प्रकाश प्रदूषण: कैसे पेड़-पौधों की दुनिया बदल रहा शहरों में बढ़ता कृत्रिम प्रकाश

शहरों में बढ़ते कृत्रिम प्रकाश के कारण पेड़ों की हरियाली का समय ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तीन सप्ताह तक लंबा हो गया है
रातों में जगमगाते शहर; फोटो: आईस्टॉक
रातों में जगमगाते शहर; फोटो: आईस्टॉक
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क्या आप जानते हैं शहरों में बढ़ते कृत्रिम प्रकाश के चलते पेड़ों की हरियाली का समय ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तीन सप्ताह तक लंबा हो गया है। देखा जाए तो शहर अब मात्र इंसानों के बनाए ढांचे नहीं रहे। अब वहां बढ़ती गर्मी और कृत्रिम प्रकाश पेड़-पौधों की बढ़वार के तरीके को भी बदल रहा है।

एक नए अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि शहरी क्षेत्रों में पेड़ों की पत्तियां समय से पहले निकलती हैं और देर से झड़ती हैं और इसका सबसे बड़ा कारण शहरों में रात के समय बढ़ता कृत्रिम प्रकाश है।

रोशनी का असर, गर्मी से ज्यादा

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उत्तरी गोलार्ध के 428 शहरों के 2014 से 2020 के बीच सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इनमें न्यूयॉर्क, पेरिस, टोरंटो और बीजिंग जैसे शहर शामिल थे। इस विश्लेषण के जो नतीजे सामने आए हैं, वो चौंकाने वाले हैं।

अध्ययन से पता चला है कि शहरी इलाकों में पेड़-पौधों की बढ़वार ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में औसतन 12.6 दिन पहले शुरू होती है और 11.2 दिन बाद खत्म होती है, यानी हर साल शहरों में औसतन तीन सप्ताह ज्यादा हरियाली रहती है।

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गौरतलब है कि अब तक यही माना जाता था कि इन बदलावों के पीछे की सबसे बड़ी वजह 'अर्बन हीट आइलैंड' यानी शहर में बढ़ती गर्मी है। लेकिन इस नए अध्ययन से पता चला है कि इसके पीछे की प्रमुख वजह शहरों में रात के समय बढ़ता कृत्रिम प्रकाश है।

बता दें कि शहरों में बिछा कंक्रीट और इमारतें दिन भर गर्मी को सोखकर रात में बाहर छोड़ती हैं, जिससे ‘अर्बन हीट आइलैंड’ बनते हैं।

रात की रोशनी ने बढ़ाया हरियाली का समय

वैज्ञानिकों के मुताबिक शहरों में पिछले दस वर्षों में रात के समय कृत्रिम प्रकाश सालाना करीब 10 फीसदी की दर से बढ़ा है। मतलब कि शहरों में रातें अब पहले से कहीं अधिक चमकदार हो गई है। अध्ययन में पाया गया कि खासकर शरद ऋतु में जब दिन की रोशनी कम होती है, तब कृत्रिम प्रकाश पौधों को 'गुमराह' करता है। इसकी वजह से पत्तियां देर से झड़ती हैं।

गौरतलब है कि पौधों की मौसमी गतिविधियों को नियंत्रित करने में बाहरी संकेतक बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इनमें प्रकाश और तापमान प्रमुख भूमिका निभाते हैं। पत्तियों का निकलना और झड़ना मुख्य रूप से इन्हीं कारकों पर निर्भर करता है। गर्मी और रोशनी का सीधा असर पेड़-पौधों के सीजन पर पड़ता है। बढ़ती रोशनी और गर्मी से शहरों में पेड़ वसंत में पहले ही खिलने लगे हैं। वहीं शरद ऋतु में पत्तियां देर से गिरती हैं।

