एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जिन देशों पर जलवायु का सबसे अधिक असर पड़ता है, जहां भूख की दर सबसे अधिक है, उनका कृषि व खाद्य अनुसंधान में भागीदारी काफी कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस असंतुलन को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई और निवेश में वृद्धि की जरूरत है।
कृषि खाद्य प्रणालियों पर अनुसंधान के लिए क्षेत्र की स्थिति को लेकर रिपोर्ट कहती है कि आठ में से केवल एक शोध पत्र 81 सबसे गरीब देशों के वैज्ञानिकों द्वारा लिखा गया है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ), अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) और अमेरिकी कृषि सहयोग संस्थान (आईआईसीए) के शोधकर्ताओं ने बताया कि कुछ देशों के पास 1,000 से भी कम अध्ययनों के साक्ष्य हैं।
बेहतर खाद्य सुरक्षा के लिए भविष्य के शोधों के मुद्दों को आकार देने के लिए तैयारी
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 से 2023 तक के 63 लाख वैज्ञानिक शीर्षकों, सार और मेटाडेटा का आकलन करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग किया गया। अध्ययन वर्तमान परिणामों का अवलोकन प्रदान करता है और दाताओं और सरकारों के साथ बेहतर खाद्य सुरक्षा के लिए भविष्य के शोध के मुद्दों को आकार देने के लिए तैयार है।
रिपोर्ट में कई सुझाव भी दिए गए हैं, जिनमें दुनिया के सबसे गरीब देशों में शोध के प्रयासों को समर्थन देने के लिए वित्त पोषण बढ़ाने की मांग शामिल है। साथ ही इसमें जलवायु परिवर्तन और भूख के प्रति सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों पर ध्यान देने को कहा गया है।
इसके अलावा वैज्ञानिकों ने कृषि अनुसंधान पद्धतियों में महिलाओं के नजरिए को शामिल करने, कृषि से संबंधित चुनौतियों से निपटने में सामंजस्य और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप करने तथा भागीदारी को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया है।
खाद्य प्रणालियों के भीतर समावेशी और न्यायसंगत विकास
अध्ययनकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा, यह रिपोर्ट वैज्ञानिक अनुसंधान को जरूरी नीतियों के साथ जोड़ती है, जो कम और मध्यम आय वाले देशों में खाद्य प्रणालियों के भीतर समावेशी और न्यायसंगत विकास को आगे बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तावित सुझावों और हस्तक्षेपों पर आधारित है।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पिछले दशक में कृषि और खाद्य प्रणालियों में शोध प्रकाशनों में 60 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है, जिसमें अकेले कृषि से संबंधित 35,000 से अधिक जर्नल और तकनीकी रिपोर्ट शामिल हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों का कहना है कि चीन, अमेरिका, ब्राजील और भारत जैसे देशों द्वारा कृषि अनुसंधान प्रकाशनों में प्रभुत्व, असमान रूप से कम अनुसंधान वाले क्षेत्रों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर देने की बात कही गई है।
नीति निर्माण के लिए महत्वपूर्ण जानकारी
रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिक प्रकाशनों में दुनिया के सबसे गरीब देशों के वैज्ञानिकों का कम भागीदारी दुनिया भर में बातचीत को रोकता है, जिससे जरूरी नीति निर्माण के लिए महत्वपूर्ण जानकारी को लागू करने में बाधा उत्पन्न होती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, फसल संबंधी शोध में विसंगतियां, जहां अनाज को फलों और सब्जियों की तुलना में 40 फीसदी अधिक शोध पर ध्यान दिया जाता है, हस्तक्षेपों के माध्यम से अहम परिणाम हासिल करना जरुरी हैं। विशेष रूप से लैंगिक समानता, पोषण संबंधी परिणामों और टिकाऊ कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना इसमें शामिल है।
आगे के सुझावों में खाद्य सुरक्षा और कृषि स्थिरता को बढ़ाने के लिए फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने वाली पहलों में अधिक निवेश की मांग शामिल है। रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के बारे में किसानों की धारणाओं और कार्रवाई योग्य सलाहकार सेवाओं के बीच की खाई को पाटने के उद्देश्य से उच्च गुणवत्ता वाले शोध की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला गया है।