कन्नौज ईंट भट्ठे मामला: एनजीटी ने कहा, पर्यावरण मामलों में देरी बर्दाश्त नहीं

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने टिप्पणी की है कि पर्यावरण से जुड़े मामलों को लंबे समय तक लंबित नहीं रखा जा सकता और न ही इन्हें ऐसे दीवानी मुकदमों की तरह देखा जाना चाहिए, जिनका निपटारा सालों तक चलता रहता है।
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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सारांश
  • पर्यावरण से जुड़े मामलों को लंबे समय तक लंबित नहीं रखा जा सकता और न ही इन्हें ऐसे दीवानी मुकदमों की तरह देखा जाना चाहिए, जिनका निपटारा सालों तक चलता रहता है। उत्तर

  • प्रदेश के कन्नौज में अवैध रूप से चल रहे एक ईंट-भट्ठे से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने यह टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पर्यावरण मामलों में देरी से अपूरणीय क्षति हो सकता है।

  • एनजीटी ने अपीलीय प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह इस मामले को प्राथमिकता देते हुए जल्द से जल्द निपटाए।

  • वहीं भाखड़ा और पोंग बांधों के कथित कुप्रबंधन को लेकर दायर एक अन्य मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कड़ा रुख अपनाया है। 15 दिसंबर 2025 को एनजीटी ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) को इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

पर्यावरण से जुड़े मामलों को लंबे समय तक लंबित नहीं रखा जा सकता और न ही इन्हें ऐसे दीवानी मुकदमों की तरह देखा जाना चाहिए, जिनका निपटारा सालों तक चलता रहता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यह अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पर्यावरण मामलों में देरी से अपूरणीय क्षति हो सकता है।

16 दिसंबर 2025 को उत्तर प्रदेश के कन्नौज में अवैध रूप से चल रहे एक ईंट-भट्ठे से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान एनजीटी ने यह टिप्पणी की है। एनजीटी ने साफ कहा कि ऐसे मामलों में तुरंत फैसला जरूरी है, क्योंकि देरी का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है।

अदालत ने कहा कि अपीलीय प्राधिकरण के सामने लंबित अपील में न तो तथ्यों और कानून से जुड़े कोई जटिल सवाल हैं और न ही इसके लिए लंबी सुनवाई की जरूरत है। इसके बावजूद मामले के निपटारे में हो रही देरी पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है, साथ ही इससे सभी पक्षों को अनावश्यक खर्च और परेशानी उठानी पड़ती है।

एनजीटी ने एक बार फिर अपीलीय प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह इस मामले को प्राथमिकता देते हुए जल्द से जल्द निपटाए, और बेहतर होगा कि दो महीने के भीतर इसका फैसला कर दिया जाए।

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यह मामला कन्नौज जिले के एक ईंट-भट्ठे से जुड़ा है, जिसे उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के बंद करने के आदेश के बावजूद अवैध रूप से चलाया जा रहा था। कन्नौज के जिलाधिकारी ने 11 सितंबर 2025 को एनजीटी को बताया था कि यह ईंट-भट्ठा उत्तर प्रदेश ईंट-भट्ठा (स्थापना के लिए स्थान निर्धारण) नियम, 2012 के मानकों पर खरा नहीं है।

इस ईंट भट्ठे के संचालन की अनुमति के लिए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) में आवेदन किया गया था, जिसे 28 दिसंबर 2024 को खारिज कर दिया गया। इसके बाद भट्ठा मालिक ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की।

एनजीटी ने 23 सितंबर 2025 को अपीलीय प्राधिकरण को इस अपील का जल्द निपटारा करने का निर्देश दिया था, लेकिन अब तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। एनजीटी की यह टिप्पणी एक बार फिर संकेत देती है कि पर्यावरण से जुड़े मामलों में ढिलाई अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

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पुराने नियम, बढ़ता खतरा: भाखड़ा-पोंग बांध प्रबंधन पर उठे सवाल, एनजीटी ने बीबीएमबी से मांगा जवाब

भाखड़ा और पोंग बांधों के कथित कुप्रबंधन को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाया है। 15 दिसंबर 2025 को एनजीटी ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) को इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही जल शक्ति मंत्रालय, पंजाब जल संसाधन विभाग, केंद्रीय जल आयोग और पंजाब सरकार समेत अन्य पक्षों से भी जवाब देने के लिए कहा गया है।

मामले में अगली सुनवाई 10 मार्च 2026 को होगी।

याचिकाकर्ता का कहना है कि बीबीएमबी जलाशयों का संचालन 1990 में बनाए गए नियमों (रूल कर्व) के आधार पर कर रहा है, जो अब पुराने और असुरक्षित हो चुके हैं। इन नियमों में न तो मौसम के पूर्वानुमान को जगह दी गई है और न ही जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दों को ध्यान में रखा गया है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि बांधों के सही प्रबंधन के अभाव में नीचे की ओर बसे इलाकों में बार-बार बाढ़ की स्थिति बनती है। इससे नदी की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचता है, मिट्टी का कटाव होता है और पर्यावरण पर गंभीर नकारात्मक असर पड़ता है।

ट्रिब्यूनल के पहले के आदेश पर जानकारी के स्रोत को स्पष्ट करते हुए याचिकाकर्ता ने 29 सितंबर 2025 के अपने शपथपत्र का हवाला दिया। उन्होंने बताया कि यह जानकारी राजस्थान के हनुमानगढ़ स्थित नहर टेलीग्राफ विभाग के सेवानिवृत्त अधिकारी अरुण अरोड़ा ने व्हाट्सऐप संदेश के जरिए दी थी, और यह डेटा सार्वजनिक रूप से भी उपलब्ध है।

अब निगाहें एनजीटी की अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जहां यह तय होगा कि देश के सबसे महत्वपूर्ण बांधों के संचालन में पर्यावरण और सुरक्षा से जुड़े इन सवालों पर क्या कार्रवाई होती है।

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