
मुझे उस पल एक बम फटने की सी आवाज सुनाई दी और पहाड़ी से धुआं जैसा उठता दिखा। कुछ ही देर में मेरे दोस्त का फोन आया। मैंने पूछा कि क्या बाढ़ आई? उसने कहा, “हां! बाढ़ आई और धराली में सब खत्म...” सेब का कारोबार करने वाले 33 साल के सौरभ पंवार यह बताते अपने भाई गौरव को याद कर दुखी हो जाते हैं, जो 5 अगस्त 2025 की दोपहर धराली बाजार में था। वह कभी नहीं लौटा। सौरभ ने बताया, “हमने सोचा कि कम से कम उसकी बॉडी ले आएंगे, लेकिन वह भी हमें नहीं मिल पाई।”
हिमालयी राज्य उत्तराखंड के जिले उत्तरकाशी के धराली में खीरगंगा नदी की बाढ़ के बाद हुई तबाही में केवल एक व्यक्ति का शव मिल पाया। गौरव की तरह इस गांव के कम से कम 7 और लोग लापता हैं। इन सभी के परिवार वालों को अब कोई उम्मीद नहीं कि वे वापस आएंगे। आधिकारिक आंकड़े के हिसाब से 5 अगस्त की इस घटना के बाद से 70 लोग लापता हैं। इनमें बिहार के 13 और उत्तर प्रदेश के 6 लोगों के अलावा 25 नेपाली नागरिक, एक जेसीबी ऑपरेटर शामिल हैं। सेना के 9 जवान भी इस सूची में है। हालांकि स्थानीय लोगों और चश्मदीदों का अनुमान है कि यह संख्या 100 से अधिक हो सकती है।
इस आपदा में धराली शहर में इतना मलबा आया कि घटना के अगले दिन ही राहतकर्मियों ने मलबे से किसी के जीवित वापस निकलने की संभावना से इनकार कर दिया था। मौके पर मौजूद नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) के एक अधिकारी सूर्यकांत मौर्या ने संवाददाता को बताया, “हम शव-खोजी कुत्तों (कैडावर डॉग्स) और ग्राउंड पैनीट्रेटिंग रडार (जीपीआर) की मदद ले रहे हैं और अब मृत शरीरों के ही मिलने की संभावना है। चालीस फीट से अधिक मलबे में किसी के जीवित मिलने की संभावना नहीं है।”
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में धराली चारधामों में से एक गंगोत्री से महज 21 किलोमीटर दूर बसा एक गांव है। भागीरथी नदी के किनारे करीब 6,700 हजार फुट की ऊंचाई पर बसे इस गांव की आबादी 1,000 से कुछ ही अधिक है, लेकिन गंगोत्री से इसकी नजदीकी और ट्रैकिंग और पर्यटन के कारण यहां का बाजार पिछले 2 दशकों में कई गुना फैल गया। सेना की मौजूदगी वाला हिल स्टेशन हर्षिल यहां से केवल 4 किलोमीटर की दूरी पर है। 5अगस्त की घटना को पहले दिन क्लाउडबर्स्ट (बादल फटना) कहा गया लेकिन अब वैज्ञानिकों का कहना है कि यह घटना लंबे समय तक उच्च हिमालयी क्षेत्र में लगातार हुई बारिश से मिट्टी में पानी की अति संतृप्तता (सुपरसैचुरेशन) की वजह से हुई। इस कारण वहां मौजूद मलबा (मौरेन) ढलान के साथ खिसकने लगा।
इस घटना को कैमरे में कैद करने वाले प्रत्यक्षदर्शियों ने संवाददाता को बताया कि दोपहर 1.35 बजे से शाम 6.03 बजे के बीच करीब साढ़े चार घंटे के दौरान धराली में खीरगंगा से कई बार बाढ़ आई जिसमें से कम से कम छह बार वह काफी बड़े सैलाब के रूप में थी।
भूविज्ञानी एसपी सती का कहना है, “खीरगंगा में बार-बार इस बाढ़ का कारण यह था कि इस क्षेत्र में मौजूद विभिन्न हिमनद (ग्लेशियर) शाखाओं के मोरैन में कमोबेश एक सी जल संतृप्तता बन गई थी। एक बेहद खड़ी संकरी घाटी में स्थित होने के कारण एक जगह पर ट्रिगर हुए भूस्खलन के बाद अन्य हिमनद शाखाओं में भी सूक्ष्म अंतराल में इसी प्रक्रिया की पुनरावृत्ति हुई, जिस कारण कई बार बाढ़ देखने को मिली।”
राज्य आपदा प्रबंधन फोर्स (एसडीआरएफ) और नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (एनआईएम) की टीम ने भी 4़,812 मीटर की ऊंचाई तक जाकर बाढ़ के कारण जानने के लिए ड्रोन के माध्यम से वीडियोग्राफी की।
एसडीआरएफ के आईजी अरुण जोशी ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में भूविज्ञानी सती के विश्लेषण से प्रथम दृष्टया सहमति जताई और कहा कि शुरुआती मुआयने में उनकी टीम को भी अब तक कोई झील वहां नहीं दिखी है।
