
पिछले दो वर्षों से भारत में खाद्य महंगाई दर स्थिर बनी हुई है, जबकि दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर खाद्य कीमतों में स्थिरता या गिरावट का रुझान देखा गया। 31 जनवरी, 2025 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में इसे खराब मौसम और आपूर्ति शृंखला से जुड़ी समस्याओं से जोड़ा गया है।
भारत की कुल खुदरा महंगाई दर वित्त वर्ष 2024 में 5.4 फीसदी से घटकर वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल-दिसंबर) में 4.9 फीसदी हो गई। चूंकि भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है, ऐसे में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (सीएफपीआई) खुदरा खुदरा महंगाई दर में बड़ी भूमिका निभाता है।
महंगाई से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में खाद्य पदार्थों के महत्व को कम करने को लेकर बहस जारी है।
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, घरेलू बाजार में खाद्य कीमतों में आया यह उछाल मुख्य रूप से सब्जियों और दालों जैसे खाद्य पदार्थों के कारण था।
रुझानों के मुताबिक दाल और सब्जियां उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का 8.42 फीसदी हिस्सा बनाती हैं, लेकिन वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल से दिसंबर) में कीमतों में 32.3 फीसदी की वृद्धि इन्हीं के कारण हुई थी। अगर हम इन्हें हटा दें, तो इस दौरान खाद्य कीमतों में 4.3 फीसदी की वृद्धि हुई, जो खाद्य कीमतों में हुई कुल वृद्धि से 4.1 फीसदी कम है।
इसी तरह यदि हम सब्जियों और दालों की कीमतों में हुई वृद्धि को हटा दें तो कीमतों में कुल वृद्धि 3.2 फीसदी रह जाएगी, जो महंगाई की वास्तविक दर से 1.7 फीसदी कम है।
सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि टमाटर, प्याज और आलू ऐसी सब्जियां हैं, जिनकी कीमतों में सबसे ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है। इनमें भी टमाटर और प्याज के दामों में हुई वृद्धि, खास तौर पर हाल के महीनों में महंगाई और खाद्य कीमतों के बढ़ने का प्रमुख कारण रही हैं।
रिपोर्ट में इस बात के भी संकेत दिए गए हैं कि मौसम की मार के कारण आपूर्ति श्रृंखला में आया व्यवधान भी खाद्य कीमतों के बढ़ने के लिए जिम्मेवार है। पिछले तीन वर्षों में उत्पादन और खपत के सामने आए रुझानों के विश्लेषण से पता चला है टमाटर और प्याज दोनों के उत्पादन की तुलना में घरेलू घरेलू खपत कम है।
"हॉर्टिकल्चर स्टेटिस्टिक्स एट अ ग्लांस 2021" रिपोर्ट से पता चला है कि 15 फीसदी उत्पादन का उपयोग होटलों और शादियों में किया जाता है। अगर हम इसे घरेलू खपत में भी जोड़ दें, तो भी उत्पादन अधिक है। यह दर्शाता है कि कीमतों में वृद्धि कम उत्पादन के कारण नहीं, बल्कि पैदावार के बाद हुई बर्बादी, मौसमी बदलाव और उत्पादन में क्षेत्रीय फैलाव के कारण होती है।
डाउन टू अर्थ के आंकड़ों का भी दिया गया है हवाला
2023-24 में फलों और सब्जियों को नुकसान मानसून से पहले हुई बेमौसम बारिश के कारण भी हुआ था। इसने प्रमुख बागवानी उत्पादक राज्यों में फसलों को नुकसान पहुंचाया था।
इतना ही नहीं चक्रवात, भारी बारिश, बाढ़, आंधी, ओलावृष्टि और सूखे जैसी अन्य चरम मौसमी घटनाओं ने भी सब्जियों की कीमतों को प्रभावित किया।
रिपोर्ट में कहा गया है, अच्छे उत्पादक क्षेत्रों में बुवाई के साथ कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव से पता चलता है कि चरम मौसमी घटनाएं ने बड़े पैमाने पर उत्पादन, और आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया है, जिससे खुदरा कीमतें प्रभावित हुई हैं।
महंगी पड़ रही मौसम की मार
आर्थिक सर्वेक्षण में डाउन टू अर्थ के आंकड़ों का हवाला देते हुए दिखाया है कि 2024 में चरम मौसमी घटनाओं के कारण क्षतिग्रस्त होने वाला कुल फसल क्षेत्र पिछले दो वर्षों की तुलना में अधिक था।
तुअर दाल के मामले में पैदावार की गिरावट ने भारत में खाद्य कीमतों को बढ़ावा दिया। पिछले पांच वर्षों की तुलना में 2022-23 के दौरान उत्पादन में 13.6 फीसदी और 2023-24 में 10.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जिसकी वजह से आपूर्ति प्रभावित हुई।
रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि भारत का तीन-चौथाई हिस्सा दालों और तिलहन की कम पैदावार से जूझ रहा है। इसके साथ ही टमाटर और प्याज के उत्पादन में लगातार आ रहे उतार-चढ़ाव के कारण कीमतों पर दबाव बढ़ रहा है।
इसके साथ ही सर्वेक्षण में जलवायु-प्रतिरोधी फसलें तैयार करने, पैदावार में सुधार करने और फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने पर "केंद्रित अनुसंधान" की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसी तरह धान के परती क्षेत्रों में दालों की खेती का विस्तार करने से भी मदद मिल सकती है।
रिपोर्ट में किसानों के लिए प्रशिक्षण को बढ़ावा देने का भी सुझाव दिया गया है। उन्हें खेती के सर्वोत्तम तरीकों, उच्च उपज और रोग-प्रतिरोधी बीजों का उपयोग करना सीखना चाहिए, और उन क्षेत्रों में खेती को बेहतर बनाने को ध्यान में रखते हुए प्रशिक्षण हासिल करना चाहिए, जहां प्रमुख रूप से दालें, टमाटर और प्याज उगाए जाते हैं।
रिपोर्ट में कीमतों, स्टॉक और भंडारण तथा प्रसंस्करण पर आंकड़े एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने के लिए बेहतर प्रणालियों की मांग की गई है, ताकि उनकी निगरानी को बेहतर किया जा सके। इसमें कहा गया है कि इन आंकड़ों से ऐसी क्षेत्रों की पहचान में मदद मिलेगी, जिसमें सुधार की आवश्यकता है। साथ ही यह नीतिगत निर्णयों को निर्देशित करने में भी मददगार होंगे।
रिपोर्ट में विभिन्न एजेंसियों से महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थों के मूल्य निगरानी सम्बन्धी आंकड़ों को जोड़ने का सुझाव दिया गया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि खेत से उपभोक्ता तक प्रत्येक स्तर पर कीमतों में किस प्रकार वृद्धि होती है।