वन विनाश में दूसरे स्थान पर भारत, पांच वर्षों में खो दिए 668,400 हेक्टेयर में फैले जंगल

यूके स्थित फर्म यूटिलिटी बिडर के मुताबिक वन विनाश के मामले में भारत, ब्राजील के बाद दूसरे स्थान पर है, जहां पिछले पांच वर्षों में 668,400 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए हैं
वन विनाश में दूसरे स्थान पर भारत, पांच वर्षों में खो दिए 668,400 हेक्टेयर में फैले जंगल
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यूटिलिटी बिडर द्वारा जारी नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने पिछले 30 वर्षों के दौरान जंगलों के होते सफाए के मामले में सबसे ज्यादा वृद्धि देखी है। इसमें 2015 से  2020 के बीच उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। आंकड़ों की मानें तो इन पांच वर्षों के दौरान भारत में 668,400 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले वन क्षेत्र को काट दिया गया है।

देखा जाए तो यह आंकड़ा ब्राजील के बाद सबसे ज्यादा है। गौरतलब है कि इस दौरान ब्राजील में 16,95,700 हेक्टेयर में फैले जंगल साफ कर दिए गए हैं। यह रिपोर्ट यूनाइटेड किंगडम फर्म यूटिलिटी बिडर द्वारा जारी की गई है।

मार्च 2023 में जारी इस रिपोर्ट में डेटा एग्रीगेटर साइट अवर वर्ल्ड इन डेटा द्वारा 1990 से 2000 और 2015 से 2020 के लिए जारी आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। इन आंकड़ों में पिछले 30 वर्षों के दौरान 98 देशों में काटे गए जंगलों का ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार जहां भारत ने 1990 से 2000 के बीच अपने 384,000 हेक्टेयर में फैले जंगलों को खो दिया था। वहीं 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 668,400 हेक्टेयर हो गया है। मतलब की इन दो समयावधियों के दौरान भारत में वन विनाश में 284,400 हेक्टेयर की वृद्धि देखी है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है। देखा जाए तो इसके लिए कहीं न कहीं देश में बढ़ती आबादी जिम्मेवार है जिसकी लगातार बढ़ती जरूरतों के लिए तेजी से जंगल काटे जा रहे हैं।

वहीं 13 जनवरी 2022 को प्रकाशित “इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021” (आईएसएफआर 2021) में जारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2019 से 2021 के बीच वन आवरण में 1.6 लाख हेक्टेयर (0.2 प्रतिशत) की मामूली वृद्धि दिखाई गई है। लेकिन यहां कुछ तथ्य ध्यान देने वाले हैं। पहला, ज्यादातर वन रिकॉर्डेड फॉरेस्ट (राज्य सरकारों के वन विभाग के अधीन वन भूमि) के बाहर उग रहे हैं।

इस बारे में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा किए विश्लेषण के मुताबिक भारत से लगभग उत्तर प्रदेश के आकार के बराबर करीब 2.59 करोड़ हेक्टेयर में फैले जंगल लापता हैं। विश्लेषण के मुताबिक इतनी बड़ी अनियमितता का आईएसएफआर 2021 में कोई स्पष्टीकरण नहीं है, केवल सरसरी तौर पर कहा गया है कि यह रिकॉर्डेड फॉरेस्ट बिना वन आवरण का है। देखा जाए तो अगर यह लापता वन क्षेत्र इतना विशाल न होता तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता था। लेकिन करीब 2.6 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र को नजरअंदाज कर देना संभव नहीं है।

कौन है इस विनाश के लिए जिम्मेवार

इसके बाद अफ्रीकी देश जाम्बिया है। जहां इन दोनों अवधियों के बीच वन विनाश में 153,460 हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की है। गौरतलब है कि 1990 से 2000 के बीच जहां जाम्बिया में 36,250 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए थे। वहीं 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा बढ़कर 189,710 हेक्टेयर पर पहुंच गया था।

वहीं यदि 2015 से 2020 के आंकड़ों पर गौर करें तो वन विनाश के मामले में ब्राजील अव्वल है, जहां इस दौरान 1,695,700 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए हैं। रिपोर्ट की मानें तो इसके लिए कहीं न कहीं जलवायु में होती वृद्धि जिम्मेवार है। हालांकि यदि 2015 से 2020 के आंकड़ों से तुलना करें तो इस वहां इस दौरान वन विनाश में भारी कमी आई है। पता चला है कि 1990 से 2000 के बीच ब्राजील में 42,54,800 हेक्टेयर में वन क्षेत्र नष्ट कर दिए गए हैं।

इसी तरह इंडोनेशिया में ताड़ की बढ़ती खेती ने 650,000 हेक्टेयर में फैले जंगलों को नष्ट कर दिया है, इस तरह यह 2015 से 2020 के बीच वन विनाश के मामले में भारत के ठीक पीछे है। इंडोनेशिया को दुनिया के सबसे बड़े ताड़ तेल उत्पादक देशों में से एक माना जाता है। भले ही ताड़ के तेल के इतने सारे उपयोग हैं, जिनके बारे में आप जानते भी न हों, लेकिन एक बात जो व्यापक रूप से सामने आई है वो यह है वनों विनाश के मामले में जंगलों पर ताड़ के तेल उत्पादन का व्यापक प्रभाव पड़ा है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वैश्विक स्तर पर पशुपालन व्यवसाय ने जंगलों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है, जिसकी वजह से हर साल 21,05,753 हेक्टेयर में फैले जंगल काट दिए गए हैं। इसके बाद तेल के लिए 950,609 हेक्टेयर वनों का विनाश किया गया है।

देखा जाए तो भले ही सोयाबीन से हमें बहुत सारे पोषक तत्व मिलते है और यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। लेकिन इसकी खेती के लिए कई हेक्टेयर में फैले चरागाह और जंगल नष्ट कर दिए गए हैं। वहीं पशुपालन के बाद मांस और तिलहन की खेती वनों की बढ़ती कटाई के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेवार हैं। इनकी वजह से वैश्विक स्तर पर करीब 678,744 हेक्टेयर में फैले जंगल हर वर्ष काटे जा रहे हैं। 

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