क्या आप जानते हैं कि पिछले तीन दशकों में करीब 42 करोड़ हेक्टेयर वन भूमि का अन्य उपयोग के लिए डायवर्जन किया गया है। मतलब कि जिन क्षेत्रों पर कभी जंगल मौजूद थे, उनका उपयोग अब कृषि, खनन, शहरीकरण जैसे दूसरे कामों के लिए किया जा रहा है। यह खुलासा संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) ने अपनी नई रिपोर्ट “द स्टेट ऑफ वर्ल्डस फॉरेस्ट्स 2024” में किया है।
हालांकि यदि इन तीन दशकों में वन विनाश की दर को देखें को देखें तो उसमें गिरावट की प्रवत्ति देखी गई है। गौरतलब है कि जहां 1990 से 2000 के बीच सालाना 1.58 करोड़ हेक्टेयर प्रतिवर्ष की दर से जंगलों को काटा जा रहा था, वहीं विनाश की यह दर 2015 से 2020 के बीच घटकर सालाना 1.02 करोड़ हेक्टयर रह गई है।
इस गिरावट के बावजूद अभी भी बड़े पैमाने पर जंगलों को काटा जा रहा है। 2015 से 2020 के आंकड़ों पर गौर करें तो जहां अफ्रीका में सालाना 44.1 लाख हेक्टेयर में फैले जंगलों को साफ किया गया। वहीं दक्षिण अमेरिका में यह आंकड़ा 29.5 लाख जबकि एशिया में यह आंकड़ा 22.4 लाख हेक्टेयर प्रतिवर्ष दर्ज किया गया। 2020 में किए रिमोट सेंसिंग सर्वे ने भी पुष्टि की है कि वैश्विक स्तर पर वन विनाश की दर में गिरावट की प्रवत्ति जारी है।
देखा जाए तो समय के साथ वन क्षेत्र में बदलाव दो मुख्य कारणों से होता है, पहला वनों के किए जा रहे विनाश और दूसरा उन क्षेत्रों में वनों का विस्तार है, जहां पहले वन क्षेत्र की जगह दूसरी गतिविधियां की जाती थी।
वैश्विक स्तर पर देखें तो 2010 से 2020 के बीच सालाना वन क्षेत्र में 47 लाख हेक्टेयर की दर से शुद्ध गिरावट आई है। मतलब की यह जंगल अपने बढ़ने की दर से कहीं ज्यादा तेजी से सिकुड़ रहे हैं। हालांकि वन क्षेत्र में आती गिरावट की दर पहले जितनी नहीं है।
आंकड़ों के मुताबिक जहां 1990 से 2000 के बीच वन क्षेत्र को सालाना 78 लाख हेक्टेयर की दर से नुकसान हो रहा था, वो 2000 से 2010 के बीच घटकर 52 लाख हेक्टेयर प्रति वर्ष रह गया।
भारत सहित कई देशों में धीरे-धीरे सुधर रही है स्थिति
2020 के आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के करीब 31 फीसदी भूभाग यानी करीब 410 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र पर जंगल मौजूद हैं। पिछले दशक के आंकड़ों पर नजर डाले तो दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने वन विनाश को रोकने में महत्वपूर्ण सफलता हासिल की है। गौरतलब है कि इन देशों में भारत भी शामिल है।
रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि जहां 2010 से 2020 के बीच चीन के वन क्षेत्र में सालाना 19,37,000 हेक्टेयर की दर से इजाफा हुआ है। वहीं ऑस्ट्रेलिया इस मामले में दूसरे स्थान पर हैं जहां इस दौरान वन क्षेत्र में प्रति वर्ष 446,000 हेक्टेयर की दर से बढ़ोतरी हुई है। वहीं 266,000 हेक्टेयर प्रति वर्ष के साथ भारत तीसरे और 149,000 हेक्टेयर प्रति वर्ष के साथ चिली चौथे स्थान पर है। हैरानी की बात है कि सालाना 108,000 हेक्टेयर के शुद्ध इजाफे के साथ अमेरिका इन देशों में सातवें स्थान पर है।
इंडोनेशिया से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वहां 2020-2021 की तुलना में 2021-2022 के दौरान वनों के हो रहे विनाश में 8.4 फीसदी की उल्लेखनीय कमी आई है। 1990 में पर्यावरण और वानिकी मंत्रालय द्वारा इस पर नजर रखे जाने के बाद से यह इंडोनेशिया में दर्ज की गई वन विनाश की सबसे कम दर है।
ऐसा ही कुछ ब्राजील के अमेजन क्षेत्र में भी देखने को मिला है, जहां 2022 की तुलना में वन विनाश में 50 फीसदी की गिरावट आई है। बता दें कि अमेजन देश के कुल क्षेत्रफल का करीब 60 फीसदी हिस्सा है।
