रायगढ़ में अडानी की जेट्टी परियोजना को बॉम्बे हाईकोर्ट से मिली हरी झंडी, क्या है पूरा मामला

इसके साथ ही अदालत अडानी सीमेंटेशन लिमिटेड को पर्यावरण सम्बन्धी नियमों और शर्तों का सख्ती से पालन करने को भी कहा है
यह परियोजना कुल 6,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है और इससे 158 मैंग्रोव के पेड़ प्रभावित होंगें; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
यह परियोजना कुल 6,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है और इससे 158 मैंग्रोव के पेड़ प्रभावित होंगें; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने अडानी सीमेंटेशन लिमिटेड की जेट्टी परियोजना को मंजूरी दे दी है। यह परियोजना महाराष्ट्र के रायगढ़ में शुरू होनी है। इसका मकसद जलमार्गों के माध्यम से सीमेंट, क्लिंकर और अन्य कच्चे माल के परिवहन को सुगम बनाना है। हालांकि साथ ही अदालत ने सख्त पर्यावरणीय शर्तों के साथ इस परियोजना को हरी झंडी दी है।

अदालत ने कहा, "परियोजना प्रस्तावक के पक्ष में आवश्यक वैधानिक अनुमतियां दी गई हैं, बशर्ते कि परियोजना पारिस्थितिकी और पर्यावरण संरक्षण की शर्तों का सख्ती से पालन करे।"

मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति भारती डांगरे की बेंच का कहना था कि, कोई भी गतिविधि चाहे वो व्यावसायिक हो लेकिन उससे उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास नहीं होना चाहिए। यदि कोई नुकसान होता है, तो उसे कम से कम किया जाना चाहिए और उसकी भरपाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।“

उन्होंने कहा कि, “याचिकाकर्ता ने सभी आवश्यक वैधानिक अनुमतियां प्राप्त कर ली हैं और उसे हर स्तर पर अपेक्षित अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए।"

उच्च न्यायालय ने परियोजना प्रस्तावक को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) तथा महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एमसीजेडएमए) सहित प्राधिकारियों द्वारा निर्धारित सभी शर्तों का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि अडानी सीमेंटेशन लिमिटेड ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने जलमार्ग से सीमेंट, क्लिंकर और अन्य कच्चे माल के परिवहन के लिए जेट्टी के निर्माण की अनुमति मांगी थी।

इसके साथ ही रायगढ़ के शाहपुर और शाहबाज में प्रस्तावित सीमेंट ग्राइंडिंग तथा फ्लाई ऐश प्रोसेसिंग यूनिट तक कन्वेयर कॉरिडोर, सड़क के निर्माण की भी अनुमति मांगी गई थी। इसका उद्देश्य मुंबई महानगर क्षेत्र में सीमेंट की बढ़ती मांग को पूरा करना है।

अडानी सीमेंटेशन लिमिटेड ने परियोजना के सार्वजनिक महत्व का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय से मंजूरी मांगी थी। यह परियोजना कुल 6,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली है और इससे 158 मैंग्रोव के पेड़ प्रभावित होंगें। इस परियोजना की अनुमानित लागत करीब ₹172 करोड़ रुपए है।

परियोजना प्रस्तावक ने महाराष्ट्र समुद्री बोर्ड, महाराष्ट्र तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण (एमसीजेडएमए), वन विभाग और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) से मंजूरी प्राप्त कर ली है।

गंगा फ्लड प्लेन पर रेलवे पुल के निर्माण को नहीं दे सकते मंजूरी: एनएमसीजी

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को दिए अपने जवाब में कहा है कि गंगा के डूब क्षेत्र पर रेलवे पुल के निर्माण को मंजूरी नहीं दी जा सकती।

सात मार्च 2025 को दिए अपने जवाब में एनएमसीजी ने कहा कि एक समिति ने इस मुद्दे की समीक्षा की और फैसला किया है कि विवादित निर्माण के लिए बाद में मंजूरी नहीं दी जा सकती। हालांकि, साथ ही एनएमसीजी ने निर्णय और दस्तावेज जमा करने से जुड़े हलफनामे को दाखिल करने के लिए अदालत से दो सप्ताह का समय मांगा है। अदालत इस मामले में अगली सुनवाई 25 मार्च, 2025 को करेगी।

समिति में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और राज्य स्वच्छ गंगा मिशन – उत्तर प्रदेश के सदस्य शामिल थे।

इस मामले में आवेदक की शिकायत है कि दारागंज से झूंसी के बीच गंगा डूब क्षेत्र और नदी के उस पार एक रेलवे पुल का निर्माण किया जा रहा है, जिसके लिए एनएमसीजी से मंजूरी नहीं ली गई है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि परियोजना प्रस्तावक निर्माण के दौरान नदी में मलबा डाल रहा है।

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