नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पेड़ों की अवैध कटाई से जुडी एक शिकायत पर जांच के लिए सात सदस्यीय संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है। मामला हसदेव वन क्षेत्र में कोयला खनन के लिए पेड़ों की अवैध कटाई से जुड़ा है।
सात नवंबर, 2024 को दिए निर्देश के मुताबिक पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से जुड़े एक प्रतिनिधि इस समिति का नेतृत्व करेंगे, जो समन्वय के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने में मदद करेंगें कि सब कुछ सही तरीके से हो रहा है। समिति साइट का दौरा करेगी, आवश्यक जानकारी एकत्र करेगी और छह सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट तैयार करेगी। इस मामले में अगली सुनवाई 23 दिसंबर, 2024 को होनी है।
गौरतलब है कि सिटीजन्स एक्शन ग्रुप ऑफ इंडिया ने छत्तीसगढ़ के कोरबा और सरगुजा जिलों में स्थित हसदेव वन क्षेत्र में 15,000 से अधिक पेड़ों की अवैध कटाई की शिकायत को लेकर एक पत्र भेजा है। पेड़ की यह कटाई केले बासन जिले के परसा ईस्ट में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजना से जुड़ी है।
शिकायत में कहा गया है कि ग्रामीणों ने पेड़ों की कटाई का कड़ा विरोध किया, लेकिन पुलिस की दखलंदाजी से परियोजना समर्थकों के अनुरोध पर इसे जारी रखने की अनुमति मिल गई है और कटाई अब भी जारी है।
यह कोयला खनन परियोजना राजस्थान राज्य विद्युत निगम को दी गई है, जिसने छत्तीसगढ़ सरकार और अडानी कंपनी के साथ साझेदारी की थी। आरोप है कि वे दोनों अवैध रूप से पेड़ों को काटकर परियोजना को आगे बढ़ा रहे हैं।
स्थानीय समुदायों के साथ-साथ पर्यावरण पर पड़ेगा गहरा असर
डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में 137 हेक्टेयर में फैले जंगल में हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं। आरोप है कि आने वाले दिनों में यहां ढाई लाख से अधिक पेड़ काटे जाने हैं। ये पेड़ परसा ईस्ट और कांता बसन (पीईकेबी) कोयला खदान के लिए काटे जा रहे हैं। पीईकेबी को अडानी समूह द्वारा संचालित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित किया गया है।
द वायर के अनुसार, 2022 में 43 हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ काटे गए, जबकि 2023 की शुरुआत में उसी क्षेत्र में अन्य 91 हेक्टेयर पेड़ कटाई का शिकार हो गए। इस बार 21 दिसंबर, 2023 के बाद से अधिक वनों की कटाई की गतिविधियां हुईं।
भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) और भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की रिपोर्ट के मुताबिक इससे वन क्षेत्र के साथ-साथ हसदेव नदी भी प्रभावित होगी। नतीजन इंसानों और हाथियों के बीच संघर्ष बढ़ेगा और जैव विविधता पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
मई 2022 में जारी दो अध्ययनों के मुताबिक इसकी वजह से जैव विविधता पर गहरा असर होगा। इतना ही नहीं छत्तीसगढ़ में वन्य जीवों के आवास को होते नुकसान या जंगलों को साफ करने के चलते हाथियों और इंसानों में संघर्ष बढ़ा है।
आईसीएफआरई ने अपने एक अध्ययन में कहा है कि आगे आने वाले समय में जंगलों को काटे जाने से समस्या और बढ़ेगी, क्योंकि इससे शहरी क्षेत्रों में हाथियों की आवाजाही बढ़ सकती है।
इतना ही नहीं यदि खनन की अनुमति को सकारात्मक मंजूरी दे दी जाती है तो पर्यावरण के नुकसान से समुदाय की आजीविका, संस्कृति और पहचान पर भी सीधा असर पड़ेगा। अध्ययन में कहा गया कि पीईकेबी ब्लॉक "दुर्लभ, लुप्तप्राय और संकटग्रस्त वनस्पतियों और जीवों को आवास प्रदान करता है।"