ग्रीनहाउस गैस से बचने का उपाय है वनस्पति दूध

विश्व वनस्पति दूध दिवस: वनस्पति आधारित दूध न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है बल्कि यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी टिकाऊ विकल्प है।
अध्ययन के मुताबिक, वनस्पति आधारित दूध का बाजार साल 2030 तक लगभग 28 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।
अध्ययन के मुताबिक, वनस्पति आधारित दूध का बाजार साल 2030 तक लगभग 28 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा। फोटो साभार: आईस्टॉक
Published on

आज की दुनिया में जब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट बड़ी चुनौतियां बने हुए हैं, ऐसे में हमारी छोटी-छोटी जीवनशैली की आदतें भी बड़ा अंतर ला सकती हैं। उन्हीं में से एक है- हम कौन-सा दूध पीते हैं।

आमतौर पर लोग गाय या भैंस का दूध पीते हैं, लेकिन अब इसके विकल्प के रूप में वनस्पति आधारित दूध (प्लांट मिल्क) भी लोकप्रिय हो रहा है। यह न केवल सेहत के लिए अच्छा है बल्कि पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचाता है।

हर साल 22 अगस्त को विश्व वनस्पति दूध दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य है लोगों को यह बताना कि पौधों से बनने वाला दूध भी उतना ही उपयोगी है, जितना डेयरी दूध। साथ ही, यह डेयरी उत्पादन से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, भूमि उपयोग और पशु क्रूरता को कम करने में मदद करता है। यह दिन लोगों को यह सोचने का मौका देता है कि वे रोजाना जो दूध पीते हैं, उसका पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है और क्या उसके विकल्प उपलब्ध हैं।

यह भी पढ़ें
कृषि व खाद्य अनुसंधान में भागीदारी नहीं निभा पा रहे हैं गरीब देशों के वैज्ञानिक: रिपोर्ट
अध्ययन के मुताबिक, वनस्पति आधारित दूध का बाजार साल 2030 तक लगभग 28 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

इस दिन की शुरुआत साल 2017 में हुई थी। इसे सबसे पहले प्लांट बेस्ड न्यूज के सह-संस्थापक रॉबी लॉकी ने शुरू किया। बाद में इसे पीबीएन और प्रोवेज संगठन का सहयोग मिला और यह एक बड़ा अभियान बन गया। इसका मकसद था लोगों को डेयरी से हटाकर वनस्पति आधारित दूध अपनाने के लिए प्रेरित करना।

🥛 कौन-कौन से वनस्पति दूध उपलब्ध हैं: आज बाजार में कई प्रकार के वनस्पति आधारित दूध उपलब्ध हैं। इनमें से कुछ सबसे लोकप्रिय हैं:

  • सोया दूध – प्रोटीन से भरपूर और पर्यावरण के लिए सबसे टिकाऊ विकल्प।

  • बादाम का दूध – विटामिन और मिनरल्स से युक्त, स्वाद में हल्का।

  • जई (ओट्स) का दूध – क्रीमी टेक्सचर वाला और टिकाऊ विकल्प।

  • काजू का दूध – गाढ़ा और पोषक तत्वों से भरपूर।

  • चावल का दूध – हल्का और पचने में आसान।

ये सभी दूध लैक्टोज मुक्त होते हैं, इसलिए जिन लोगों को डेयरी दूध पचाने में दिक्कत होती है, उनके लिए यह बेहतरीन विकल्प हैं।

यह भी पढ़ें
छह हफ्तों में बदल सकती हैं आपकी भोजन को बर्बाद करने की आदत, जानें कैसे?
अध्ययन के मुताबिक, वनस्पति आधारित दूध का बाजार साल 2030 तक लगभग 28 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

💚 स्वास्थ्य को होने वाले फायदे

वनस्पति दूध न केवल पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि सेहत के लिए भी कई फायदे देता है। लैक्टोज मुक्त – जिन्हें दूध से एलर्जी या लैक्टोज की समस्या है, उनके लिए सुरक्षित। कोलेस्ट्रॉल रहित – हृदय रोग का खतरा कम करता है।

पाचन में आसान – पेट पर ज्यादा बोझ नहीं डालता। पोषक तत्वों से भरपूर – विटामिन, मिनरल और प्रोटीन का अच्छा स्रोत। हालांकि यह ध्यान रखना जरूरी है कि बिना प्रिजर्वेटिव और बिना अतिरिक्त चीनी वाला दूध ही सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है।

यह भी पढ़ें
चेतावनी:जलवायु में बदलाव के चलते स्वास्थ्य से लेकर खाद्य सुरक्षा पर मंडरा सकता है संकट
अध्ययन के मुताबिक, वनस्पति आधारित दूध का बाजार साल 2030 तक लगभग 28 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

🌱 पर्यावरणीय असर

डेयरी दूध की तुलना में वनस्पति आधारित दूध का पर्यावरणीय असर बहुत कम है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: पौधों से बनने वाला दूध डेयरी की तुलना में बहुत कम कार्बन उत्सर्जित करता है। भूमि और पानी का उपयोग: पशुपालन के लिए बड़ी जमीन और पानी चाहिए, जबकि प्लांट मिल्क के लिए यह काफी कम होता है।

क्रूरता-मुक्त उत्पादन: इसमें पशुओं का शोषण या दुर्व्यवहार शामिल नहीं होता। खासकर सोया और ओट्स (जई) का दूध पर्यावरण के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।

🚚 क्या परिवहन सबसे बड़ा कारण है?

अक्सर लोग सोचते हैं कि भोजन के यातायात से कार्बन फुटप्रिंट बढ़ता है। लेकिन नेचर जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, भोजन से होने वाले कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में परिवहन का योगदान सिर्फ पांच फीसदी तक ही होता है। असल में ज्यादा असर कृषि उत्पादन और प्रसंस्करण से आता है।

🧀 पनीर का कार्बन फुटप्रिंट ज्यादा क्यों?

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पनीर का कार्बन फुटप्रिंट दूध से ज्यादा होता है। इसका कारण यह है कि पनीर असल में दूध का ज्यादा गाढ़ा और सघन रूप है। इसमें पानी की मात्रा कम होती है और प्रोटीन व ऊर्जा की मात्रा ज्यादा होती है। इस वजह से, प्रति किलो पनीर बनाने में ज्यादा दूध लगता है और उसका पर्यावरण पर असर भी ज्यादा होता है।

यह भी पढ़ें
विश्व वनस्पति दूध दिवस पर जानें, पौधों से मिलने वाले दूध के फायदे
अध्ययन के मुताबिक, वनस्पति आधारित दूध का बाजार साल 2030 तक लगभग 28 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

📈 बढ़ता हुआ प्लांट मिल्क बाजार

जर्नल ऑफ फंक्शनल फूड्स में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक आने वाले समय में वनस्पति आधारित दूध की मांग तेजी से बढ़ेगी। साल 2030 तक इसका बाजार लगभग 28 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। वहीं साल 2035 तक यह 52 बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इससे साफ है कि लोग अब डेयरी के बजाय पौधों से बने दूध की ओर बढ़ रहे हैं।

वनस्पति दूध आज केवल एक फैशन नहीं बल्कि जरूरत है। यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है, पशु क्रूरता से मुक्त है और सबसे अहम बात यह है कि यह पृथ्वी को बचाने में मदद करता है।

अगर हम धीरे-धीरे अपने आहार में डेयरी की जगह प्लांट-बेस्ड दूध को अपनाएं, तो हम न केवल खुद को स्वस्थ रख सकते हैं बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण छोड़ सकते हैं।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in