
कोविड-19 के पहले यानी साल 2019 के मुकाबले साल 2023 में खाद्य सब्सिडी (फूड सब्सिडी) में दोगुनी वृद्धि हो चुकी है। जहां पहले देश की कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में साद्य सब्सिडी की हिस्सेदारी 0.5 प्रतिशत थी, जो बढ़कर 1 प्रतिशत हो गई है।
संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में कहा गया है कि आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक चूंकि कोविड-19 महामारी के कारण आपातकालीन सरकारी हस्तक्षेप के रूप में खाद्य सब्सिडी को बढ़ाया गया था, जिसे बाद में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत समाहित किया गया, इसलिए वित्त वर्ष 2019 और 2023 के बीच केंद्रीय कृषि सब्सिडी बिल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 0.5 प्रतिशत से बढ़कर 1 प्रतिशत हो गया।
कृषि सब्सिडी सरकार की सामाजिक योजनाओं के बड़े ढांचे में सबसे महत्वपूर्ण नीतिगत हस्तक्षेपों में से एक है। वित्त वर्ष 2022-23 में केंद्र सरकार ने उर्वरक सब्सिडी और खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों के तहत प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पर अपने बजट का 6.5 प्रतिशत खर्च किया।
सर्वेक्षण में राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (एनएसओ) 2022-23 के आंकडों के हवाले से कहा गया है कि वर्तमान में बहुत से परिवार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से सब्सिडी प्राप्त कर रहे हैं—चाहे वह मूल्य समर्थन के रूप में हो या उर्वरक पर सब्सिडी के रूप में।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत जनगणना 2011 की कुल आबादी के मुकाबले लगभग दो तिहाई को मुफ्त में अनाज उपलब्ध करा गया है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में 84 प्रतिशत परिवारों के पास राशन कार्ड था, जिसमें से 59 प्रतिशत परिवारों ने गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल), अंत्योदय अन्न योजना, या प्राथमिकता प्राप्त परिवार (पीएचएच) के तहत अपने कार्ड को सूचीबद्ध कराया था।
सब्सिडी की वजह से बढ़ा मासिक खर्च
विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से निःशुल्क दी जा रही वस्तुओं के अनुमानित मूल्यों को जोड़ने के बाद औसतन प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय में वृद्धि हुई है। वर्ष 2023-24 में ग्रामीण क्षेत्र में औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (एमपीसीई) 4,122 रुपए और शहरों में 6,996 रुपए आंका गया, लेकिन विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं के माध्यम से मिलने वाली वस्तुओं की कीमत जोड़ने के बाद ये आंकड़े ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 4,247 और शहरी क्षेत्रों के लिए 7,078 रुपए हो गए।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में मासिक खर्च में भी अंतर आया है। जहां पहले एमपीसीई 2011-12 में 84 प्रतिशत था, वह 2022-23 में घटकर 71 प्रतिशत रह गया और 2023-24 में और कम होकर 70 प्रतिशत हो गया। कहा गया है कि इससे पता चलता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोग में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2022-23 से 2023-24 के बीच औसत एमपीएसई में सबसे अधिक वृद्धि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की निचले तबके की 5 से 10 प्रतिशत आबादी में हुई। ग्रामीण आबादी के निचले 5 प्रतिशत हिस्से ने 22 प्रतिशत की वृद्धि देखी, जबकि इसी वर्ग के शहरी लोगों की एमपीसीई में 19 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
गरीब परिवारों को मिला ज्यादा लाभ
आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि सरकारी राशन का लाभ गरीब व आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को अधिक हुआ है। वित्त वर्ष 2011-12 की तुलना में 2022-23 में औसत पीडीएस लाभ में वृद्धि हुई है। विश्लेषण से पता चलता है कि कम उपभोग वाले समूहों में इसका प्रभाव अधिक रहा है। वर्ष 2022-23 में ग्रामीण क्षेत्र में सब्सिडी का फायदा निचले तबके के 20 प्रतिशत उपभोक्ताओं को 7 प्रतिशत मिला, जबकि शीर्ष तबक के 20 प्रतिशत उपभोक्ताओं को केवल 2 प्रतशित मिला। शहरी क्षेत्रों में भी यही प्रवृत्ति देखी गई।
असमानता में आई कमी
आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि ग्रामीण क्षेत्रों के लिए गिनी गुणांक (आय या संपत्ति के वितरण में असमानता को मापने का एक सांख्यिकीय तरीका) में सुधार हुआ है, जो 2022-23 में 0.266 से घटकर 2023-24 में 0.237 हो गया। शहरी क्षेत्रों में भी यह 0.314 से घटकर 0.284 हो गया। हालांकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए खरीफ उत्पादन में बढ़ोत्तरी को भी जिम्मेवार बताया गया है।