वैश्विक स्तर पर देखें तो जंगलों को केवल इंसानों द्वारा काटे जाने का ही खतरा नहीं है। जैसे-जैसे जलवायु में आते बदलाव दुनिया भर में हावी होते जा रहे हैं, उनका प्रभाव जंगलों पर भी स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। बढ़ते तापमान की वजह से जहां जंगलों में आग लगने का खतरे बढ़ रहा है। साथ ही बदलती जलवायु के साथ जंगल कीटों जैसे तनावों के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील होते जा रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक जंगल की आग पहले से कहीं ज्यादा तीव्र और गंभीर रूप लेती जा रही है। साथ ही इस तरह की घटनाओं पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। यहां तक की उन क्षेत्रों में जहां दावाग्नि का खतरा पहले न के बराबर था, वहां भी यह खतरा अब पैर पसारने लगा है। यदि 2023 के आंकड़ों पर नजर डालें तो इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर जंगलों में लगी आग की वजह से 6,687 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन हुआ था।
उत्तरी वन क्षेत्रों के जंगलों में लगने वाली आग जहां इस उत्सर्जन में 10 फीसदी का योगदान देती थी। वहीं 2021 में यह उत्सर्जन नए स्तर पर पहुंच गया। इस दौरान देखें तो वैश्विक स्तर पर जंगलों में लगी आग से जितना उत्सर्जन हुआ था, उसमें उत्तर के जंगलों की हिस्सेदारी बढ़कर एक चौथाई पर पहुंच गई। ऐसा मुख्य रूप से लम्बे समय तक चले सूखे और आग लगने की गंभीर घटनाओं के कारण हुआ था।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहे हैं खतरे, नए क्षेत्रों को भी बना रहे निशाना
जलवायु में आते बदलावों की वजह से जंगल कीटों, बीमारियों और आक्रामक प्रजातियों के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं, जो पेड़ों के लिए बड़ा खतरा हैं। पाइन वुड नेमाटोड ने पहले ही कुछ एशियाई देशों में देशी पाइन के जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। आशंका है कि 2027 तक, उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों में कीटों और बीमारियों से जंगलों को गंभीर नुकसान हो सकता है।
देखा जाए तो बढ़ती आबादी और इंसानी महत्वाकांक्षा के चलते वैश्विक स्तर पर लकड़ी उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर बना हुआ है। हालांकि कोरोना महामारी के दौरान इसमें मामूली गिरावट जरूर आई थी, लेकिन इसके बाद, यह उत्पादन वापस सालाना 400 करोड़ क्यूबिक मीटर पर आ गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक लकड़ी के अलावा दूसरे उत्पादों के लिए भी इंसान काफी हद इन जंगलों पर निर्भर है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर के 600 करोड़ लोग लकड़ी को छोड़ पेड़ों से मिलने वाले अन्य दूसरे उत्पादों पर निर्भर हैं। इनमें 277 करोड़ लोग ग्लोबल साउथ में रह रहे हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी की कमजोर तबके के करीब 70 फीसदी लोग अपने भोजन, दवा, ऊर्जा और आय के लिए जंगली प्रजातियों पर निर्भर हैं। अनुमान है कि 2020 से 2050 के बीच राउंडवुड की वैश्विक मांग 49 फीसदी तक बढ़ सकती है।
यदि भारत से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो लकड़ी को छोड़ पेड़ों से मिलने वाले अन्य उत्पादों पर करीब 27.5 करोड़ लोगों का जीवन निर्भर है। इन उत्पादों से स्थानीय समुदायों और मूल निवासियों को 40 फीसदी तक आय प्राप्त होती है।
ऐसे में रिपोर्ट में कहा गया है कि सतत विकास की दिशा में प्रगति के लिए वन क्षेत्र में नवाचार आवश्यक है। इनमें उपग्रहों, ड्रोन, रडार और लिडार जैसी उन्नत तकनीकों की मदद से जंगलों की निगरानी और सामने आने वाली चुनौतियां से निपटने के लिए आंकड़े एकत्र करना और उनके विश्लेषण के लिए कृत्रिम बुद्धिमता जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करना शामिल है।
इसी तरह निर्माण क्षेत्र में लकड़ी की जगह दूसरे बेहतर विकल्पों का उपयोग करना शामिल है। इसी तरह स्थानीय समाधानों और नीतियों के विकास में विकास में महिलाओं, युवाओं और स्थानीय समुदायों की हिस्सेदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसी तरह नवाचार को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय परिस्थितियों, दृष्टिकोणों, ज्ञान, आवश्यकताओं और अधिकारों पर विचार करना जरूरी है।
रिपोर्ट में वन क्षेत्र में नए विचारों को बढ़ावा देने के लिए पांच तरीके सुझाए गए हैं, इनमें जागरूकता बढ़ाना, कौशल और ज्ञान में सुधार करना, साझेदारी को बढ़ावा देना और वित्तपोषण की राह आसान बनाने के साथ ऐसे नियम और नीतियां बनाना जो नए विचारों को प्रोत्साहित करें।