आधिकारिक बयान में एसडीआरएफ ने कहा है, “विषम परिस्थितियों में की गई इस उच्च स्तरीय रैकी एवं निरीक्षण से आपदा की वास्तविक परिस्थितियों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया। टीम ने संकलित सभी फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी उच्चाधिकारियों एवं वैज्ञानिक संस्थानों को भेजे हैं, जो भविष्य में आपदा प्रबंधन एवं जोखिम न्यूनीकरण की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे।”
बाढ़ के साथ मलबे से धराली का पूरा बाजार साफ हो गया और भागीरथी नदी का प्रवाह अपने मूल स्थान से करीब तीस फुट दूर चला गया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इको सेंसटिव क्षेत्र में हाइवे निर्माण की व्यवहारिकता को परखने के लिए गठित मॉनिटरिंग कमेटी के सदस्य रह चुके भूविज्ञानी नवीन जुयाल कहते हैं, “इन दिनों हर कोई हिमनद झीलों के फटने की बात करता है। हमने अलकनन्दा नदी में पिछले 1,000 साल की बाढ़ की घटनाओं का अध्ययन किया है जिसमें पाया कि जितनी भी बाढ़ आईं वो उच्च हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन से बनी झीलों के टूटने से आईं।”
वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन प्रभावों के कारण उच्च हिमालयी क्षेत्र में भारी और लगातार बारिश हो रही है जो पहले नहीं हुआ करती थी। इसके पीछे वजह यह है कि अब बादल अधिक ऊंचाई पर संघनित हो रहे हैं जो पहले नहीं हुआ करता था।
जुयाल कहते हैं, “तीखी ऊर्ध्व घाटियों में मलबे को खिसकने या बहने के लिए बहुत पानी की जरूरत नहीं होती है। जरा सी बारिश भी बड़े और एक के बाद एक कई लैंडस्लाइड का कारण बन सकती हैं जो बड़े-बड़े पत्थर और मलबा नीचे लाकर काफी विनाश कर सकती हैं, जैसा कि धराली में देखा गया।”
असल में धराली में पहली बार आपदा नहीं आई। पिछले 12 सालों में कम से कम दो बार (वर्ष 2013 और 2018 में) यहां जलस्तर बढ़ने और गाद भरने से क्षति हुई भले ही किसी की जान न गई हो। वर्ष 2013 में राज्य की सभी नदियों में बाढ़ आई और धराली को क्षति से बचाने के लिए तब एक सुरक्षा दीवार बनाने का काम हुआ।
स्थानीय निवासी खुशहाल सिंह कहते हैं, “हमने प्रशासन को यहां नदी के समीप निर्माण रोकने और जमा हुए मलबे को हटाकर बन्द नालों को साफ कराने की गुहार लगाई पर कुछ नहीं किया गया।” महत्वपूर्ण है कि वर्ष 2012 में गढ़वाल के उत्तरकाशी से गोमुख तक के 100 किलोमीटर के क्षेत्र को भागीरथी इको सेंसटिव जोन घोषित किया गया ताकि निर्माण में पूरी सावधानी बरती जाए।
जुयाल कहते हैं, “ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में नदी के प्रवाह से बचने के लिए दीवार खड़ी करना एक अच्छा विचार नहीं है क्योंकि इससे लोगों को सुरक्षा का एक मिथ्या एहसास मिलता है और वह नदी के अधिक पास जाकर निर्माण करने लगते हैं जबकि किसी भी तरह का निर्माण नदी तल से दूर होना चाहिए।”
उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग में कई इलाकों को कई विशेषज्ञों और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) की रिपोर्ट में भूधंसाव वाले क्षेत्र बताए गए। भूवैज्ञानिक वाई पी सुंदरियाल कहते हैं, “उत्तरकाशी से 30 किलोमीटर दूर भटवाड़ी क्षेत्र को हमने अपनी रिपोर्ट में भूधंसाव वाला क्षेत्र बताया। इसी तरह यात्रा मार्ग के अन्य हिस्से भी लगातार धंस रहे हैं लेकिन सरकार ने चेतावनियों पर कोई ध्यान नहीं दिया।”
धराली के पास झाला और भैरोंघाटी क्षेत्र में सड़क निर्माण के लिए लगभग 7,000 पेड़ों को काटने के लिए चिन्हित किया गया, जिसका विरोध विशेषज्ञों ने किया। अभी यह काम रुका हुआ है। पर्यावरणविद् हेमंत ध्यानी के मुताबिक, “हिमालय को राजस्व उगाही की दृष्टि से देखना बन्द किया जाए, क्योंकि जैव विविधता से समृद्ध हिमालय पहले ही देश को अपार इकोसिस्टम सेवाएं दे रहा है। राजस्व उगाही के लिए आप इस अपार नैसर्गिक संपदा भंडार के विनाश को न्यायोचित नहीं ठहरा सकते।”