अरुणाचल प्रदेश में जंगल और जलाशयों की नियमित निगरानी करे समिति: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार
अरुणाचल प्रदेश में जंगल और जलाशयों की नियमित निगरानी करे समिति: एनजीटी
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अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा गठित उच्च-स्तरीय समिति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आदेश दिया है कि वो राज्य में मौजूदा वन क्षेत्र की नियमित रूप से निगरानी करे। इसके साथ ही एनजीटी ने समिति को जल निकायों की बहाली का भी निर्देश दिया है, जिसमें 2009 से 2019 के बीच भारी कमी देखी गई है।

साथ ही कोर्ट ने समिति को इस बात की भी छूट दी है कि वो यदि आवश्यक हो तो असम सहित अन्य पड़ोसी राज्यों के साथ आम मुद्दों पर भी विचार-विमर्श कर सकती है। इस मामले में आवेदक जोर्जो ताना तारा ने 8 अप्रैल, 2019 को एनजीटी में आवेदन दायर किया था। इस आवेदन में उन्होंने आरक्षित वन क्षेत्र में पेड़ों की होती अंधाधुंध कटाई का आरोप लगाया था। यह क्षेत्र पापुम आरक्षित वन और अरुणाचल प्रदेश में पक्के टाइगर रिजर्व का हिस्सा है।

आवेदक ने यह भी आरोप लगाया है कि वनों के इस होते विनाश के बारे में सरकारी अधिकारियों को भी जानकारी है। लेकिन उसे रोकने के लिए उन्होंने कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है। उनके अनुसार जंगलों का होता यह विनाश इंसान और जानवरों के बीच टकराव पैदा कर सकता है। इसका असर इस क्षेत्र में बाघों के जीवन पर भी पड़ सकता है।

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि अरुणाचल प्रदेश पर 2009 से 2019 के लिए जारी वन कवर रिपोर्ट से पता चला है कि 2019 से पहले के 10 वर्षों में ओपन फारेस्ट में 29.61 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है, जबकि मध्यम घने जंगलों में 934.97 वर्ग किलोमीटर की कमी दर्ज की गई है।

इसी तरह बहुत घने जंगलों में 244.09 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि के साथ स्क्रब वन में 115.81 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि देखी है। वहीं इस दौरान गैर वन क्षेत्र में 844.09 वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ है। हालांकि इस बीच जलाशय में 288.83 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।

आवेदक के वकील ने दलील दी है कि गैर-वन क्षेत्र हुई वृद्धि अरुणाचल प्रदेश के लिए कोई खास उत्साहजनक नहीं है, क्योंकि इस दौरान मध्यम घने जंगल में 934.97 वर्ग किलोमीटर जबकि जलाशयों में 288.83 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है, जोकि बहुत ज्यादा है।

वीडियोकॉन कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी को पार्किंग उपलब्ध कराए वीणा डेवलपर्स: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई, 2022 को दिए अपने आदेश में वीणा डेवलपर्स को कार पार्किंग के लिए जगह उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। मामला मुंबई की वीडियोकॉन टॉवर ए कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी का है, जिसके लिए 227 कारों की पार्किंग के जरुरी जगह देने का निर्देश कोर्ट ने बिल्डर को दिया है।

इस प्रस्ताव में नगर आयुक्त के विवेकाधीन कोटे का 25 फीसदी शामिल होगा जबकि 124 कारों की पार्किंग के लिए एक अलग प्रस्ताव देना होगा, जिसे आवश्यकता के आधार पर डेवलपर को खरीदना होगा। साथ ही जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और सूर्यकांत ने अपने आदेश में नगर निगम को एफएसआई की सीमा के बारे में अपीलकर्ता को सूचित करने के लिए कहा है।   

इस बारे में सूचना प्राप्त होने के बाद डेवलपर को चार सप्ताह की अवधि के भीतर निर्धारित राशि नगर निगम के पास जमा करनी होगी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कार पार्किंग के अभाव में सोसायटी में रहने वाले लोगों द्वारा दायर शिकायतों के जवाब में था।

बालाघाट में स्टोन क्रेशर यूनिट ने उड़ाई नियमों की धज्जियां, अब मामले की जांच करेगी समिति

एनजीटी के न्यायमूर्ति श्यो कुमार सिंह की पीठ ने आपने आदेश में कहा है कि तिरुपति मिनरल्स की स्टोन क्रेशर यूनिट के अवैध संचालन के आरोपों पर एक संयुक्त समिति द्वारा जांच की जाएगी। मामला मध्य प्रदेश के किरनापुर जिले के दाहेड़ी गांव का है। कोर्ट का कहना है कि साथ ही समिति खनिकों द्वारा लगभग 13.294 हेक्टेयर वन भूमि पर किए अतिक्रमण के आरोपों की भी जांच करेगी।

एनजीटी ने इस मामले में संयुक्त समिति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। इसके लिए समिति उस स्थान का दौरा करेगी और आदेश की तारीख से छह सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट कोर्ट के सम्मुख प्रस्तुत करेगी।

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