

हिमाचल प्रदेश के बिजली महादेव रोपवे प्रोजेक्ट पर एनजीटी ने भूकंपीय खतरे और वनाधिकार के मुद्दों पर गहन जांच की मांग की है।
याचिकाकर्ता ने भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ के खतरों पर चिंता जताई है।
एनजीटी ने सरकार से इन मुद्दों पर विस्तृत जवाब देने को कहा है।
हिमाचल सरकार ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को भरोसा दिलाया है कि बिजली महादेव में 2.4 किलोमीटर लंबे रोपवे प्रोजेक्ट के निर्माण को लेकर व्यवहार्यता रिपोर्ट में उठाए मुद्दों पर गौर किया जाएगा और उनका सही जवाब दिया जाएगा।
बिजली महादेव हिमाचल प्रदेश की खराल घाटी में मौजूद भगवान शिव का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मामले में 9 दिसंबर 2025 को सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि व्यवहार्यता रिपोर्ट में प्राकृतिक खतरों से जुड़ी जो बातें बताई गई हैं, उन्हें गंभीरता से देखने और उन पर विचार करने की जरूरत है।
भूकंप, भूस्खलन और बाढ़—रिपोर्ट में दर्ज गंभीर खतरे
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह परियोजना भूकंप के प्रति अति संवेदनशील सीस्मिक जोन-V में आती है। इसलिए नींव और अन्य संरचनाओं के डिजाइन पर खास ध्यान देने की जरूरत है। तकनीकी और विस्तृत डिजाइन तैयार करते समय भूकंपीय असर को जरूर शामिल किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, जहां रोपवे बनाया जाना है वह इलाका भूस्खलन के लिए भी बेहद संवेदनशील है। इसलिए ढांचे की मजबूती और सुरक्षा उपायों पर विशेष ध्यान देना जरूरी है, ताकि भूस्खलन से रोपवे को नुकसान न पहुंचे। साथ ही, रोपवे का घाटी स्टेशन ब्यास नदी के बिल्कुल पास स्थित है, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
रिपोर्ट का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ से जुड़े खतरों के बारे में जो बातें सामने आई हैं, उनके आधार पर जरूरी आकलन, संरचनात्मक मजबूती की जांच और सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा अब तक नहीं किया गया है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि ताजा भू-वैज्ञानिक आकलन में इस क्षेत्र को और भी खतरनाक जोन-VI में रखा गया है, इसलिए योजना और निर्माण उसी स्तर की सावधानी से तैयार होनी चाहिए। उनका यह भी कहना है कि पूरी रिपोर्ट रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई है, उसका परिशिष्ट (एपेंडिक्स) गायब है।
फॉरेस्ट राइट्स और दस्तावेजों पर बड़े सवाल
याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि परियोजना के लिए जरूरी वनाधिकारों का निपटारा नहीं हुआ है। कुल 14 गांवों के वनाधिकार तय होने थे, लेकिन बैठक के रिकॉर्ड में सिर्फ 4 गांवों के अधिकार ही निपटाए गए हैं। जारी किया गया नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) भी “फर्जी” बताया गया है और इस संबंध में पुलिस शिकायत भी दर्ज की गई है।
परियोजना प्रस्तावक नेशनल हाईवे लॉजिस्टिक्स मैनेजमेंट लिमिटेड (एनएचएलएमएल) की ओर से पेश वकील द्वारा अदालत को बताया गया कि इस परियोजना की कोई अलग विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) नहीं है। उनके अनुसार, व्यवहार्यता रिपोर्ट ही डीपीआर का काम करती है।