

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दक्षिण दिल्ली के भाटी वन क्षेत्र में अतिक्रमण और अव्यवस्था पर चिंता जताते हुए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं।
एनजीटी ने जिलाधिकारी को जांच कर रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
एनजीटी ने यह भी पाया है कि वन विभाग के कब्जे वाली जमीन पर न तो सही तरह की बाड़ है, न ही अतिक्रमण रोकने वाले चेतावनी बोर्ड लगे हैं।
वहां पर्याप्त मात्रा में पेड़ पौधे भी नहीं लगाए हैं। इसके अलावा वन क्षेत्र के आसपास ठोस कचरा और निर्माण सम्बन्धी मलबा भी फैला हुआ है।
वन भूमि की सुरक्षा के लिए उचित बाड़ और चेतावनी बोर्ड लगाने के साथ मियावाकी पद्धति से पौधरोपण की सलाह दी गई है।
दक्षिण दिल्ली के भाटी गांव से जुड़ी वन भूमि पर हो रहे अतिक्रमण और अव्यवस्था पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने चिंता जताई है। 11 नवंबर 2025 को हुई सुनवाई में दक्षिण दिल्ली के रेंज फारेस्ट ऑफिसर ने एनजीटी को जानकारी दी कि गांव भाटी की कुछ वन भूमि, जो वन विभाग के कब्जे में तो हैं, लेकिन ये जमीनें “लैंड लॉक्ड” हैं, यानी वहां पहुंचने के लिए विभाग के कर्मचारियों के पास कोई रास्ता नहीं है।
इस पर एनजीटी ने दक्षिण दिल्ली के जिलाधिकारी को निर्देश दिया कि वे मामले की जांच कर वास्तविक स्थिति और जरूरी सुधारात्मक कदमों पर आधारित विस्तृत रिपोर्ट अदालत में पेश करें।
एनजीटी ने यह भी पाया है कि वन विभाग के कब्जे वाली जमीन पर न तो सही तरह की बाड़ है, न ही अतिक्रमण रोकने वाले चेतावनी बोर्ड लगे हैं। वहां पर्याप्त मात्रा में पेड़ पौधे भी नहीं लगाए हैं। इसके अलावा वन क्षेत्र के आसपास ठोस कचरा और निर्माण सम्बन्धी मलबा भी फैला हुआ है।
एनजीटी ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वन भूमि की सुरक्षा के लिए उचित बाड़ लगाई जाए, जो चाहे तो प्राकृतिक झाड़ियों के रूप में भी हो सकती है। साथ ही अतिक्रमण को रोकने वाले चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं।
घने जंगल के रूप में विकसित करने के लिए मियावाकी पद्धति से व्यापक पौधरोपण किया जाए। इसके साथ ही, सभी विभागों को कार्रवाई रिपोर्ट, कार्ययोजना, बजट और समयसीमा सहित विस्तृत विवरण अदालत में पेश करने को कहा गया है। वन भूमि के आसपास फैले ठोस कचरे और मलबे को तुरंत हटाने के भी आदेश दिए गए हैं।
यह मामला भाटी गांव की वन भूमि के दुरुपयोग और हंसलोक आश्रम एवं उसके अनुयायियों द्वारा क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने से जुड़ा है। सुनवाई के दौरान वन अधिकारियों द्वारा मौके पर बनाए वीडियो भी न्यायालय में पेश किए हैं।
एनजीटी के इन सख्त निर्देशों ने एक बार फिर संकेत दिया है कि दिल्ली के बचे-खुचे जंगलों की सुरक्षा अब अनिवार्य है, और किसी भी प्रकार की लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
चित्तौड़गढ़ में आरक्षित वन क्षेत्र से मात्र 269 मीटर दूर ‘रेड कैटेगरी’ उद्योग, एनजीटी ने जांच के दिए आदेश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दो सदस्यीय समिति को इस बात की जांच के आदेश दिए हैं कि क्या इशान कॉपर इंडस्ट्रीज अवैध रूप से स्थापित की गई है या नहीं।
यह एक रेड कैटेगरी की इंडस्ट्री है। आरोप है कि यह औद्योगिक इकाई राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिले के बड़ा मगरा–गंगरार आरक्षित वन क्षेत्र की सीमा से महज करीब 269 मीटर दूरी पर अवैध रूप से स्थापित की गई है।
एनजीटी ने 11 नवंबर 2025 को समिति से छह सप्ताह के भीतर साइट का निरीक्षण कर वास्तविक स्थिति और अब तक की कार्रवाई की रिपोर्ट अदालत में जमा करने को कहा है।
एनजीटी की केंद्रीय पीठ ने पाया है कि यह उद्योग, आरआईआईसीओ इंडस्ट्रियल एरिया सोनीयाना (तहसील गंगरार) में स्थित है। यह आरक्षित वन क्षेत्र की सीमा से महज 269 मीटर की दूरी पर है। यह दूरी गूगल अर्थ इमेजरी से जांची गई है।
केंद्रीय नियमों का साफ उल्लंघन होने के बावजूद, राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एक अक्टूबर 2025 को इस रेड कैटेगरी उद्योग को कंसेंट टू एस्टैब्लिश जारी कर दिया। इससे ऐसे क्षेत्र में निर्माण जारी रखने की अनुमति मिल गई, जहां उद्योग स्थापित करना पर्यावरणीय रूप से प्रतिबंधित है।
एनजीटी ने इस पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि “ऐसी कार्रवाई न सिर्फ पर्यावरण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों की भावना के खिलाफ है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के बुनियादी सावधानी और रोकथाम के सिद्धांतों को भी कमजोर करती है।“
गौरतलब है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 29 जनवरी 2025 को जारी दिशा-निर्देश, ‘उद्योगों की स्थापना के लिए प्रक्रिया और मानदंड’, स्पष्ट रूप से कहती है कि “किसी भी आबादी, शिक्षण संस्थान, पूजा स्थल, पुरातात्विक स्मारक, राष्ट्रीय उद्यान, आरक्षित वन, विरासत स्थल या प्राकृतिक नालों के 500 मीटर के दायरे में रेड कैटेगरी उद्योग स्थापित नहीं किए जा सकते।“
यह दिशा-निर्देश पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्रों के पास उद्योगों की स्थापना के लिए केंद्रीय नियम तय करते हैं।