अरावली में खनन का विरोध, ग्रामीणों ने कहा- संरक्षित क्षेत्र में कैसे किया जा सकता है खनन?

आरोप है कि हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के गांव राजावास में राज्य सरकार 119.55 एकड़ भूमि पर पत्थर खनन और 3 स्टोन क्रशर लगानी चाहती है
महेंद्रगढ़ जिले के गांव राजावास में बैठक करते ग्रामीण। फोटो: पीपुल्स फॉर अरावली
महेंद्रगढ़ जिले के गांव राजावास में बैठक करते ग्रामीण। फोटो: पीपुल्स फॉर अरावली
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हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के गांव राजावास में पत्थर खनन की कवायद का स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया है। रविवार, 8 सितंबर 2024 को हुई एक बैठक में ग्रामीणों ने कहा कि वे हर हाल में खनन का विरोध करेंगे।

बैठक के बाद जारी एक बयान में महेंद्रगढ़ जिले के राजावास-राठीवास पंचायत के सरपंच मोहित घुगु ने कहा कि राज्य सरकार अरावली की पहाड़ियों में 119.55 एकड़ भूमि पर खनन परियोजना के साथ-साथ राजावास में 3 स्टोन क्रशर स्थापित करना चाहती है। इससे जहां आसपास के गांववासियों का जीना दूभर हो जाएगा, वहीं अरावली में पाई जाने वाली जीवों की दुर्लभ प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी।

उन्होंने बताया कि साल 2016 में भी जब सरकार ने हमारे गांव में खनन शुरू करने की योजना बनाई थी, हमने इसका पूरी तरह विरोध किया था।

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ग्रामीण चाहते हैं कि उनके गांव व आसपास के जंगलों में पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजातियों के कारण संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाए। घुगु कहते हैं कि हमारे ग्राम पंचायत ने जनवरी 2023 में अधिकारियों को लिखा था कि हमारे क्षेत्र को 'संरक्षित क्षेत्र' घोषित किया जाए, क्योंकि यह वन्यजीवों से अत्यधिक समृद्ध है। दो दिन पहले जब हम खनन के मुद्दे पर महेंद्रगढ़ में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर से मिलने गए, तो उन्होंने हमें 20 जून 2023 को चंडीगढ़ वन विभाग द्वारा जारी एक पत्र दिया, जिसमें कहा गया था कि हमारे गांव में प्रस्तावित खनन क्षेत्र को पहले ही 'संरक्षित क्षेत्र' घोषित किया जा चुका है। फिर हरियाणा सरकार हमारे पहाड़ों में खनन क्यों शुरू करना चाहती है?

Aravali hills
राजावास स्थित अरावली का वह जंगल, आरोप है कि यहां खनन शुरू करना चाहती है सरकार।

उनकी मांग है कि अरावली की इन पहाड़ियों और जंगलों के इस पूरे 15 किलोमीटर के क्षेत्र, जिसमें 25 गांव शामिल हैं, को 'संरक्षित वन' घोषित किया जाए और इसे वन्यजीव अभयारण्य के रूप में नामित किया जाए, बजाय इसके कि इस क्षेत्र को मानव बस्तियों और वन्यजीव समृद्ध क्षेत्रों के बगल में पर्यावरणीय रूप से विनाशकारी गतिविधि जैसे खनन के लिए खोला जाए।

बैठक में शामिल पीपुल फॉर अरावली की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने बताया कि अरावली की पहाड़ियां थार रेगिस्तान के हरियाणा में विस्तार को रोकने वाली एकमात्र ढाल हैं। अरावली पहाड़ियां और जंगल हमारे जलवायु नियामक, प्रदूषण अवरोधक, वन्यजीव आवास, एक महत्वपूर्ण जल पुनर्भरण क्षेत्र के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि अपनी प्राकृतिक दरारों के कारण पहाड़ियां हर साल प्रति हेक्टेयर 2 मिलियन लीटर पानी जमीन में डालने की क्षमता रखती हैं। जिस तरह से कानूनी और अवैध खनन के परिणामस्वरूप अरावली पहाड़ियों को नष्ट किया जा रहा है, हरियाणा राज्य जल्द ही रेगिस्तान बन जाएगा और पानी की अत्यधिक कमी हो जाएगी।

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उनके मुताबिक व्यापक खनन के परिणामस्वरूप अरावली पर्वत श्रृंखला के पारिस्थितिकी तंत्र में कई परिवर्तन आए हैं। पहाड़ों के खनन और विनाश के कारण, पहाड़ों से बहने वाली धाराएँ और नदियाँ बहुत कम हो गई हैं और कई क्षेत्रों में सूख गई हैं।

राजस्थान के पर्यावरण कार्यकर्ता कैलाश मीना ने कहा कि विस्फोट और ड्रिलिंग गतिविधियां अरावली पहाड़ों के नीचे जलभृतों को छेद देती हैं। कई इलाकों में खनन जल स्तर से नीचे किया जाता है। दक्षिण हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के कई गांवों में भूजल स्तर 2000 फीट तक गिर गया है, जहां बड़े पैमाने पर खनन हो रहा है, जिससे लाखों ग्रामीण लोगों, मवेशियों और वन्यजीवों के लिए पीने के पानी की उपलब्धता, कृषि और जल सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

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पहाड़ों में विस्फोट के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन जमीन में गहराई तक प्रवेश करते हैं, भूजल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं और जलजनित बीमारियों को जन्म देते हैं। ग्रामीण लोग फेफड़ों से संबंधित अस्थमा, सीओपीडी, सिलिकोसिस जैसी घातक बीमारी से पीड़ित हैं। पूरे अरावली खनन क्षेत्र में स्टोन क्रशरों से निकलने वाली धूल की परत से फसलों पर परत जमने से कृषि उत्पादकता में गिरावट आई है।

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