मॉनसून में कमी के चलते ग्रामीण इलाकों में बढ़ी मनरेगा के तहत काम की मांग

बारिश की कमी से कुछ राज्यों में काम की मांग कोविड-19 महामारी की तुलना में भी अधिक है
मॉनसून में कमी के चलते ग्रामीण इलाकों में बढ़ी मनरेगा के तहत काम की मांग
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पिछले तीन महीनों में मॉनसून के दौरान पर्याप्त बारिश न होने के कारण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में काम की मांग काफी बढ़ गई है। कुछ राज्यों में तो यह मांग महामारी के समय से भी ज्यादा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक सितंबर के दूसरे सप्ताह तक देश में होने वाली मानसूनी बारिश में 40 फीसदी तक की कमी दर्ज की गई है।

बारिश की आई इस कमी के चलते एक तरफ जहां कृषि के लिए समस्याएं बढ़ी हैं। वहीं दूसरी तरफ काम के लिए पहले से कहीं ज्यादा लोग मनरेगा से जुड़े हैं। ग्रामीण रोजगार योजना की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, महामारी से पहले की तुलना में काम की मांग बहुत बढ़ गई है।

जून, जुलाई और अगस्त 2023 को देखें जो आमतौर पर बारिश के प्रमुख महीने होते हैं, तो उस दौरान मनरेगा के तहत काम की मांग क्रमशः 32.6 फीसदी, 28 फीसदी और 31.12 फीसदी बढ़ गई है।

इस बारे में लिबटेक इंडिया से जुड़े एक शोधकर्ता चक्रधर बुद्ध का कहना है कि, "नौकरियों की मांग वास्तव में बहुत अधिक होनी चाहिए, खासकर जब से 2022-23 में पांच करोड़ से ज्यादा मनरेगा जॉब कार्ड धारक इस योजना से बाहर हो गए हैं।” बता दें कि लिबटेक इंडिया, सार्वजनिक सेवाओं में सुधार के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों का एक मंच है।

बुद्ध ने यह भी बताया कि खराब मानसून और काम की बढ़ती मांग के बीच एक संबंध है। उनका कहना है कि, "आमतौर पर, तेलंगाना में योजना के तहत प्रदान की जाने वाली करीब 85 प्रतिशत नौकरियां मानसून से पहले के चार महीनों में उत्पन्न होती हैं, जबकि काम की बाकी मांग शेष आठ महीनों में रहती है।"

लेकिन उनके अनुसार इस साल यह पैटर्न गड़बड़ाता सा नजर आ रहा है। “तेलंगाना के अन्नामय्या जिले में पिछले वर्ष की तुलना में देखें तो अगस्त के दौरान काम में 26 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं इस साल जिले में होने वाली बारिश में 36.3 फीसदी की गिरावट आई है।” वहीं एक अन्य उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सत्य साईं जिले में बारिश में 29.4 फीसदी की गिरावट आई है, लेकिन रोजगार की मांग 64 फीसदी बढ़ गई है।

झारखंड में लिबटेक की वरिष्ठ शोधकर्ता लावण्या तमांग के अनुसार, पूर्वी भारत में कृषि से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं। इसका कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के जिन सामान्य स्रोतों पर लोग भरोसा करते थे वे गायब हो गए हैं।

उनका कहना है कि ग्रामीण आबादी के लिए मनरेगा एक सुरक्षा जाल की तरह है और यह सरकारी आंकड़ों में भी झलकता है। कम बारिश और धान की बुआई में देरी ने संकट को और बढ़ा दिया है। डाउन टू अर्थ के एक विश्लेषण से भी पता चला है कि इस साल बारिश में कमी का सामना करने वाले राज्यों में रोजगार की मांग बढ़ी है। वहीं कुछ मामलों में तो यह मांग 2020 और 2021 में जब महामारी का प्रकोप अपने चरम पर था, उससे भी ज्यादा है।

बारिश में कमी से मनरेगा में बढ़ती काम की मांग

यदि तेलंगाना को देखें तो 2020-21 में जब महामारी का प्रकोप था, तो जुलाई के दौरान परिवारों ने 376,537 नौकरियों और अगस्त  में 130,346 नौकरियों की मांग की थी। वहीं इस वर्ष जुलाई में देखें तो काम की यह मांग 610,494 और अगस्त 2023 में उल्लेखनीय रूप से 343,733 परिवारों ने काम की मांग की है।

इसी तरह केरल में, जहां इस सीजन में मानसूनी बारिश में 43 फीसदी की कमी आई है, इसके साथ नौकरियों की मांग भी बढ़ गई है। आंकड़ों की मानें तो जहां इस साल जुलाई 2023 में 951,095 लोगों ने काम की मांग की थी, जबकि अगस्त 2023 में यह आंकड़ा 920,145 दर्ज किया गया। वहीं यदि  2020-2021की बात करें तो जुलाई में 853,732 और अगस्त में 757,580 लोगों ने काम की मांग की थी।

इसी तरह झारखण्ड में जहां बारिश में 33 फीसदी की गिरावट आई है। वहां 2020-21 के दौरान अगस्त में 742,007 परिवारों ने नौकरी की मांग की थी। वहीं 2023-24 में इसी दौरान यह मांग बढ़कर  855,231 पर पहुंच गई है।

ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र में भी सामने आया है, जहां काम की मांग करने वाले परिवारों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है। गौरतलब है कि जहां 2020-21 के दौरान जुलाई और अगस्त में क्रमशः 341,267 और 237,468 परिवारों ने काम की मांग की थी। वहीं इस साल जुलाई और अगस्त में यह आंकड़ा बढ़कर क्रमशः 636,746 और 460,402 पर पहुंच गया है। जो जुलाई में काम की मांग में 86.6 फीसदी और अगस्त में 93.9 फीसदी की वृद्धि को दर्शाता है।

इस साल सितंबर के पहले नौ दिनों में मनरेगा के तहत काम की भारी मांग थी, जो 172,330 तक अपने चरम पर पहुंच गई। वहीं 2020-21 में महामारी के दौरान, यह मांग पूरे साल में 261,322 दर्ज की गई थी। ऐसा ही कुछ असम और गुजरात जैसे राज्यों में सामने आया है, जहां इस वर्ष कहीं ज्यादा परिवारों ने मनरेगा के तहत काम की मांग की है।

बिहार, झारखंड, त्रिपुरा, केरल, ओडिशा, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के विश्लेषण से पता चला है कि महामारी से पहले की तुलना में वहां प्रति परिवार काम की मांग में वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में, 2019-20 के दौरान जुलाई में 1,897,137 घरों और अगस्त में 1,721,878 परिवारों ने नौकरियों की मांग थी। वहीं 2023-24 में इसी अवधि के दौरान, जुलाई में यह मांग बढ़कर 2,825,123 घरों और अगस्त में 2,047,988 घरों तक पहुंच गई थी।

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