज के व्यापार करने वाले देशों में, दुनिया भर में गेहूं का निर्यात करने वाले आधे से अधिक देशों में जर्मनी, इटली, फ्रांस, तुर्की, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा शामिल हैं।

यह दुनिया भर में गेहूं के मूल्य श्रृंखला को कमजोर बनाता है, क्योंकि इनमें से किसी एक देश के एक झटके में दुनिया भर में फैलने की संभावना है।

व्यापार नेटवर्क की असंतुलित संरचना को ठीक करने के लिए, शोधकर्ताओं ने क्षेत्रीय और स्थानीय खाद्य प्रणालियों पर अधिक जोर देने का सुझाव दिया। साथ ही उन्हें अध्ययन में शामिल किया गया क्योंकि अच्छी तरह से काम करने वाली स्थानीय खाद्य प्रणालियां बड़ी वैश्वीकृत खाद्य प्रणाली में कमी और गड़बड़ी का अधिक प्रभावी ढंग से मुकाबला करती हैं। यह अध्ययन पीएलओएस वन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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