नियमित रूप से भोजन तैयार करने में अक्सर बहुत कम सोच विचार किया जाता है, इसका मतलब है कि जिन सामग्रियों को खराब होने से पहले इस्तेमाल किया जाना चाहिए, उन्हें अक्सर खराब होने के लिए छोड़ दिया जाता है।
हाल ही में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित शोध में शोधकर्ताओं ने पाया कि इस तरह की आदत वाले व्यवहार पर काबू पाना भोजन की बर्बादी को कम करने में मदद कर सकता है।
हर साल दुनिया भर में 1.3 अरब टन भोजन बर्बाद होता है। यह लोगों के उपभोग के लिए उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों के एक तिहाई के बराबर है।
यूके में घरों ने 2021 और 2022 के बीच 64 लाख टन भोजन बर्बाद किया। उस भोजन को उगाने और काटने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली जीवाश्म ऊर्जा के साथ-साथ खेतों या लैंडफिल में सड़ने पर निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों को ध्यान में रखते हुए, यह बर्बादी 1.8 करोड़ टन सीओ 2 उत्सर्जन के बराबर है।
खाद्य पदार्थों की बर्बादी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है, लेकिन केवल फेंके जाने वाले खाद्य पदार्थों की मात्रा को कम करने से भुखमरी पर लगाम लग सकती है। इससे दुनिया को सालाना 120 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा की बचत हो सकती है और हर घर को सालाना लगभग 700 पाउंड की बचत हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने शुरुआती छह सप्ताह की अवधि के लिए यूके भर में 154 घरों से फलों और सब्जियों की बर्बादी को मापा। फल और सब्जियां सबसे ज्यादा बर्बाद होने वाले खाद्य पदार्थों में से हैं।
उन छह हफ्तों के दौरान, आधे प्रतिभागियों से यह बताने के लिए कहा गया कि उन्होंने कौन से ताजे फल और सब्जियों खरीदी और उनकी खरीदारी को पैकेजिंग पर लगे लेबल के अनुसार कब इस्तेमाल करना है, इस बात के शोधकर्ताओं द्वारा दिशा-निर्देशों दिए गए।
इनमें से हर घर में, लॉग को फ्रिज पर रोजाना याद दिलाने के लिए रखा गया था कि बर्बादी से बचने के लिए हर दिन क्या इस्तेमाल करना है। प्रतिभागियों को रोजाना मैसेज भी मिलते थे, जिसमें उन्हें अपने खाने के लॉग को चेक करने और नए खरीदे गए फलों और सब्जियों को जोड़ने की याद दिलाई जाती थी।
इस प्रयोग में शामिल परिवारों में से आधे ने हर हफ्ते के अंत में अपने खाने की बर्बादी को मापा, बिना उन्हें याद दिलाए कि उनके पास जो ताजा उपज है, उसका इस्तेमाल करें।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा कि उन्होंने उम्मीद जताई थी कि याद दिलाए जाने या रिमाइंडर पाने वाले आधे परिवार अपनी बर्बादी को ज्यादा प्रभावी ढंग से कम करेंगे, वास्तव में, दोनों समूहों के बीच मात्र एक छोटा सा अंतर था। लेकिन हमने पाया कि केवल ताजा उपज की बर्बादी को मापने से सभी परिवार इस बारे में ज्यादा सोचने लगे कि वे क्या बर्बाद कर रहे हैं।
अध्ययन में भाग लेने से प्रतिभागियों को यह भी महसूस हुआ कि वे अपने द्वारा फेंके जाने वाले भोजन की मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं।
ऐसा लगता है कि लोगों से छह सप्ताह तक हर सप्ताह अपने भोजन की बर्बादी को मापने के लिए कहने से एक ऐसी सोच प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो भविष्य में लोगों के व्यवहार को बदल सकती है।
शोध में पाया गया कि सभी घरों में ताजा उपज की बर्बादी में औसतन 108 ग्राम प्रति सप्ताह की कमी आई। प्रयोग समाप्त होने के छह महीने बाद तक यह कमी बनी रही।
प्रयोग के दौरान साप्ताहिक रूप से भोजन के कचरे को मापने के अनुभव ने खाद्य अपशिष्ट के बारे में जागरूकता पैदा की, जिसका अर्थ था कि प्रतिभागी आधे साल बाद भी भोजन की कम बर्बादी कर रहे थे। यह दिलचस्प है कि व्यवहार में स्थायी बदलाव को प्रोत्साहित करने के लिए केवल थोड़े समय के प्रयास की आवश्यकता होती है।
शोध बताता है कि आदतों को बदलने के लिए विचार की आवश्यकता होती है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि लोगों को खाने की बर्बादी को कम करने के बारे में केवल थोड़े समय के लिए सोचना था, ताकि वे खाने की मात्रा को कम करने की स्थायी आदत बना सकें।
ज्यादातर लोगों की ज़िंदगी व्यस्त होती है और उनके पास हर दिन के लिए समय निकालने की मानसिक क्षमता नहीं होती। खाने की बर्बादी को कम करने की रणनीतियां, जिनमें केवल थोड़े समय के लिए मानसिक प्रयास की जरूरत होती है, सबसे ज्यादा प्रभावी होने की संभावना होती है।
घर में खाने की बर्बादी में थोड़ी सी कमी भी बहुत बड़ा बदलाव ला सकती है। शोध से पता चलता है कि लोगों के लिए हर हफ्ते कितनी मात्रा में फल और सब्जियां फेंकनी हैं, यह कम करना अपेक्षाकृत आसान है। यदि केवल 1,000 लोग भी ऐसा कर सकें, तो इससे सालाना 9.5 टन सिओ2 की बचत होगी।