मध्य प्रदेश: शंकरगढ़ वन में नहीं होगी कोई गैर-वनीय गतिविधि, सरकार का फैसला

एनजीटी के आदेश के बाद राज्य सरकार ने परियोजना को रद्द कर क्षेत्र को वन विभाग को सौंपने का फैसला लिया है। इस वन क्षेत्र में पेड़ों की स्थानीय प्रजातियों को बढ़ावा देने के साथ जैव विविधता की सुरक्षा पर ध्यान दिया जाएगा
प्रतीकात्मक तस्वीर
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सारांश
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने मध्य प्रदेश सरकार को शंकरगढ़ नगर वन में गैर-वनीय गतिविधियों पर रोक लगाने का निर्देश दिया है।

  • सरकार को वन विभाग को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है ताकि स्थानीय प्रजातियों के पेड़ लगाए जा सकें।

  • यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण के लिए लिया गया है और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय लोगों की मदद ली जाएगी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने मध्य प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि शंकरगढ़ नगर वन में किसी भी तरह की गैर-वनीय गतिविधि की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही 31 अक्टूबर 2025 को अदालत ने वन विभाग को वहां मौजूद पेड़-पौधों और वन्यजीवों सहित संपूर्ण जैव विविधता को संरक्षित रखने के आदेश दिए हैं।

राज्य सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह वन विभाग को पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराए, ताकि शंकरगढ़ नगर वन के खाली हिस्सों में स्थानीय प्रजातियों के लंबे समय तक टिकने वाले बहुउपयोगी पेड़ लगाए जा सकें।

आदेश में यह भी कहा गया है कि वन विभाग को स्थानीय लोगों की मदद से इस क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही यह भी कहा गया है कि बिना अनुमति के कोई भी पेड़ काटा या उसे नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए।

मामला देवास जिले के शंकरगढ़ नगर वन और जैव विविधता पार्क में गैर-वनीय गतिविधियों से जुड़ा है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि शंकरगढ़ हिल्स को मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग को सौंपना वन (संरक्षण और संवर्धन) अधिनियम, 1980 के प्रावधानों के खिलाफ है।

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मध्य प्रदेश सरकार की ओर से पेश वकील ने बताया कि पर्यावरणीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने यह परियोजना छोड़ने का निर्णय लिया है।

राज्य सरकार और याचिकाकर्ता दोनों ने कहा कि अब इस क्षेत्र को ग्रीन बेल्ट के रूप में विकसित किया जाएगा और इसे वन विभाग को सौंपा जाएगा, ताकि वहां पौधारोपण और रखरखाव के माध्यम से हरियाली को बढ़ाया जा सके।

जयपुर: सांगानेर सीईटीपी में अनियमितताओं के आरोप, एनजीटी ने जांच के दिए आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 30 अक्टूबर 2025 को तीन सदस्यीय संयुक्त समिति गठित करने के निर्देश दिए हैं। यह समिति जयपुर के सांगानेर स्थित कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) के संचालन में हुई गड़बड़ियों की जांच करेगी।

यह प्लांट सांगानेर एनवायरो प्रोजेक्ट डेवलपमेंट (एसईपीडी) द्वारा, इको एनवायरो इंजीनियर्स, जयपुर की देखरेख में और सांगानेर कपड़ा रंगाई छपाई एसोसिएशन के सहयोग से संचालित किया जा रहा है।

एनजीटी की केंद्रीय पीठ ने इस समिति में जयपुर के जिला कलेक्टर, केंद्रीय भूजल बोर्ड (राजस्थान) और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक-एक प्रतिनिधि को शामिल किया है। समिति को साइट का निरीक्षण कर तथ्यात्मक रिपोर्ट और की गई कार्रवाई की जानकारी प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।

शिकायत में आरोप लगाया गया है कि प्लांट से बिना साफ किए खतरनाक गंदा पानी अवैध रूप से एक एक स्थानीय नाले में छोड़ा जा रहा है। इस नाले का आसपास की कपड़ा इकाइयां भी अवैध रूप से इस्तेमाल कर रही हैं।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सीईटीपी परिसर में एक अनधिकृत आउटलेट पाइपलाइन बनाई गई है, जो संभवतः स्वीकृत परियोजना नक्शे में शामिल नहीं है और गंदे पानी की निकासी के लिए उपयोग की जा रही है।

शिकायत में यह भी कहा गया है कि सीईटीपी परिसर में एक बोरवेल भी मौजूद है, जिससे बिना अनुमति के भूजल का दोहन किया जा रहा है। साथ ही, फ्लो मीटर और ऑनलाइन उत्सर्जन निगरानी प्रणाली जैसे उपकरणों के साथ छेड़छाड़ कर गलत आंकड़े दर्शाने के आरोप लगाए गए हैं।

एनजीटी में दायर शिकायत में यह भी कहा गया है कि परियोजना के आधिकारिक नक्शे में न तो आउटलेट पाइपलाइन और न ही बोरवेल का जिक्र है। इससे राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जयपुर दक्षिण) की निगरानी और जिम्मेदारी पर भी गंभीर सवाल उठते हैं।

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