राजस्थान: पुष्कर में रोपवे निर्माण की आड़ में जंगल पर अतिक्रमण, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

आरोप है कि रोपवे के निर्माण और संचालन की आड़ में कंपनी ने सावित्री माता मंदिर की जमीन पर भी अतिक्रमण कर लिया है और मंदिर के साथ-साथ पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाया है
रत्नागिरी पहाड़ियों की चोटी पर मौजूद सावित्री माता मंदिर, जहां से पुष्कर झील दिखाई देती है; फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स
रत्नागिरी पहाड़ियों की चोटी पर मौजूद सावित्री माता मंदिर, जहां से पुष्कर झील दिखाई देती है; फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि वो पुष्कर में सावित्री माता मंदिर की पहाड़ी पर बन रहे एरियल रोपवे प्रोजेक्ट से जुड़े वन भूमि अतिक्रमण की जांच पर कार्रवाई रिपोर्ट पेश करे। यह एरियल रोपवे मंदिर की पहाड़ी के आधार को उसके शिखर से जोड़ने के लिए बनाया गया है।

9 अप्रैल 2025 को दिए यह निर्देश उस संयुक्त समिति की रिपोर्ट के प्रकाश में दिए गए हैं, जिसमें पाया गया कि रोपवे परियोजना के नाम पर बिना अनुमति के वन क्षेत्र पर पक्के निर्माण किए गए हैं। इनमें टिकट काउंटर, वॉशरूम, कैफेटेरिया और सेप्टिक टैंक शामिल हैं। इसके अलावा, करीब 1,280 वर्ग मीटर अतिरिक्त वन भूमि पर भी अवैध कब्जा किया गया है।

इस मामले में अन्य प्रतिवादियों से भी दो सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

एनजीटी ने परियोजना संचालक कंपनी दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रा लिमिटेड को दो सप्ताह के भीतर अपना पक्ष रखने का निर्देश दिया है। बाकी संबंधित विभागों से भी दो हफ्तों में जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।

आवेदक की ओर से पेश वकील ने अदालत को जानकारी दी है कि परियोजना प्रस्तावक द्वारा संचालित गतिविधियां दी गई पर्यावरण मंजूरी के विपरीत हैं। यह पर्यावरण नियमों का भी उल्लंघन हैं। एनजीटी ने राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस मामले में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

याचिकाकर्ता की ओर से आवेदन दायर कर कहा गया है कि 2 मार्च 2015 को राज्य सरकार की ओर से कंपनी के साथ एक लाइसेंस पर समझौता हुआ था, जिसके तहत रोपवे के निर्माण और संचालन की अनुमति दी गई थी।

इस परियोजना के तहत दामोदर रोपवेज एंड इंफ्रा लिमिटेड को पुष्कर में सावित्री मंदिर पहाड़ी के आधार को उसके शिखर से जोड़ने वाली रोपवे प्रणाली का निर्माण और रखरखाव करना था। यह समझौता राजस्थान रोपवेज अधिनियम 1996 के प्रावधानों के अनुसार किया गया था।

परियोजना के लिए 0.874 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग तय हुआ था, परंतु शर्त यह थी कि पर्यावरणीय नियमों का पूरी तरह से पालन किया जाए।

हालांकि, आरोप है कि रोपवे के निर्माण और संचालन की आड़ में कंपनी ने मंदिर की जमीन पर भी अतिक्रमण कर लिया और मंदिर ट्रस्ट की संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाया है। इसकी वजह से मंदिर और पयावरण पर भी असर पड़ा है। इसके अलावा, परियोजना स्थल पर डीजल जनरेटर भी लगा है, जिसके लिए किसी सक्षम प्राधिकरण से अनुमति नहीं ली गई है। ऐसे में एनजीटी ने पर्यावरण नियमों के उल्लंघन को गंभीरता से लेते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने को कहा है।

एनजीटी ने दिए नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में अवैध निर्माण की जांच के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने 8 अप्रैल, 2025 को चार सदस्यीय संयुक्त समिति के गठन के निर्देश दिए थे। ट्रिब्यूनल ने समिति को नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में अवैध निर्माण और ऐसी गतिविधियों के जांच के निर्देश दिए हैं, जो वनों से जुड़ी नहीं हैं। साथ ही इस समिति को मौके का निरीक्षण कर वास्तविक स्थिति की जांच करने और मामले में की गई कार्रवाई पर अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा है।

इस मामले में अदालत ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राजस्थान सरकार (वन एवं वन्यजीव के अपर मुख्य सचिव के माध्यम से) और जयपुर जिला कलेक्टर को भी अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

गौरतलब है कि इस बाबत दायर याचिका में कहा गया है कि आमेर गांव की वह जमीन जो आरक्षित वन क्षेत्र के अंतर्गत आती है और "नाहरगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के वनों का खंड आमेर-54" कहलाती है, उस पर अतिक्रमण हो रहा है।

अदालत को यह भी जानकारी दी गई है कि नाहरगढ़ के सहायक वन संरक्षक ने 26 मई 2023 और एक सितंबर 2023 को क्षेत्रीय वन अधिकारी को निर्देश दिए थे कि निजी पक्षों द्वारा किए गए अतिक्रमण को हटाया जाए, लेकिन अब तक इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

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