भारत सहित दुनिया भर में ताजे पानी की हर तीसरी मछली पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह जानकारी हाल ही में जारी रिपोर्ट ‘द वर्ल्डस फॉरगॉटन फिशेस’ में सामने आई है, जिसे जैवविविधता के संरक्षण पर काम कर रही 16 संस्थाओं ने मिलकर तैयार किया है। रिपोर्ट ने इसके लिए बढते प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और मछलियों के जरुरत से ज्यादा हो रहे शिकार को जिम्मेवार माना है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 वर्षों में मीठे पानी की प्रवासी मछलियों की आबादी में तकरीबन 76 फीसदी की गिरावट आई है। वहीं 30 किलो से अधिक वजन वाली मछलियां सभी नदियों से लगभग विलुप्त हो गई हैं। इन मेगाफिश की वैश्विक आबादी में 94 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। गौरतलब है कि मीठे पानी में मिलने वाली मछलियों की 80 प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, जिनमें से 16 प्रजातियों पिछले वर्ष को विलुप्त मान लिया गया था।
क्यों महत्वपूर्ण हैं यह मीठे पानी की मछलियां
आज जब दुनिया जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, समुद्रों के संरक्षण के बारे में बात करती है तो यह जानना जरुरी हो जाता है कि आखिर मीठे पानी की यह मछलियां भी इतनी महत्वपूर्ण क्यों हैं। दुनिया की नदियों, झीलों और मीठे पानी के स्रोतों में मछलियों की इतनी प्रजातियां मिलती हैं जितनी तो सारे समुद्रों और महासगरों में भी नहीं हैं। आंकड़ों के अनुसार अब तक ज्ञात 51 फीसदी मछलियों की प्रजातियां मीठे पानी में मिलती हैं। दुनियाभर के करोड़ों लोग अपने भोजन और जीविका के लिए इन मीठे पानी की मछलियों पर ही निर्भर करते हैं। जिसमें दुनिया के सबसे कमजोर और पिछड़े तबके की एक बड़ी आबादी इन्हीं पर निर्भर है।
यह सभी तरह के इकोसिस्टम के लिए महत्वपूर्ण हैं। यदि खाद्य के लिए इनपर निर्भरता की बात करें तो पक्षियों से लेकर इंसानों तक इनपर निर्भर करते हैं। यही नहीं यह पहाड़ से लेकर मैंग्रोव्स तक सभी के लिए अहम हैं। यह सदियों से दुनिया भर में संस्कृति का हिस्सा रही हैं।
क्या है इसके पीछे की वजह
जिस तरह से मीठे पानी के स्रोत प्रदूषित होते जा रहे हैं उनसे बिना सोचे समझे जल लिया जा रहा है। अनियोजित तरीके से हाइड्रोपावर का निर्माण हो रहा है और नदियों एवं झीलों से रेत खनन हो रहा है। वो इनके जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। इसके साथ ही जलवायु परिवर्तन, इनका अनियंत्रित तरीके से बढ़ता वैध और अवैध शिकार इन्हें विलुप्ति के और करीब ले जा रहा है। पिछले 50 वर्षों में 35 फीसदी वेटलैंड्स खत्म हो चुके हैं, जो इनके लिए बड़ा खतरा है।
यदि इन मछलियों के हो रहे शिकार की बात करें तो यह बहुत हद तक कुछ देशों में ही केंद्रित है। यदि फिश फार्मिंग को छोड़ दें तो 2018 में मीठे पानी की जितनी मछलियां पकड़ी गई थी उनमें से 80 फीसदी केवल 16 देशों से ही थी। अकेले एशिया से ही दुनिया की दो तिहाई मछलियां पकड़ी गई थी, जिनमें भारत, चीन, बांग्लादेश, म्यांमार, कंबोडिया और इंडोनेशिया मुख्य थे। वहीं अफ्रीका से 25 फीसदी मछलियां पकड़ी गई थी। एफएओ के अनुसार दुनिया की 50 फीसदी मीठे पानी की मछलियां केवल 7 नदी बेसिनों गंगा, मेकोंग, नील, इर्रावदी, यांग्त्ज़े, अमेज़न और ब्रह्मपुत्र से पकड़ी गई थी। यह वो नदी बेसिन हैं जो पहले ही बढ़ते प्रदूषण जलवायु परिवर्तन आदि के दबाव में हैं।
भारत के गंगा नदी बेसिन को ही देखें तो यहां रहने वाली आधी से अधिक आबादी गरीबी का शिकार है। यहां की बड़ी आबादी पोषण के लिए इन मछलियों पर ही निर्भर है। लेकिन पिछले 70 वर्षों में इस नदी पर बढ़ते दबाव के चलते यहां की मछलियों की आबादी में काफी कमी आई है। इसमें सबसे ज्यादा कमी हिल्सा में देखी गई है। वहां फरक्का बांध के निर्माण के बाद इन मछलियों पर व्यापक असर पड़ा है। 43 फीसदी मीठे पानी की मछलियां उन 50 कम आय वाले देशों में पकड़ी जाती हैं जो पहले ही खाद्य सुरक्षा का संकट झेल रहे हैं।
हमारी संस्कृति का हिस्सा है संरक्षण
लम्बे समय से यह मछलियां हमारी संस्कृति और समाज का हिस्सा रही हैं। आज भी इन्हें कई संस्कृतियों में पवित्र माना जाता है। इनके संरक्षण का इतिहास भी नया नहीं है। तीसरी शताब्दी में भारतीय शासक अशोक ने मीठे पानी की शार्क और ईल सहित अन्य मछलियों को संरक्षित कर दिया था। आज से करीब 1200 वर्ष पहले भारत में इन मछलियों के लिए पहला मंदिर और अभयारण्य स्थापित किया गया था। आज भी खतरे में पड़ी मछली प्रजाति हिमालयन गोल्डन महाशीर को भारत और भूटान के स्थानीय समुदायों द्वारा पूजा जाता है। गंगा के किनारे बने मंदिरों में आज भी यह मछलियां संरक्षित हैं। यहां आज भी श्रद्धालु इन्हें चावल खिलाते हैं।
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फण्ड के कार्यकारी निदेशक जॉन हटन के अनुसार हमें इन मछलियों को बचाने के लिए तुरंत काम करना होगा, क्योंकि यदि हम इसे ऐसे ही छोड़ देते हैं तो बहुत देर हो जाएगी। इसके लिए प्राकृतिक रूप से नदियों और जल के प्रवाह को बनाए रखना बहुत जरुरी है। इसके साथ ही जल गुणवत्ता में सुधार करने की जरुरत है। बढ़ते अनियंत्रित रेत खनन और उनके आवास को होते नुकसान को बंद करना होगा। इनके गैर जिम्मेदाराना तरीके से बढ़ते शिकार को रोकना होगा। जिससे भविष्य में भी इनकी आबादी बनी रहे।