

धराली त्रासदी मामले में पर्यावरण मंत्रालय ने एनजीटी को रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें उत्तरकाशी वन प्रभाग में 2.36 हेक्टेयर वन भूमि के डायवर्जन की मंजूरी का जिक्र है।
79 पेड़ों की कटाई की अनुमति दी गई थी, लेकिन स्टेज-2 मंजूरी अभी बाकी है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का मानना है दशकों से जारी देवदार के पेड़ों की अनियंत्रित कटाई ने इस आपदा को कहीं अधिक गंभीर बना दिया।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर एक रिपोर्ट में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बताया है कि उत्तरकाशी वन प्रभाग की गंगोत्री रेंज में गैर-वन कार्यों के लिए कुल 2.36 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्ट करने के तीन प्रस्तावों को सैद्धांतिक (चरण- 1) मंजूरी दी गई थी। यह मंजूरी वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (अब वन (संरक्षण एवं संवर्द्धन) अधिनियम, 1980) के तहत दी गई थी।
धराली गांव इसी वन रेंज के भीतर आता है। इन तीनों प्रस्तावों में कुल 79 पेड़ों को काटने की अनुमति दी गई, जिनमें देवदार के महज 15 पेड़ थे।
मंत्रालय ने बताया कि नियमों के मुताबिक, कटे हुए पेड़ों की भरपाई के लिए परियोजना से जुड़ी एजेंसी ने 2.04 हेक्टेयर जमीन पेड़ लगाने के लिए दी है, जहां 2,820 स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाए जाने हैं।
हालांकि मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इन तीनों परियोजनाओं को स्टेज-2 (अंतिम) मंजूरी अभी तक नहीं मिली है, क्योंकि स्टेज-1 की शर्तों का पालन किया गया है या नहीं, इस बारे में रिपोर्ट अब तक जमा नहीं की गई है।
ढलानों और नदी किनारे पेड़ों को काटने पर प्रतिबन्ध
इसके अलावा पर्यावरण मंत्रालय ने उत्तरकाशी वन प्रभाग की कार्य योजना (2016-17 से 2025-26) को दिसंबर 2017 में मंजूरी दी थी। इसके साथ ही कई सख्त शर्तें भी लगाई गई थीं, जैसे: 30 डिग्री से अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में पेड़ नहीं काटे जाएंगे।
इसके साथ ही नदियों और झरनों के किनारे, कटाव या भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्रों और जिन क्षेत्रों में जंगलों का घनत्व 0.3 से कम है, वहां पेड़ों को नहीं काटा जाएगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जितने पेड़ काटे जाएं, उतनी ही तेजी से जंगल दोबारा उगें। कटाई से जो खाली जगह बनती है, उसे दोबारा पेड़ लगाकर पुनर्जीवित करना होगा। साथ ही जहां जंगल का दोबारा उगना संभव नहीं है, वहां पेड़ों को नहीं काटा जाएगा।
धराली आपदा: क्या कटते पेड़ों ने बढ़ाई तबाही?
गौरतलब है कि यह मामला हाल में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने की भयावह घटना से जुड़ा है।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस में 10 अगस्त 2025 को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों और स्थानीय लोगों का मानना है दशकों से जारी देवदार के पेड़ों की अनियंत्रित कटाई ने इस आपदा को कहीं अधिक गंभीर बना दिया।
रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का यह भी कहना था कि यदि धराली में पुराने घने देवदार के जंगल आज भी मौजूद होते, तो नुकसान काफी कम होता, या शायद यह त्रासदी टल भी सकती थी। इसी रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने 20 अगस्त 2025 को पर्यावरण मंत्रालय से इस मामले पर विस्तृत जवाब मांगा था।