
स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट (एसओएफआर) 2023 ने खुलासा किया है कि भारत में वन क्षेत्र और वृक्षावरण (ट्री कवर) उसके कुल क्षेत्रफल का 25.17 फीसदी है, जो पिछले अनुमान से 156.41 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि को दर्शाता है।
यह द्विवार्षिक रिपोर्ट केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) द्वारा 21 दिसंबर 2024 को जारी की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का कुल वन क्षेत्र 7,15,342.61 वर्ग किलोमीटर रिकॉर्ड किया गया, जो कुल क्षेत्र का 21.76 फीसदी है। वहीं वृक्षावरण यानी ट्री कवर को देखें तो यह 1,12,014.34 वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया, जो कुल क्षेत्र का करीब 3.41 फीसदी है।
गौरतलब है कि पर्यावरण मंत्रालय "वन आवरण" को एक हेक्टेयर या उससे अधिक भूमि के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें कम से कम 10 फीसदी वितान आवरण यानी अर्थात कैनोपी कवर हो। इसका स्वामित्व या कानूनी स्थिति कुछ भी हो, इससे फर्क नहीं पड़ता। इसमें बाग, बांस और ताड़ के पेड़ों को भी शामिल किया गया है।
‘वृक्ष आवरण’ (ट्री कवर) से तात्पर्य ऐसे क्षेत्रों से है जहां वृक्ष दर्ज वन क्षेत्रों के बाहर मौजूद होते हैं।
कई राज्यों में वन क्षेत्रों में आई है उल्लेखनीय गिरावट
रिपोर्ट में दर्शाए राज्यवार आंकड़ों से पता चला है कि देश भर में वन क्षेत्र में उल्लेखनीय गिरावट आई है। उदाहरण के लिए, असम के रिकॉर्डेड फॉरेस्ट एरिया (आरएफए), जिसमें सरकारी रिकॉर्ड में मौजूद वन शामिल हैं, उनमें 86.66 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।
रिपोर्ट के मुताबिक मध्यम सघन वन (एमडीएफ) 8,333 वर्ग किलोमीटर से घटकर 4,468 वर्ग किलोमीटर रहे गए हैं। वहीं अति सघन वन क्षेत्र 2,789 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2,833 वर्ग किलोमीटर हो गया है।
त्रिपुरा में, आरएफए के अंतर्गत मौजूद वन क्षेत्र घटकर 116 वर्ग किलोमीटर रह गया है।
अरुणाचल प्रदेश, असम, गुजरात, तेलंगाना और लद्दाख में भी इसी तरह की गिरावट देखी गई है। आरएफए को सरकारी रिकॉर्ड में आरक्षित वन या संरक्षित वन के रूप में दर्ज किसी भी क्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है।
अभिलिखित वनों के बाहर के क्षेत्रों की पहचान “10 फीसदी से अधिक वितान घनत्व वाले वृक्षों के रूप में की जाती है, जो एक हेक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं।“
रिपोर्ट में कहा गया है कि, "अधिकांश आरएफए वास्तव में वनस्पति से आच्छादित हैं। हालांकि, इन आरएफए के भीतर कुछ क्षेत्रों में 10 फीसदी से कम वृक्ष आवरण हो सकता है। ऐसे क्षेत्रों को वन आवरण की परिभाषा से बाहर रखा गया है। हालांकि उन्हें रिपोर्ट में वन आवरण मूल्यांकन में शामिल किया गया है।"
इसके अलावा, आरएफए के बाहर भी पेड़ हो सकते हैं, जिनमें कम से कम 10 फीसदी वृक्ष आवरण है और जो एक हेक्टेयर या उससे अधिक क्षेत्र को कवर करते हैं। इन क्षेत्रों को भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा वन आवरण आकलन में शामिल किया जाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक आरएफए के अंदर कुल 46,707 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कैनोपी में गिरावट का सामना कर रहे हैं। जहां यह अत्यधिक घने, मध्यम घने और खुले वन क्षेत्र से बदलकर गैर-वन क्षेत्रों में परिवर्तित हो गए हैं।
कैनोपी के घनत्व को सबसे ज्यादा नुकसान 0 से 10 हेक्टेयर वाले क्षेत्रों में हुआ, जो 31,709 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसके बाद, 10 से 50 हेक्टेयर वाले क्षेत्रों में 9,531 वर्ग किलोमीटर में वितान आवरण को नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 50 हेक्टेयर से अधिक वाले क्षेत्रों में वितान को होने वाला नुकसान 5,466 वर्ग किलोमीटर में फैला था।
50 हेक्टेयर से बड़े क्षेत्र के मामले में वितान आवरण को सबसे अधिक क्षति मिजोरम में हुई है, जहां 892.81 वर्ग किलोमीटर में इसमें गिरावट आई है। इसके बाद बाद राजस्थान में 558 वर्ग किलोमीटर और तेलंगाना में 557 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वितान आवरण को गिरावट का दंश झेलना पड़ा है।
रिकॉर्ड में बदल रहे हैं जंगल
रिपोर्ट में 92,989 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की भी पहचान की गई है, जो विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत गिरावट से जूझ रही हैं। इसमें 44,891 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का भी उल्लेख किया गया है जो मध्यम सघन वन (एमडीएफ), खुले जंगलों और झाड़ियों से गैर-वन क्षेत्रों में बदल सकते हैं।
गुजरात में मैंग्रोव को सबसे बड़ा नुकसान हुआ, जहां 2021 की तुलना में 2023 में राज्य ने 36.39 वर्ग किलोमीटर में फैले मैंग्रोव खो दिए हैं। कच्छ में रिकॉर्ड के मुताबिक सबसे ज्यादा 61.14 वर्ग किलोमीटर कवर कम हुआ है।
इसी तरह अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भी पिछले आकलन की तुलना में 4.65 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव को नुकसान झेलना पड़ा है।
महाराष्ट्र में मैंग्रोव के आवरण में सबसे अधिक वृद्धि हुई, जो 13.01 वर्ग किलोमीटर दर्ज की गई। इसी तरह आंध्र प्रदेश में मौजूद मैन्ग्रोव के आवरण में 12.39 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ है।
केरल की पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) प्रकृति श्रीवास्तव का कहना है, रिपोर्ट में अभी भी राज्य विशेषज्ञ समिति (एसईसी) की रिपोर्ट या लाफार्ज आदेश द्वारा उठाए गए मुद्दों को संबोधित नहीं किया है, जैसा कि टीएन गोदावर्मन फैसले में निर्देश दिया गया था।
उन्होंने इसे सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन बताया है। श्रीवास्तव ने कहा, "इसका मतलब है कि सरकार उन वन क्षेत्रों को बदलने का प्रयास कर रही है, जिनकी पहचान एसईसी रिपोर्ट और लाफार्ज आदेश के अनुसार की जानी चाहिए थी।"