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शोधकर्ताओं ने पाया है कि जैसे-जैसे हम गांव से शहरों की ओर बढ़ते हैं, रात में कृत्रिम प्रकाश का स्तर तेजी से बढ़ता है, जबकि तापमान में वृद्धि धीरे-धीरे होती है। मतलब कि यह बढ़ता कृत्रिम प्रकाश शहरों में पौधों के बढ़ने के मौसम को ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में तीन सप्ताह (23.8 दिन) तक बढ़ा सकते हैं।

इस दौरान पेड़ों के बढ़ने के मौसम की शुरुआत (वसंत) औसतन 12.6 दिन पहले होती है और मौसम का अंत (शरद) औसतन 11.2 दिन बाद होता है। अध्ययन में इस बात की भी पुष्टि हुई है कि पत्तियों के झड़ने के समय पर कृत्रिम रोशनी का असर, मौसम की शुरुआत से ज्यादा होता है।

इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर सिटीज में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में वुहान यूनिवर्सिटी, वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी, नॉर्दर्न एरिजोना यूनिवर्सिटी, जर्मनी के लेबनिज इंस्टीट्यूट, बर्लिन की फ्री यूनिवर्सिटी, ओक रिज नेशनल लैब और यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया (यूसीएलए) से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपना सहयोग दिया है।

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अलग-अलग जगहों पर दिखा अलग-अलग असर

हालांकि ज्यादातर शहरों में यह प्रवृत्ति एक जैसी ही थी, लेकिन अन्य क्षेत्रों की तुलना में यूरोप में पेड़-पौधों पर वसंत का प्रभाव सबसे पहले दर्ज किया गया। इसके बाद एशिया और फिर उत्तर अमेरिका में पेड़ों के लिए बसंत की शुरुआत हुई। हैरानी की बात है कि उत्तर अमेरिका कृत्रिम प्रकाश के सबसे ज्यादा होने के बावजूद भी वहां पेड़ों के सीजन में होने वाला बदलाव सबसे कम देखा गया।

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स्टडी में यह भी सामने आया है कि जिन क्षेत्रों में गर्मियां सूखी, जबकि सर्दियां नम होती है, वहां रात के कृत्रिम प्रकाश का असर मौसम की शुरुआत पर ज्यादा होता है। लेकिन पेड़ों की पत्तियां के देर से झड़ने का असर लगभग हर शहर में एक जैसा पाया गया।

शोध में पाया गया कि जितना कोई शहर उत्तर की ओर होता है, वहां के पेड़-पौधे कृत्रिम प्रकाश के प्रति उतने ही ज्यादा संवेदनशील होते हैं। ऐसे क्षेत्रों में दिन और रात की लम्बाई में बहुत ज्यादा फर्क होता है, इसलिए वहां रात का कृत्रिम प्रकाश पौधों को कहीं ज्यादा प्रभावित करता है। यह कृत्रिम प्रकाश पौधों की जैविक घड़ी को भटका देता है।

एलईडी लाइट्स ने बढ़ाया संकट

अब शहरों में पुराने सोडियम लैंप की जगह चमकीली सफेद एलईडी लाइट्स ले रही हैं, जो ज्यादा ब्लू लाइट छोड़ती हैं। पौधे इस नीली रोशनी को खास रिसेप्टर के जरिए महसूस करते हैं, जिससे मौसमों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया बदल जाती है। लेकिन ज्यादातर सैटेलाइट अभी नीली रोशनी को पकड़ नहीं पाते, जिससे इसके प्रभाव को पूरी तरह से समझना मुश्किल हो रहा है।

पेड़ों की हरियाली का समय बढ़ना सुनने में अच्छा लग सकता है। इससे पेड़ ज्यादा कार्बन सोख सकते हैं और बेहतर छांव दे सकते हैं। लेकिन इसके अपने नुकसान भी हैं।

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पत्तियां के देर तक रहने से ठंड से नुकसान का खतरा बढ़ जाता है, फूलों और कीटों के समय में तालमेल बिगड़ सकता है और एलर्जी का मौसम और भी गंभीर हो सकता है। ऐसे में यह जरूरी है कि शहरों में कृत्रिम प्रकाश को इस तरह डिजाइन किया जाए कि वह सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की सेहत का भी ध्यान रखे।

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