छह दशकों में समुद्र से गायब हुए 56 करोड़ टन पोषक तत्व, कौन है जिम्मेवार?

अध्ययन से पता चला है कि 1960 के बाद से मछली पकड़ने से समुद्रों से 43 करोड़ टन कार्बन, 11 करोड़ टन नाइट्रोजन और 2.3 करोड़ टन फॉस्फोरस निकाले जा चुका है
उत्तरी नॉर्वे में बड़े पैमाने पर पकड़ी जा रही मछली; फोटो: आईस्टॉक
उत्तरी नॉर्वे में बड़े पैमाने पर पकड़ी जा रही मछली; फोटो: आईस्टॉक
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1960 से 2018 के बीच पिछले करीब छह दशकों वैश्विक मत्स्य पालन उद्योग ने समुद्र से करीब 400 करोड़ टन समुद्रों जीवों को पकड़ा है। इससे समुद्र से करीब 56 करोड़ टन पोषक तत्व खत्म हो गए। यह पोषक तत्व समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी थे।

यह जानकारी अमेरिका की यूटाह स्टेट यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया की सी अराउंड अस पहल द्वारा किए एक नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन के मुताबिक 1960 के बाद से औद्योगिक पैमाने पर मछली और अन्य जीवों को पकड़ने की वजह से समुद्रों से 43 करोड़ टन से ज्यादा कार्बन, 11 करोड़ टन नाइट्रोजन और 2.3 करोड़ टन फॉस्फोरस निकाला जा चुका है।

सिर्फ भोजन ही नहीं, पोषक चक्र की भी कड़ी हैं मछलियां

इस पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एड्रियन गोंजालेज ओर्टिज ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “मछलियों और दूसरे समुद्री जीवों के शरीर में खास पोषक तत्व जमा होते हैं। लेकिन जब उपभोक्ता की मांग, सामाजिक-राजनीतिक कारणों और प्राकृतिक उपलब्धता के आधार पर इन जीवों की 330 प्रजातियों को औद्योगिक पैमाने पर पकड़ा जाने लगा है, तब से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में पोषक तत्वों का संतुलन गड़बड़ा गया है।“

उनके मुताबिक समुद्र की उत्पादकता इस बात पर निर्भर करती है कि पोषक तत्वों का पुनः उपयोग कितनी कुशलता से होता है। लेकिन जब मछलियां और दूसरे जीव कम हो जाते हैं, तो यह चक्र टूट जाता है। सरल शब्दों में कहें तो समुद्री खाद्य श्रृंखला के अलग-अलग स्तरों के बीच पोषक तत्वों का प्राकृतिक प्रवाह अब पहले जैसा नहीं रहा।

अध्ययन के मुताबिक इन पिछले छह दशकों में समुद्र से सबसे ज्यादा पोषक तत्व मझोले आकार के शिकारी जीवों जैसे हेरिंग और मैकेरल मछलियों के जरिए निकाले गए हैं। ये जीव खुद भी शिकार करते हैं और दूसरों का शिकार भी बनते हैं। इनके शरीर में कार्बन, नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है।

इसके बाद बड़े शिकारी जैसे ट्यूना और बिलफिश का नंबर आता है। वहीं तुलनात्मक रूप से कम मात्रा में छोटी मछलियों जैसे सार्डीन और पैरेटफिश से भी पोषक तत्व निकाले गए हैं।

अध्ययन से जुड़ी अन्य शोधकर्ता डॉक्टर त्रिशा बी एटवुड के मुताबिक, "अगर हम लगातार ऐसे शिकारी जीवों को हटाते रहेंगे, तो समुद्र में पोषक तत्वों की मात्रा घटेगी और शिकार बनने वाले अन्य जीवों की संख्या भी प्रभावित होगी। इससे न केवल पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है, बल्कि साथ ही मछली पकड़ने से जुड़ा उद्योग भी प्रभावित होता है।"

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भौगोलिक रूप से सबसे ज्यादा पोषक तत्व उन क्षेत्रों से निकाले गए हैं जो देशों के विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में आते हैं और जहां समुद्री जीवन बेहद सक्रिय है। यहां मझोले शिकारी जैसी मछलियों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया।

अध्ययन में सामने आया है कि कंबोडिया के समुद्री क्षेत्र (ईईजेड) में पोषक तत्वों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। अधिकतर नुकसान देशों के विशेष समुद्री आर्थिक क्षेत्रों में हुआ है, जहां मछलियां सबसे ज्यादा पकड़ी जाती हैं।

धीरे-धीरे गहराता संकट

अध्ययन से पता चला है कि 1990 के दशक में जब जरूरत से ज्यादा मछली पकड़ी जाने लगी, तो मछलियों की संख्या तेजी से गिरने लगी। हालांकि बाद में इसमें गिरावट आने से 2010 तक 160 क्षेत्रों में पोषक तत्वों की निकासी आधी हो गई।

डॉक्टर मारिया पालोमारेस के मुताबिक इसके बाद इंडस्ट्री ने समुद्र की नई जगहों, जैसे प्रशांत महासागर के उष्ण, उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और खुले समुद्र में मछली पकड़ना शुरू किया, जिससे उन क्षेत्रों में पोषक तत्वों की निकासी बढ़ गई। गौरतलब है कि डॉक्टर मारिया पालोमारेस इस अध्ययन से जुड़ी हैं और सी अराउंड अस पहल की प्रबंधक हैं।

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इस अध्ययन ने पोषक तत्वों की निकासी का अनुमान लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने 330 प्रजातियों के शरीर में मौजूद पोषक तत्वों की असली मात्रा के आधार पर आकलन किया है। इससे हर प्रजाति की पोषण भूमिका को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिली है।

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