जम्मू कश्मीर में बिना मंजूरी के चल रहे 132 ईंट भट्ठे, एनजीटी ने कार्रवाई पर मांगी जानकारी

जम्मू कश्मीर में 570 ईंट भट्ठे हैं। इनमें से 196 सहमति से चल रहे हैं, जबकि 146 के पास संचालन की सहमति नहीं है
जम्मू कश्मीर में बिना मंजूरी के चल रहे 132 ईंट भट्ठे,  एनजीटी ने कार्रवाई पर मांगी जानकारी
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जम्मू-कश्मीर में पर्यावरण विभाग के प्रधान सचिव को नोटिस देने का निर्देश दिया है। दो फरवरी, 2024 को दिए अपने इस आदेश में एनजीटी ने प्राधिकरण को जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति के समुचित कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए की गई कार्रवाइयों की जानकारी देते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है।

इसके साथ ही अदालत ने उन 132 ईंट भट्टों के खिलाफ की गई कार्रवाई का भी खुलासा करने को कहा है, जो बिना परमिट के स्थापित किए गए हैं और पर्यावरण नियमों को ताक पर रख चल रहे हैं। इस मामले में अगली सुनवाई आठ अप्रैल 2024 को होनी है। ऐसे में अदालत ने प्रधान सचिव से उसके कम से कम एक सप्ताह पहले अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति ने ईंट भट्टों की स्थिति पर जो रिपोर्ट सबमिट की है, उसके अनुसार जम्मू कश्मीर में 570 ईंट भट्ठे हैं। इनमें से 196 सहमति से चल रहे हैं, जबकि 146 के पास संचालन की सहमति नहीं है। वहीं कुल 147 ईंट भट्टों ने सहमति के लिए आवेदन किया है और उसपर विचार चल रहा है।

एनजीटी के मुताबिक रिपोर्ट से पता चला है कि कम से कम 132 ईंट भट्टे बिना सहमति के चल रहे हैं। हालांकि, रिपोर्ट में बिना सहमति के चल रहे इन ईंट भट्ठों पर की गई कार्रवाई का जिक्र नहीं है। 

मंगलुरु में भूजल को दूषित कर रहा डंप यार्ड से होने वाला रिसाव

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उस खबर को गंभीरता से लिया है, जिसमें डंप यार्ड से एफ्लुएंट के रिसाव की बात कही गई थी। इस खबर में रिसाव के चलते दूषित हो रहे भूजल का मुद्दा भी उठाया गया था। बता दें कि यह डंप साइट कर्नाटक में मंगलुरु के मंदारा गांव में स्थित है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए एनजीटी ने दो फरवरी 2024 को दिए अपने आदेश में कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मंगलुरु सिटी कॉर्पोरेशन, मंगलुरु के जिला मजिस्ट्रेट और उपायुक्त के साथ-साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस देने का आदेश दिया है।

गौरतलब है कि मामला 19 दिसंबर, 2023 को 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी एक खबर के आधार एनजीटी द्वारा स्वत: संज्ञान में लिया गया था। इस खबर में जल प्रदूषण का मुद्दा उठाया गया था। खबर के अनुसार इस डंप यार्ड से होता रिसाव कुओं और अन्य जलस्रोतों को दूषित कर रहा है।

इस खबर में आगे कहा गया है कि गांव के लोग कुओं में बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंतित है, क्योंकि पीने की किल्लत का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वहां इस रिसाव की वजह से कृषि भूमि और फसलें प्रभावित हुई हैं। इतना ही नहीं कुएं का गन्दा पानी त्वचा पर चकत्ते की वजह बन रहा है। इसकी वजह से वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है।

जानिए क्यों एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय से मांगी उसकी प्रतिक्रिया

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पर्यावरण मंत्रालय से औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान पैदा हुई सामग्री को अपशिष्ट या उप-उत्पादों के रूप में अलग करने के उद्देश्य से ढांचे को लागू करने के सम्बन्ध में हुई प्रगति पर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है।

कोर्ट के निर्देशानुसार पर्यावरण मंत्रालय को अगली सुनवाई से कम से कम एक सप्ताह पहले अपना रुख स्पष्ट करना होगा। इस मामले में अगली सुनवाई 10 अप्रैल, 2024 को होगी।

गौरतलब है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस ढांचे को विकसित करने के लिए उठाए कदमों का विवरण देते हुए एक कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीपीसीबी वर्तमान में एसपीसीबी से प्राप्त आवेदन पत्रों की समीक्षा कर रहा है।

इस सम्बन्ध में एसपीसीबी/पीसीसी के साथ परामर्श और पर्यावरण मंत्रालय के अनुमोदन के बाद एक सामान्य आवेदन पत्र को अंतिम रूप दिया जाना है, जिसे इस ढांचे में शामिल किया जाएगा। सीपीसीबी ने इसके लिए एक माह का समय मांगा है।

बता दें कि आवेदक ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा सितंबर 2019 में जारी फ्रेमवर्क के प्रवर्तन में कमी को उजागर किया था। यह फ्रेमवर्क औद्योगिक प्रक्रियाओं के दौरान पैदा हुई सामग्री को अपशिष्ट या उप-उत्पादों के रूप में पहचानने से संबंधित है।

इस फ्रेमवर्क का उद्देश्य हानिकारक कचरे को उप-उत्पादों के रूप में वर्गीकृत होने से रोकना है, क्योंकि ऐसे होने पर हानिकारक कचरा, खतरनाक और अन्य अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत जांच से बच जाता है।

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