अरुणाचल: बिना अनुमति सड़क निर्माण? पर्यावरण मंत्रालय ने कहा- नहीं दी मंजूरी

यह मामला गंगा-ताइपू और गंगा-टागो के बीच पर्यावरण संवेदनशील इलाकों में कथित तौर पर अवैध सड़क निर्माण से जुड़ा है
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में पहाड़ी दर्रे के पास हवा में लहराते बौद्ध प्रार्थना झंडों से सजा प्रवेश द्वार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
अरुणाचल प्रदेश के तवांग में पहाड़ी दर्रे के पास हवा में लहराते बौद्ध प्रार्थना झंडों से सजा प्रवेश द्वार; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि अरुणाचल प्रदेश के पापुम पारे जिले में गंगा-ताइपू और गंगा-टागो के बीच जलग्रहण क्षेत्रों में सड़क निर्माण के लिए कोई पर्यावरणीय मंजूरी नहीं दी है।

मंत्रालय ने यह जानकारी 29 अगस्त 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में दी है। हलफनामे में कहा गया है कि मंत्रालय को गंगा से ताइपू या गंगा से टागो तक सड़क निर्माण के लिए ईआईए अधिसूचना, 2006 की ‘कैटेगरी ए’ के तहत कोई प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है, जैसा कि 22 अप्रैल 2025 को अरुणाचल टाइम्स में प्रकाशित खबर में बताया गया है।

मंत्रालय ने यह भी कहा है कि पर्यावरण मंजूरी के बिना किया गया कोई भी निर्माण नियमों का उल्लंघन माना जाएगा। साथ ही, जमीनी स्तर पर पर्यावरण के सुरक्षा संबंधी उपायों का पालन कराना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।

वन विभाग पर लापरवाही का आरोप

यह मामला गंगा-ताइपू और गंगा-टागो के बीच पर्यावरण संवेदनशील इलाकों में कथित तौर पर अवैध सड़क निर्माण से जुड़ा है। अरुणाचल टाइम्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक गांव वालों की बार-बार शिकायतों के बावजूद, भारी मशीनों से अवैध जमीन कटाई और निर्माण कार्य जारी है, जिससे जंगल की जमीन को नुकसान पहुंच रहा है, पानी के स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं और साथ ही स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।

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खबर में यह भी आरोप लगाया गया है कि स्थानीय रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर ने कोई कार्रवाई नहीं की। साथ ही, ग्राम वन समिति ने अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंप कर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

अब जब मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि कोई मंजूरी नहीं दी गई, तो ऐसे में यह मामला और गंभीर हो गया है। क्या स्थानीय प्रशासन इस पर जमीनी स्तर पर कार्रवाई करेगा, यह देखना बाकी है। वहीं, एनजीटी इस मुद्दे पर आगे क्या रुख अपनाता है, उस पर भी सबकी निगाहें टिकी हैं।

दिल्ली के खुले नालों से सुरक्षा संकट, एनजीटी ने उठाया मामला

दिल्ली में खुले नालों की वजह से लोगों की सुरक्षा से जुड़े खतरे का मामला 29 अगस्त 2025 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में उठाया गया।

दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) की ओर से पेश वकील ने बताया कि 24 अप्रैल 2025 को एनजीटी द्वारा दिए आदेश पर, 10 जुलाई 2025 को जल बोर्ड और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के अधिकारियों की संयुक्त बैठक हुई। दिल्ली जल बोर्ड के फील्ड स्टाफ ने 15 जून 2025 को उस जगह का निरीक्षण किया था, जहां एक 5 साल की बच्ची की मौत हो गई थी।

यह हादसा पल्ला-बख्तावरपुर मुख्य सड़क पर, अकबरपुर माजरा गांव के पास एक बरसाती नाले में हुआ था। यह नाला लोक निर्माण विभाग के आधीन आता है। आसपास के इलाकों के पानी को इसके जरिए बहाया जाता है, कई जगहों पर इसे ठीक से ढंका नहीं गया था।

दिल्ली जल बोर्ड ने स्पष्ट किया है कि इस क्षेत्र में उनका कोई सीवेज नेटवर्क नहीं है। हालांकि, आसपास के इलाकों और कॉलोनियों में सीवेज नेटवर्क बिछाने और डीसेंट्रलाइज्ड सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस काम को जून 2028 तक पूरी होने की उम्मीद है।

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वहीं लोक निर्माण विभाग ने बताया कि दिल्ली हाई कोर्ट के निर्देशानुसार, पूरे नाले से आरसीसी कास्ट-इन-सिटू कवर स्लैब हटा दिए गए हैं। अब आवासीय क्षेत्रों के लिए प्रीकास्ट आरसीसी कवर स्लैब लगाए जाएंगे, जिसमें मानसून के दौरान साफ-सफाई की सुविधा भी होगी।

पीडब्ल्यूडी ने आगे कहा कि हाई कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, हादसे वाली जगह के 50 मीटर ऊपर और नीचे प्रीकास्ट कवर लगाए जाएंगे। ताजपुर, सुंदरपुर और पल्ला इलाकों में सीवरेज नेटवर्क बिछाने के लिए वित्तीय मंजूरी भी मिल चुकी है, और अगले चार हफ्तों में टेंडर जारी किया जाएगा।

एनजीटी ने दिल्ली जल बोर्ड के वकील को निर्देश दिया है कि आठ हफ्तों के भीतर टेंडर की पूरी जानकारी और प्रगति रिपोर्ट हलफनामे के रूप में अदालत के सामने पेश करें।

दिल्ली के नॉर्थ वेस्ट जिला मजिस्ट्रेट की ओर से पेश वकील ने एनजीटी को बताया कि मृतक के परिवार को छह हफ्तों के भीतर 5 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा। वकील को आठ हफ्तों के अंदर इस आदेश का पालन करने की जानकारी हलफनामा में देने का निर्देश अदालत ने दिया है।

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